इस पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति ब्रह्म तत्व और ब्रह्म ऊर्जा में व्याप्त तरंगों से हुई है ! यह संसार भी उसी ब्रह्म तत्व और ब्रह्म ऊर्जा का प्रतिबिंब है ! इससे परे इस सृष्टि में कुछ भी नहीं है ! आज जो भी समस्त ब्रह्मांड में हो रहा है वह सब कुछ तरंग रूप में हमारे मस्तिष्क के अंदर हो रहा है ! इसीलिए कहा जाता है कि “यत ब्रह्माण्डे तत पिंडे” !
यह समस्त दुनिया मानसिक तरंगों से चलती है ! कार्य करता हुआ दिखने वाला मनुष्य तो मात्र एक हाड़ मांस का पुतला है ! जिसे मानसिक तरंगे ही चला रही हैं !
और किसी भी मानसिक तरंग की उत्पत्ति के लिए किसी समूह की कोई आवश्यकता नहीं होती है ! जब हम अकेले और एकांत में वास करते हैं तो हमारे मानसिक शक्तियों की ऊर्जा कई गुना अधिक बढ़ जाती है और वह बढ़ी हुई मानसिक ऊर्जा प्रकृति की ऊर्जा के साथ सामंजस्य करके अपनी शक्तियों को कई करोड़ गुना अधिक बढ़ा लेती हैं !
और धीरे-धीरे हमारी यही मानसिक ऊर्जा प्रकृति की ऊर्जा के सहयोग से, वह सारे अद्भुत कार्य करने में सक्षम हो जाती है जो सामान्यतः मनुष्य नहीं कर सकता है ! शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने सबसे अधिक बल तप पर दिया था ! जिससे मानसिक तरंगों को सशक्त बना कर उनसे अपनी इच्छा के अनुरूप दिव्य कार्य लिए जा सकें !
क्योंकि उन्हें यह मालूम था कि तप से उत्पन्न की गई मानसिक ऊर्जा मनुष्य और समाज ही नहीं बल्कि सृष्टि की सारी व्यवस्था को नियंत्रित कर सकती है ! मानसिक तरंगों के लिए पशु-पक्षी, जीव-जंतु, वनस्पति, मनुष्य, पंचतत्व आदि किसी को भी नियंत्रित करना असंभव नहीं है !
भौतिक रूप में जो भी वस्तुयें हमें दिखाई दे रही हैं, वह सब सूक्ष्म रूप में इसी ब्रह्मांड की ऊर्जा से जुड़ी हुई हैं ! और वह ब्रह्मांड में भी सूक्ष्म बिम्ब के रूप में उपस्थित हैं ! उसको हम अपने मानसिक ऊर्जा की शक्ति से अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं ! जैसा कि हमारे पूर्वजों ने कई बार करके प्रमाण के तौर पर हमें दिखलाया भी है और अब यह सब कुछ वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है !
अब प्रश्न बस सिर्फ इतना है कि हम अपने मानसिक शक्तियों को सही तरह से कैसे बढ़ायें !
इसके लिए दो तरीके हैं ! पहला तरीका व्यक्ति स्वयं साधना करके अपनी मानसिक शक्तियों को बढ़ा सकता है और दूसरा तरीका व्यक्ति किसी योग्य गुरु के सानिध्य में शक्तिपात द्वारा अपने मानसिक शक्तियों को बढ़ा सकता है !
लेकिन गुरु के द्वारा किये जाने वाले शक्तिपात से जो ऊर्जा का संचार व्यक्ति के मस्तिष्क में होता है, उसको सहने का सामर्थ व्यक्ति को स्वयं पैदा करना होता है !
कभी-कभी गुरु द्वारा प्रदान की गई मानसिक शक्तियों की ऊर्जा के असंतुलन के कारण व्यक्ति को अनेक तरह के स्थाई रोग हो जाते हैं !
मानसिक नसें फट जाती हैं और ब्रेन हेमरेज तक हो जाते हैं या व्यक्ति का ब्लड प्रेशर, थायराइड जैसी गंभीर बीमारियों में फंस जाता है !
इसलिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार ही गुरु की कृपा से शक्तिपात करवाना चाहिए !
यदि यह सामर्थ्य नहीं है तो पहले स्वयं साधना द्वारा अपने को मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए क्योंकि जिस तरह कुश्ती सीखने के पहले व्यक्ति व्यायाम द्वारा अपने आपको तैयार करता है ! तब उसे गुरु कुश्ती के दांव पर सिखाता है !
ठीक इसी तरह प्रकृति के गुण, रहस्य के साथ मानसिक तरंगों के तालमेल को बिठाने की कला सीखने के लिए व्यक्ति को पहले साधना द्वारा अपने आप को परिपक्व करना चाहिए अन्यथा साधना और ज्ञान के अभाव में मात्र मानसिक शक्तियों द्वारा सब कुछ प्राप्त कर लेने की कामना से व्यक्ति को भारी क्षति भी हो सकती है !
लेकिन यह भी निश्चित सत्य है कि एक बार यदि व्यक्ति ने अपने को तैयार करके मानसिक शक्तियों से प्राकृतिक तरंगों को नियंत्रित करने का सामर्थ्य पैदा कर लिया तो फिर उसके लिए इस ब्रह्मांड में कोई भी कार्य करना असंभव नहीं है !!