विशेष : इस लेख को बस सिर्फ शैव विचारक ही पढ़ें !
रावण ने कभी भी धन की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी की आराधना नहीं की ! जबकि लक्ष्मी रावण के परम मित्र दक्षिण भारत के तटीय राजा सागर की बेटी थी ! जिसका विवाह विष्णु के साथ हुआ था ! इन्हें ने वैष्णव दरिद्रता को दूर करने के अनेकों उपाये बतलाये ! तभी से लक्ष्मी ही विष्णु के अनुयाई अंधभक्त वैष्णव के लिये धन की अधिष्ठात्री देवी हो गयी ! जिसकी आराधना बिना कारण समझे आज तक वैष्णव करते चले आ रहे हैं !
अब प्रश्न यह है कि रावण की संपन्नता का रहस्य क्या था ? जैसा कि आप सभी जानते हैं हनुमान ने सोने की लंका को जला कर भस्मीभूत कर दिया था ! फिर भी मात्र 1 वर्ष बाद जब राम ने तीन सौ राजाओं के सेना की मदद से रावण की कुल वंश सहित हत्या कर लंका पर विजय प्राप्त की, तो मात्र एक वर्ष के अल्पकाल में रावण द्वारा पुनः निर्मित स्वर्णमई लंका को देखकर लक्ष्मण के मन में इसी लंका में स्थाई रूप से रहने की इच्छा प्रकट हुई !
तब भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को आगाह करते हुए कहा कि “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है !
यह वर्णन वाल्मीकि रामायण के लंका कांड में मिलता है ! जो कि अब नेपाल का राष्ट्रीय ध्येय वाक्य भी है !
जबकि यह रामायण का आधा श्लोक है ! पूर्ण श्लोक इस प्रकार है !
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अर्थात ” लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी हुई है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है ! क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं !
अब प्रश्न यह है कि रावण के पास वह कौन सी सिद्धियां थी ! जिसके कारण मात्र 1 वर्ष के अल्प समय के अंदर रावण ने अपनी भस्मीभूत लंका को पुनः निर्मित कर लिया था ! आखिर इतना सोना वह लाता कहां से था !
इसका सीधा जवाब है भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप में विराजमान उमा, पार्वती, काली की तीन रक्षिणी शक्तियां ! जो रावण को तीनों काल में उसकी इच्छा के अनुसार स्वर्ण प्रदान करती थीं !
इसी को कालांतर में कालिदास ने सिद्ध कर उज्जैन के राजा विक्रमादित्त के साम्राज्य विस्तार में उनकी मदद की ! यह विद्या कालिदास ने लंका के एक शैव परम्परा के राजकुमार से सीखी थी !
कलांतर में रसायन विज्ञान के परम ज्ञानी नागार्जुन जी महाराज ने इस विद्या को सिद्ध कर लिया था ! जिससे वह किसी भी धातु या वनस्पति को स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया करते थे ! जिस स्वर्ण निर्माण तंत्र आयुर्वेद परंपरा का चलन देश के आजादी के समय तक होता रहा ! जिसका प्रमाण दिल्ली का बिरला मन्दिर है !
बिरला मंदिर की यज्ञशाला की दीवारें पर लिखा है कि “ज्येष्ठ मास शुक्ला 1 संवत् 1998 तारीख 27 मई 1941 को बिरला हाउस में पंडित कृष्णपाल शर्मा ने (गाँधी) लोगों के सामने एक तोला पारे से लगभग एक तोला सोना बनाया था !
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी स्वर्णमयी वर्षा के लिये अलग-अलग समय में शैव रक्षिणी तंत्र साधना का प्रयोग किया है ! जिससे मात्र 32 वर्ष की आयु में उन्होंने भारत में सैकड़ों हिंदू राजाओं की मदद की और दर्जनों मंदिरों का निर्माण करवाया ! इस साधना का विस्तृत वर्णन मंदोदरी तंत्र संहिता में मिलता है !
मंदोदरी तंत्र संहिता के अनुसार यह साधना मात्र 30 दिन की तंत्र साधना है ! जो शरद ऋतु में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर कार्तिक मास के अमावस्या को पूर्ण हो जाती है ! जिस दिन हम अज्ञानतावश लक्ष्मी गणेश पूजन करके लक्ष्मी के आगमन के लिए दीपावली का उत्सव मनाते हैं !
यह दीपावली का उत्सव मूलत: तीनों तरह की धन दात्री शैव रक्षिणी शक्तियां की त्रिकाल साधना उपासना के अनुष्ठान के पूर्ण होने की तिथि है ! जिसे कालांतर में वैष्णव लोगों ने शैव उपासिकों को वैष्णव बनाने के लिए दीपावली के उत्सव के रूप में परिवर्तित कर दिया था ! यह तीनों धन रक्षिणी शक्तियों को मंदोदरी संहिता में जाया, परा जाया और स्व जाया कहा गया है !
यह व्यक्ति को उसके जीवन में अपार संपदा प्रदान करती हैं ! यह शैव जीवन शैली के अनुयायियों को संपदा प्रदान करने वाली अधिष्ठात्री तंत्र शक्तियां हैं !
इसीलिए एक षड्यंत्र के तहत शैव जीवन शैली का अनुगमन करने वाले साधकों को गरीब बनाने के लिए जानबूझकर वैष्णव द्वारा अश्वनी मास में दो त्योहारों का समावेश किया गया ! एक शीतकालीन नवरात्रि उपासना और दूसरा दीपावली का उत्सव !
इन दोनों त्योहारों का वही समय है ! जब शैव जीवन शैली के अनुयायी अपार धन संपदा की प्राप्ति के लिए तीनों धन रक्षिणी शक्तियों की आराधना किया करते थे !
कालांतर में तुलसीदास जी के आगमन के बाद तंत्र के पितामह रावण का पुतला भारत में जलाया जाने लगा और और अश्वनी मास में धन रक्षिणी शक्तियों की आराधना पूरी तरह लोक परम्परा में विलुप्त हो गयी !
उसका परिणाम यह हुआ कि पिछले 500 सालों से भारत निरंतर दरिद्रता की ओर बढ़ता चला जा रहा है !!
शेष : लंकेश रक्षिणी काल साधना की प्रक्रिया फिर कभी बतलाऊंगा !!
( विशेष : दीपावली के त्यौहार का भगवान राम के अयोध्या आगमन से कोई लेना देना नहीं है ! इस संदर्भ में मेरे शोध पूर्ण लेख मेरी वेबसाइट पर पड़े हुये हैं ! )