आपको डाक्टर नहीं भगवान बचाता है ! : Yogesh Mishra

यह जीव विज्ञान का बहुत ही सामान्य सा सिद्धांत है कि जो व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है या जो भोजन करता है ! शरीर उसी के अनुरूप अपना विकास कर लेता है अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है या भोजन करता है ! यदि उससे अलग हटकर कोई अन्य परिवेश या भोजन उस व्यक्ति को उपलब्ध करवाया जायेगा तो उस व्यक्ति का शरीर उस नये परिवेश या भोजन में असहज होकर अपनी सामान्य स्वस्थ्य रहने की प्रक्रिया बंद कर देता है !

हम सभी जानते हैं कि किसी भी रोग से किसी भी व्यक्ति को कोई भी डॉक्टर ठीक नहीं कर सकता है ! जब तक कि हमारा शरीर सहयोग न करे ! क्योंकि हमारे शरीर के अंदर ही लाखों तरह के रसायन बनाने की क्षमता होती है जो शरीर को स्वत: ही प्राकृतिक रूप से तरह-तरह के रोगों से मुक्त कर सकता है ! बाहरी औषधियां तो मात्र शरीर को स्वस्थ रखने की स्वाभाविक प्रक्रिया में मात्र सहायक होती हैं !

अर्थात मेरे कहने का विषय यह है कि भारत सदियों से एक वनस्पति प्रधान देश रहा है ! यहां के हर वनस्पति का कोई न कोई औषधीय प्रयोग रहा है ! जिसका वर्णन हमारे यहां आयुर्वेद के ग्रंथों में पाया जाता है और हमारे पूर्वज सैकड़ों वर्षोँ से इन्हें आयुर्वेदिक ग्रंथों के आधार पर वनस्पतियों का प्रयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा के लिये करते आ रहे थे !

इसका मतलब हमारे शरीर की संरचना कुछ इस तरह बनी है कि यदि कोई रोग हमें होता है तो पहले तो हमारा शरीर ही स्वाभाविक रूप में इस रोग को ठीक कर लेता है और यदि आवश्यकता समझी जाती है तो आयुर्वेदिक औषधि शरीर के रोग निवारण में सहयोग करती है !

लेकिन हमारा शरीर किसी भी रूप में एलोपैथी पद्धति की चिकित्सा को स्वीकार नहीं करता है ! यही कारण है कि एलोपैथी की कोई भी अच्छी से अच्छी दवा यदि हम खाते हैं तो उसका कोई न कोई साइड इफेक्ट हमारे शरीर पर जरूर पड़ता है ! इसलिये समझदारी यह है कि अपने शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाइये और स्वस्थ रहिये !

यदि आवश्यकता पड़े तो विशेष परिस्थितियों में आयुर्वेदिक औषधि का सहारा लीजिये लेकिन किसी भी स्थिति में स्थाई रूप से कोई भी एलोपैथी पद्धति की बनी औषधि का प्रयोग लंबे समय तक मत कीजिये ! नहीं तो यह खतरनाक एलोपैथी औषधि आपके मूल शाररिक संरचना को ही बदल देगी ! फिर 4-6 पीढ़ी के बाद आपके शरीर पर रोगों से लड़ने की स्वाभाविक प्रक्रिया समाप्त हो जायेगी और हर छोटे छोटे रोगों के लिये आपको बड़ी-बड़ी दवाइयां खानी पड़ेगी !

बीमार होते ही हमारे मन में यह जो विचार आता है कि हमें तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिये और डॉक्टर मुझे ठीक कर देगा ! यह मात्र एक भ्रम है ! क्योंकि कोई भी डॉक्टर कभी किसी को स्वस्थ नहीं कर सकता है ! बल्कि मनुष्य को स्वस्थ उसके अंदर बनने वाला रसायन ही स्वस्थ रख सकता है ! जिस रसायन के निर्माण करने की संपूर्ण प्रक्रिया को रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं ! जिसका निर्माण स्वयं ईश्वर ने किया है !

अतः दूसरे शब्दों में आप यह मानिये कि आपको इस धरती पर कभी किसी बीमारी के लिये कोई भी डॉक्टर ठीक नहीं कर सकता है जब तक कि आप पर ईश्वरीय कृपा न हो ! जो आपके रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है ! आपके स्वस्थ्य रहने में डॉक्टर तो मात्र एक सहायक की भूमिका अदा करता है !

आपको स्वस्थ ईश्वर ही रखता है इसलिये मेरा यह अनुरोध है कि ईश्वर में आस्था रखिये और जलवायु के अनुसार शुद्ध सात्विक भोजन शांत चित्त से कीजिये, मस्त रहिये तथा ईश्वर द्वारा बनाई गई वनस्पति से निर्मित आयुर्वेदिक औषधि का ही रोग निवारण हेतु दवा में प्रयोग कीजिये ! यदि विशेष परिस्थिति हो तो आयुर्वेद की उन्नत शाखा होम्योपैथ की शरण में जाइये लेकिन कभी भी भूल कर एलोपैथी की शरण में मत जाईये !

क्योंकि इन एलोपैथी दवाइयों के शोधकर्ता व निर्माता निरीह बेजुबान सैकड़ों जीव जंतुओं की हत्या करके दवाओं का निर्माण करते हैं ! विचार कीजिये जो दवा सैकड़ों जीव जंतुओं की हत्या के बाद बनी हो ! वह औषध कैसे हो सकती है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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