ध्यान के दो अर्थ होते हैं ! सामान्य प्रचलित भाषा में किसी विषय, वस्तु, व्यक्ति, उद्देश्य पर मन और भाव को केन्द्रित करना ध्यान है ! जिसे हम त्राटक के नाम से भी जानते हैं ! वैष्णव जीवन शैली में इसका बड़ा महत्व है !
ध्यान का दूसरा अर्थ है विचारशून्य हो जाना, निष्क्रिय हो जाना, केवल दृष्टा मात्र बनकर रह जाना ! ध्यान की यह पध्यति शैवों में पाई जाती है !
दोनों ही प्रकार के ध्यान का अपना अपना महत्व है, लेकिन शैव ध्यान पध्यति का अपना विशेष महत्व है ! क्योंकि इसका उद्देश्य है “स्वयं को जानना” या स्वयं से परिचित होना !
और स्वयं को जाने बिना संसार को नहीं जाना जा सकता है ! या दूसरे शब्दों में स्वयं को जाने बिना संसार को जानना व्यर्थ है !
पहले प्रकार के ध्यान में आप बाहर भाग रहे हैं और दूसरे प्रकार के ध्यान में आप अपने भीतर की यात्रा करते हैं ! जिसकी शुरुआत “स्व” की साधना से होती है ! इससे आप अपने स्वयं को जानेते हैं, स्वयं से परिचित हो जाते हैं ! जो इस जीवन को लेने का उद्देश्य है !
लेकिन सर्वाधिक प्रचलित ध्यान पहले वाह्य प्रकार के ध्यान का है, जिसमें आपका गुरु आपको कोई मंत्र दे देता है, कोई प्रतिमा पकड़ा देता है और कोई नामजाप दे देता है और वह भी इसलिए, क्योंकि उनके गुरु ने भी ऐसा ही किया था ! वह न तो इसके महात्म को जानता है और न ही इसके प्रभाव को !
यह वैष्णव समाज में लम्बे समय से एक परंपरा सी चली आ रही है ! जिसे वैष्णव समाज आज तक ढो रहा है ! जिससे वैष्णव गुरु को भौतिक लाभ भले मिल जाये, चाहे आध्यात्मिक उत्थान हो या न हो ! यही कारण है कि आज के तथाकथित ध्यानी, ज्ञानी, तपस्वी साधु-संत, संन्यासी, बाबा लोग देश व जनता के इन वैष्णव लुटेरों के विरुद्ध मुँह नहीं खोलते बल्कि उल्टे उन्हीं के चरणों पर पड़े रहते हैं !
यह प्रपोगंडा करते हैं कि इनके पास बड़ी बड़ी सिद्धियाँ हैं ! यह बड़ी से बड़ी बीमारियों को छूकर, भभूत देकर, चरणामृत पिलाकर, झाड़-फूंक करके दूर कर सकते हैं ! लेकिन स्वयं महामारी से आतंकित होकर घरों में दुबक बैठ जाते या फिर लाईन में घंटों खड़े होकर वैक्सीनेशन करवाते नज़र आते हैं !
यह लोग स्वयं तो छिप छिप कर अस्पतालों के चक्कर लगाते रहते हैं, लाखों रुपए इलाज और दवा में फूँक देते हैं…लेकिन दुनिया को ध्यान, जाप, पूजा-पाठ की महिमा बताते फिरते हैं !
यह पूरी दुनियां में शान्ति कायम करने का दावा करते हैं और खुद प्रायोजित सुरक्षा कवच के भीतर छिपे रहते हैं ! क्योंकि इन्हें अपनी ही आलौकिक शक्तियों की सच्चाई स्वयं पता होती है !
पहले प्रकार का ध्यान उनके लिए है, जो धार्मिक लूट पाट के लिये समाज से जुड़े रहना चाहते हैं, अस्पतालों से जुड़े रहना चाहते हैं, जहाँ से इन्हें क्लिन्ट मिलते हैं ! यह लोग धन के पीछे भागना चाहते हैं !
लेकिन दूसरे प्रकार का शैव ध्यान केवल उनके लिए है, जो अपनी स्वयं की शक्तियों से परिचित होना चाहते हैं ! जो अपने भीतर की यात्रा करके स्वयं को जानना चाहते हैं !
ऐसे ध्यान सिखाने वाले दुर्लभ हैं और मिल भी गये कभी, तो आवश्यक नहीं कि यह आपको अपने पास भी आने दें ! क्योंकि इनका ध्यान बहुत शक्तिशाली होता है, इसलिए हर किसी को नहीं सिखाते हैं !
पहले सिखने वाले की पात्रता देखते हैं तब सिखाते हैं ! लोभी, कामी, कपटी, स्वार्थी, और सत्ता, धन, बंगला, कार, कोठी, छोकरी के पीछे भागने वालों को यह कभी पसंद नहीं करते हैं !
शैवों का शक्तिशाली ध्यान केवल उन्हें ही सिखाया जाना चाहिए, तो निःस्वार्थी हों और अपना कल्याण करने के इच्छुक हों !!