आखिर गौरक्षकों की जरूरत पड़ती ही क्यों है ? Yogesh Mishra

हमारे देश के प्रधानमंत्री समय-समय पर गौरक्षकों को अच्छे व्यवहार की नसीहत देते रहते हैं, पर कभी यह नहीं कहते कि “गौ तस्करी करने वाले अपराधी हैं और इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जानी चाहिये” या भारत में अब वधशालाओं पर स्थापना या आधुनिकीकरण के नाम पर दी जाने वाली सब्सडी बन्द कर दी जायेगी या भारत अब मीट का निर्यात नहीं करेगा !

प्रश्न यह खड़ा होता है कि प्रधानमंत्री के अनुसार जब देश की शासन व्यवस्था अपने में चुस्त-दुरुस्त है और देश के सभी राजनेता और आला अफसर ईमानदार हैं तो आखिर गौ तस्करी होती कैसे है और गौरक्षकों को अपनी जान हथेली पर लेकर सड़कों पर निकलना ही क्यों पड़ता है ?

इस देश के अंदर आंतरिक सूचनाओं को इकट्ठा करने के लिए अनेक स्तर पर सघन गुप्तचर विभाग हैं और अपराध को रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन ! जो कठोर कानूनी व्यवस्था के तहत पूरी तरह से अधिकार प्राप्त हैं ! वह किसी भी तरह के होने वाले अपराध को रोक सके इसके लिए उन्हें एक मोटी तनख्वाह भी दी जाती है ! किंतु इसके बाद भी गायों की तस्करी होती है ! जिसकी सूचना साधन विहीन गौरक्षकों को तो हो जाती है, किंतु देश के सघन गुप्तचर विभाग और पुलिस प्रशासन को नहीं हो पाती है !

और गौ तस्कर दिनदहाड़े पुलिस की नाक के नीचे से खुले आम ट्रकों में भरकर गोवंशीय पशुओं की तस्करी करते हैं ! जिन्हें गौ रक्षक पकड़ लेते हैं लेकिन थाने और चौराहों पर खड़े हुए पुलिस वालों इन तस्करों को नहीं देख पाते !

इसका मतलब यह क्यों न लगाया जाए कि इन गौ तस्करों के साथ क्षेत्रीय पुलिस मिली रहती है ! इतना ही नहीं शासन-सत्ता के कुछ आला-अफसर और राजनेता भी इन्हें संरक्षण देते हैं ! अगर शासन-सत्ता के आला-अफसर और राजनेता ईमानदारी से गौ तस्करी रोकना चाहते हैं, तो रात के अंधेरे में बिना किसी संसाधन के गौरक्षकों को अपनी जान हथेली पर लेकर गौ तस्करों के ट्रकों को दौड़ा कर पकड़ने की जरूरत ही क्या है !

कौन नहीं जानता है कि इन गौ तस्करों की हर पुलिस थाने पर रकम बंधी होती है और यह रकम थाने तक ही नहीं बल्कि इसका एक बड़ा अंश ऊपर के आला अफसरों तक भी जाता है और इसी रकम के लालच में थाने के सिपाही से लेकर प्रशासन के आला-अफसर तक सभी गौ तस्करों की ओर से अपनी आंखें बंद कर लेते हैं ! तब बाध्य होकर गौरक्षकों को अपनी जान हथेली पर लेकर सड़कों पर निकलना पड़ता है !

कानून की लचर व्यवस्था और अव्यवस्थित न्यायपालिका यह दोनों ही इन तस्करों का मनोबल बढ़ाती हैं ! यदि कानून के अंदर ऐसी व्यवस्था कर दी जाए कि इन गौ तस्करी करने वाले पर “रासुका और गैंगस्टर” जैसी कठोर धारायें लगाई जायें तथा न्यायपालिका इन गौ तस्करों के साथ कठोर क़ानूनी व्यवहार करे तो इससे इन गौ तस्करों का मनोबल टूटेगा !

जब पवित्र “गंगा” नदी को मनुष्य का दर्जा दिया जा सकता है तो जीती जागती “गौ माता” को मनुष्य का दर्जा देने में क्या आपत्ति है ? ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति गोवंश का विधि विरुद्ध तरीके से परिवहन करता है तो उसके ऊपर “अपहरण” का मुकदमा दर्ज हो और यदि कोई व्यक्ति गोवंश की विधि विरुद्ध तरीके से हत्या करता है तो उसके ऊपर मनुष्य की तरह “मृत्युदंड” का प्रावधान हो और निरंतर इस तरह के अपराधों की पुनरावृत्ति करने वालों को हिस्ट्रीशीटर मानते हुए उन्हें आजीवन कारावास की व्यवस्था की जाए तथा जिस थाना क्षेत्र में बार-बार गौ हत्या या गौ तस्करी होती है उस थाना क्षेत्र के थानाध्यक्ष को भी क्यों नहीं सह अभियुक्त बनाया जाना चाहिए !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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