वैष्णव कथा वाचक एक तरफ तो कहते हैं कि यदि व्यक्ति धर्म ग्रंथ वेद, पुराण, उपनिषद, वेदांत आदि का अध्ययन करता है, तो वह सभी तरह के विकारों से मुक्त हो जाता है !
और दूसरी तरफ यहीं कथावाचक कहते हैं कि रावण धर्म मर्मज्ञ था ! उसने अपनी प्रतिभा से आचार्य का पद प्राप्त कर लिया था ! उसे वेद, वेदांत उपनिषद् आदि कंठस्थ थे !
इतना ही नहीं वह ज्योतिषी, तांत्रिक, आयुर्वेदाचार्य, संगीत और संस्कृत का मर्मज्ञ ज्ञाता होने के साथ-साथ महा तपस्वी ब्राह्मण भी था ! इसके ज्ञान का स्तर इतना उच्च था कि भगवान शिव ने स्वयं उसे अपना पार्षद अर्थात सलाहकार नियुक्त किया था !
उसकी विद्वता यहां तक प्रसिद्द थी कि जब राम को रामेश्वरम में शिवलिंग के स्थापना के लिए आचार्य की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने रावण को ही अपना आचार्य स्वीकार किया !
और रावण ने भी बिना किसी भेदभाव के शास्त्र सम्मत तरीके से राम के हाथों अपने पर विजय प्राप्त करने के लिये शिवलिंग की स्थापना करवाई थी !
इसके साथ ही जब राम ने रावण का वध कर दिया तो रावण के ज्ञान से प्रभावित होकर राम ने लक्ष्मण को रावण से मृत्यु के समय ज्ञान प्राप्त के लिए भेजा था !
अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि रावण के ज्ञान पर कोई प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि उसके ज्ञान से राम भी प्रभावित थे !
अब प्रश्न खड़ा होता है कि रावण अगर इतना बड़ा ज्ञानी था ! तो उसके द्वारा संपूर्ण सनातन शास्त्रों को कंठस्थ कर लेने के बाद भी वह खलनायक कैसे बन गया !
और अगर रावण जैसा ज्ञानी भी शास्त्रों के अध्ययन के उपरांत खलनायक बन सकता है, तो फिर आम इंसान को यह वैष्णव कथावाचक इन शास्त्रों को आत्म शोधन के लिए पढ़ने की सलाह क्यों देते हैं !
इसका मतलब रावण खलनायक नहीं बल्कि वैष्णव षड्यंत्रकार्यों के द्वारा रचे गए षड्यंत्र का एक निरीह हिस्सा था !
तभी तो रावण की हत्या के बाद राम को लक्ष्मण और सीता सहित 1 वर्ष के लिए “हत्याहरणी” नामक स्थान पर जाकर रावण की हत्या का प्रायश्चित करना पड़ा था !
इससे यह सिद्ध होता है कि रावण को खलनायक घोषित करने वाले वैष्णव कथा वाचक स्वयं बहुत बड़े खलनायक हैं, जो एक विद्वान ब्राह्मणों को अपने क्षणिक सांसारिक लाभ के लिए मानवता का खलनायक घोषित कर रहे हैं !!