अभी बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर जी ने राजनीतिक कारणों से रामचरितमानस पर कुछ टिप्पणी कर दी और उसका परिणाम यह हुआ कि पूरे भारत का वैष्णव समाज शिक्षा मंत्री के टिप्पणी का विरोध करने लगा !
अब प्रश्न या खड़ा होता है कि क्या रामचरितमानस या भगवान श्रीराम का चरित्र इतना हल्का है कि एक राजनीतिक व्यक्ति के टिप्पणी के कारण उनका व्यक्तित्व ढह जाएगा !
और यदि नहीं तो उस पर इतना हो हल्ला मचाने की जरूरत क्या है ? शिक्षा मंत्री का तो उद्देश्य ही था कि वह टिप्पणी करें और वैष्णव चीखना चिल्लाना शुरू कर दें और वही हुआ भी !
यह वही वैष्णव हैं, जो एक तरफ कहते हैं कि भगवान की इच्छा के बिना इस ब्रह्मांड में पत्ता भी नहीं हिल सकता है और दूसरी तरफ एक छोटी सी टिप्पणी से स्वयं ही हिले जा रहे हैं !
इसी वैष्णव के दोगलेपन ने सनातन धर्म के मूल ढांचे को हिला कर रख दिया है और आज भी वह निरंतर कमजोर होता जा रहा है !
वैष्णव को यह जान लेना चाहिए की सनातन धर्म का आधार राम और कृष्ण नहीं हैं ! राम और कृष्ण तो मात्र कथावाचकों और मन्दिर के पुजारियों के जीविकोपार्जन का साधन हैं !
सनातन धर्म इससे बहुत ही अलग, प्राचीन और दृढ़ है ! इसमें हजारों राम और कृष्ण जैसे व्यक्तित्व पैदा हुए और मिट गए, आज उनका नाम लेने वाला भी कोई नहीं है !
इसलिए राम या रामचरितमानस पर किसी के टिप्पणी कर देने मात्र से सनातन धर्म को कोई क्षति नहीं होने वाली है !
ऐसे दुराग्रही व्यक्तियों को चिन्हित करके राजनीति से बाहर कर दिया जाना चाहिए ! यह कार्य हमारे विवेक का है क्योंकि वोट देने का अधिकार हमारे हाथ में है ! इसको लेकर कोई भी राजनीतिक बयान बाजी या धरना प्रदर्शन उचित नहीं है !!