धर्म का निर्माण समाज को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए हुआ था, किन्तु कालांतर में धर्म के मुखिया लोगों की विलासिता को देखकर लोगों ने धर्म की ओट में धन कमाने के निर्णय लिया !
धीरे धीरे समाज का चालाक व्यक्ति किसी न किसी महापुरुष के नाम पर धर्म की शुरुआत करके उसका मुखिया बन बैठा और मठ, मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि का निर्माण करके धर्म के नाम पर मनुष्य का शोषण करके विलासिता पूर्ण जीवन जीने लगा !
आज धर्म के विकल्प में मानवता के कल्याण के लिये विज्ञान विकसित हो गया है ! जिसने बहुत से धर्मों के मूलभूत सिद्धांतों को अस्वीकार कर दिया है और विज्ञान तो यह भी कहता है कि मनुष्य के पूर्ण विकसित न हो पाने का कारण बहुत से धर्मों की अव्यवस्थित व्यवस्था है !
अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या मनुष्य के समग्र विकास के लिए धर्म ही सबसे बड़ी बाधा है ? इसलिये क्या मनुष्य के विकास के लिए धर्म को विदा कर देना चाहिए !
इस पर एक तरफ तो आधुनिक विज्ञान के पक्षधर पूरी उत्सुकता से धर्म को विदा करने के लिए जोर लगा रहे हैं किंतु दूसरी तरफ धर्म के नाम पर विलासिता पूर्ण जीवन जीने वाले अभी भी मनुष्य को अपनी विलासिता के लिए धर्म के पक्ष में बरगला रहे हैं !
अब प्रश्न यह है कि क्या विज्ञान में धर्म के नियंत्रण के अभाव में वह समर्थ है कि किस समाज को व्यवस्थित तरीके से चला सके और यदि नहीं तो क्या इस समय सभी धर्मों को संसार से विदा कर देना जल्दबाजी नहीं होगी !
मेरी निजी राय यह है कि मानवता के कल्याण और विकास के लिये विज्ञान को अभी और विकसित होना चाहिये ! कालांतर में यह विकसित विज्ञान ही धर्म का प्रतिनिधि हो जायेगा और यह विज्ञान मनुष्य में जागरूकता पैदा करके स्वत: धर्म को विदा कर देगा !
इसलिए अकेले धर्म पर आश्रित जीवन अब पुराने समय की बात है ! हमें वर्तमान में धर्म आधारित वैज्ञानिक जीवन शैली पर विचार करना चाहिए ! यह मानवता के कल्याण के लिए एक नये तरह की जीवन शैली है !
लेकिन यह अति आवश्यक है कि यदि हमने भविष्य में विज्ञान आधारित धार्मिक जीवन शैली को नहीं अपनाया तो निश्चित ही धर्म और विज्ञान के द्वन्द में मनुष्य और मानवता का बहुत ही नुकसान हो जायेगा !!