क्या आप जानते हैं कि भारत में प्रतिवर्ष इतना अनाज पैदा होता है कि भारत यदि चाहे तो पूरी दुनिया के आठ सौ करोड़ लोगों को 6 माह तक अकेले भोजन उपलब्ध करवा सकता है ! लेकिन फिर भी भारत के अंदर 30% लोग मात्र एक वक्त ही रोटी खा पाते हैं और प्रतिवर्ष भूख और कुपोषण से 10 लाख से अधिक लोग मर जाते हैं ! आखिर इसका रहस्य क्या है ?
आखिर हम एक कृषि प्रधान देश में रहते हैं ! आधुनिकता के बाद भी आज कृषि ही भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है ! आज भी भारत के 47 प्रतिशत भू-भाग में लोग खेती करते हैं ! देश के 70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं ! हम किसानों से अच्छी फसल की उम्मीद करते हैं जिसमें भारत का किसान अपने सभी सुखों को त्याग कर खरा तो उतरता है ! लेकिन उसकी मेहनत को सहेजने के लिये आज तक भारत के पास भण्डारण की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है !
आज भी सरकारी खरीद का अनाज खुले आसमान के नीचे बोरों में पड़ा रहता है ! जो अचानक आयी बरसात से भींग कर सड़ जाता है और जो गोदामों के अंदर अनाज को सुरक्षित रखा जाता है, वह भी कुछ धूर्त अवसरवादी लोगों के कारण गोदाम के कर्मचारियों से मिल कर अनाज को गोदामों के अंदर ही पानी डालकर सड़वा दिया जाता है ! जिसके लिए इन सरकारी कर्मचारियों को घूस के तौर पर एक मोटी रकम दी जाती है !
ऐसा नहीं है कि यह सब अज्ञानता में हो रहा है ! यह सब एक योजनाबद्ध तरीके से सरकारी अधिकारियों के मिली भगत से होता है ! जिससे भारत खाद्यान्न के विषय में कभी भी आत्मनिर्भर राष्ट्र की सूची में विश्व पटल पर न आ सके !
शराब और खाद बनाने की बड़ी-बड़ी कंपनियां जोकि विदेशी षड्यंत्रकारिर्यों के साथ मिली होती हैं, उनकी मदद से किसानों के मेहनत से पैदा किये गये अनाज को योजनाबद्ध तरीके से सरकारी गोदामों में खड़ा कर नष्ट कर दिया जाता है और विश्व पटल पर भारत को भूखा नंगा देश घोषित किया जाता है !
भारत में अवैज्ञानिक तरीकों से अनाज के भण्डारण का प्रचलन खुद सरकारें करती हैं ! खुले आसमान के नीचे कभी बोरों में या कभी यूं ही ढ़ेरों में पड़ा अनाज प्रायः आप सभी ने देखा ही होगा ! एक आंकड़ा बताता है कि भारत में वार्षिक भण्डारण हानि लगभग 7000 करोड़ रुपये की होती है ! जिसमें 14 मिलियन टन खाद्यान्न सड़ कर बर्बाद हो जाता है और नकली कीटनाशकों के कारण कीटों से लगभग 1300 करोड़ रुपये का अनाज नष्ट हो जाता है !
विश्व बैंक की एक पुरानी रिपोर्ट बतलाती है कि हमारे यहां मात्र 12 मिलियन टन अनाज भारत के गरीबों का पेट भर सकता है ! जो कि नकली कीटनाशकों से हुये नुकसान का मात्र 4% है ! इसके बाद चूहों के द्वार खाद्यान्न खाए जाने का मात्र 2.50%, पक्षियों द्वारा खाद्यान्न खाए जाने का मात्र 0.85% तथा नमीं से खराब होने वाले खाद्यान्न का 0.68% है ! अर्थात अकेले हर वर्ष भारत के कुल गेहूं उत्पादन में से क़रीब 6 करोड़ टन गेहूं किसी न किसी तरह से नष्ट कर दिया जाता है ! एक अध्ययन के अनुसार देश में करीब 300 हजार करोड़ रुपयों के अनाज की बर्बादी मात्र षडयंत्र के तहत होती है !
यूं तो देश में भारतीय खाद्य निगम भी है जो इसी अधिनियम तहत वर्ष 1964 में बना गया था और 1965 में स्थापित हुआ ! तब देश में भीषण अन्न संकट विशेष रूप से गेहूं की कमीं के चलते इसकी जरूरत महसूस हुई ! लेकिन इसके साथ ही किसानों के लिए लाभकारी मूल्य की सिफारिश के लिए भी 1965 में ही कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यानी “सीएसीपी” का भी गठन किया गया था !
जिसका मकसद खाद्यान्न और दूसरे खाद्य पदार्थों की खरीदी, भण्डारण, परिवहन, वितरण और बिक्री करना रहा है ! लेकिन उससे बड़ा सच यह है कि देश भर में इनके खाद्य गोदाम को बनाने में तेजी आज तक नहीं आ पाई है ! जो बनने थे वह उसी दौर में बन गये !
हां इन सरकारी विभागों ने खाद्यान्न को जहरीला करने के लिये जरुर रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बड़े बड़े विदेशी उद्द्योग पतियों से मिला कर भारतीय परंपरागत कृषि को नष्ट करने में जरुर पूर्ण सहयोग दिया ! रासायनिक खादों और कीटनाशकों के कारण धीरे-धीरे भारत में अनाज का बम्पर उत्पादन होने लगा ! यहां तक सब ठीक है लेकिन खुले आसमान के नीचे रखे गेहूं के असमय हुई बारिश से भीगने और नालों, नालियों में तक बह जाने की तबाही भरी तस्वीरें और वीडियो जहां-तहां से देखने को मिलीं. आगे भी तूफान न रुका है, न रुकेगा ! हां, आसमान के नीचे भण्डारण का रुक सकता है !
लेकिन भारतीय कृषि के प्राइवेटाइजेशन के दबाव में सरकार जानबूझकर इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाती है क्योंकि जिन पूंजीपतियों को भारत के खेत नीलाम करने हैं, उन्हीं पूंजीपतियों के पैसों से भारत में राजनीतिक दल सत्ता तक पहुंचते हैं इसलिए आवश्यकता से अधिक अनाज पैदा करने के बाद भी भारत में भुखमरी का तिलिस्म जारी है ! जिसे कोई राष्ट्र भक्त शासक ही रोक सकता है !