किसी भी लोकतान्त्रिक देश के शासन व्यवस्था में तीन संवैधानिक और एक अघोषित अर्थात चार स्वतन्त्र अंग होते हैं !
पहला विधायिका – यह अंग देश की जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों द्वारा सामूहिक रूप से देश के संचालन के लिये क़ानून बनाता है !
दूसरा कार्यपालिका – यह देश के जनप्रतिनिधियों द्वारा बनाये गये क़ानून को क्रियान्वित करवाता है ! देश का समस्त शासकीय और प्रशासनिक ढांचा इसी के अंतर्गत आता है ! तकनिकी परिभाषा पुलिस, जांच अधिकारी, कर अधिकारी, तहसीलदार, कलेक्टर आदि सभी कुछ इसी में शामिल हैं !
तीसरा न्यायपालिका – जो मौलिक अधिकार के विरुद्ध बने कानून की समीक्षा कर उन्हें निलंबित करता है और यदि कोई कानून तोड़ता है तो उसे दण्डित करता है !
चौथा खबरपालिका – यह गैर संवैधानिक लेकिन स्वस्थ्य लोकतन्त्र का आवश्यक अंग है ! यह शासन सत्ता और न्यायपालिका के गलत व सही दोनों तरह की सूचनाओं से जनता को अवगत करवाता है ! और उन सूचनाओं पर नागरिको की क्या प्रतिक्रिया है ! उससे भी जनता को अवगत करवाता है !
जब तक यह चारों विभाग स्वतन्त्र रूप से अपनी अपनी मर्यादा के अन्दर कार्य करते हैं ! तब तक किसी भी देश में सही तरह से लोकतन्त्र कार्य करता है ! किन्तु जब यह चारों विभाग मर्यादा विहीन होकर एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं या अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते हैं ! तो देश में अराजकता फैल जाती है !
किन्तु तानाशाही इससे अलग है ! तानाशाही में इन चारों विभागों पर किसी एक व्यक्ति या विचारधारा का नियंत्रण हो जाता है ! तानाशाही भी आजकल दो तरह की है ! एक घोषित तानाशाही दूसरी छद्म तानाशाही !
घोषित तानाशाही तानाशाही का वह स्वरूप है जिसमें उन शासकों को गिना जाता है ! जो विश्व सत्ता के षडयंत्र में न फंस कर अपने देश को विश्व सत्ता की नीतियों के विरुद्ध राष्ट्र हित में चलते हैं ! जिन्हें विश्व सत्ता के नुमाईनदे अपना उद्देश्य पूरा न हो पाने के कारण तानाशाहा घोषित कर देते हैं ! जैसे अडोल्फ़ हिटलर, जोसेफ स्टालिन, चीन के माओ, इटली के मुसोलिनी, भारत की इंदिरा गांधी आदि !
इन घोषित तानाशाहों के दौर में हमेशा उसका देश विश्व सत्ता की नीतियों के विपरीत स्वयं में एक महाशक्ति बनता है ! जिसके उदहारण इतिहास में भरे पड़े हैं ! हिटलर ने 1933 से 1945 और मुसोलिनी ने 1925 से 1945 तक क्रमश: जर्मनी और इटली की कमान संभाली और दोनों ही उस काल में महाशक्ति बने !
इसी तरह जोसेफ स्टालिन ने 1922 से 1953 तक सोवियत संघ की और माओ 1949 से 1976 तक चीन की कमान सम्हाली और दोनों ही देश आज विश्व की महाशक्ति हैं ! सद्दाम हुसैन ने 1980 से 2003 तक ईराक पर और गद्दाफी ने लीबिया पर 1969 से 2011 तक शासन किया और दोनों ने अपने देश को सशक्त बनाया ! इसी तरह और भी बहुत से उदहारण हैं !
लेकिन विश्व सत्ता को यह सब पसंद नहीं है इसीलिये इन्हेंने इन्हें तानाशाह घोषित करके युद्ध कर इस सभी को नष्ट कर दिया !
अब चर्चा करते हैं अघोषित छद्म तानाशाह की ! यह एक विशेष किस्म का विश्व सत्ता की इच्छा के अनुरूप चलने वाला तानाशाह होता है ! जो चुना तो उस देश की जनता के द्वारा ही जाता है ! किंतु वह कार्य विश्व सत्ता के लिये करता है !
इसका नियंत्रण धीरे-धीरे लोकतंत्र के चारों स्तंभों पर हो जाता है अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो लोकतंत्र की मर्यादा से ऊपर उठकर यह व्यक्ति विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ-साथ सूचना तंत्र को भी अपने नियंत्रण में ले लेता है और फिर विश्व सत्ता के मंसूबों को अपने देश की राष्ट्रीय मजबूरी बतला कर कठोरता से लागू करता है !
पीड़ित नागरिकों की सुनने वाला न तो उस देश में कोई होता है और न ही कोई अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी बात सुनता है ! ऐसी स्थिति में नागरिक के पास दो ही विकल्प होते हैं एक या तो वह ऐसे तानाशाह की इच्छा के अनुरूप कार्य करे या फिर दूसरा अपना शेष जीवन कानूनी पेचीदिगियों में उलझा कर जेल में काटे !
यह छद्म तानाशाह जब देश की सत्ता संभालते हैं ! तो उस देश को विश्व सत्ता के उद्देश्यों के अनुरूप चलाने के लिये सबसे पहले उस देश को जड़ मूल तक खोखला कर देते हैं ! जिससे उस देश की अपनी निजी सभ्यता संस्कृति कुछ ही काल में नष्ट हो जाती है और फिर वहां के नागरिकों को संवाद विहीन करके उस देश की शासन व्यवस्था को विश्व सत्ता के सिद्धांतों के अनुरूप चलने लगता है !
इसके लिये सर्व प्रथम उस देश के नागरिकों को एक डिजिटल आईडेंटिटी दे दी जाती है ! फिर उस देश में नोट बन्दी कर कैशलैस इकोनामी पर सर्वाधिक जोर दिया जाता है ! तब उस देश के प्रत्येक नागरिक के शरीर में पहले स्वेच्छा से बाद को बलपूर्वक R.F.I.D. चिप लगा दी जाती है ! जिससे उस देश के नागरिकों की सवतंत्रता ख़त्म हो जाती है !
फिर कालांतर में उस देश के नागरिकों के मस्तिष्क में भी N.F.C. चिप लगा दी जाती है ! जिससे वह व्यक्ति पूरी तरह से विश्व सत्ता के अधीन हो जाता है और फिर उस देश के भौतिक संसाधनों पर उस छद्म तानाशाह से लिखित समझौता कर के विश्व सत्ता अपना नियंत्रण कर लेता है ! और देश के नागरिकों की व्यथा सुनने वाला भी कोई नहीं होता है !