क्या आप जानते है ? प्रधानमंत्री का चुनाव रैलियों में जाना संविधान विरुद्ध है !! Yogesh Mishra

“हमारे खर्चे पर ही हमको हरवाने के लिये आते हैं प्रधानमंत्री” – एक जन प्रतिनिधि चुनाव प्रत्याशी की व्यथा कथा

जैसा कि भारतीय संविधान की व्यवस्था है कि भारत का प्रधानमंत्री भारत की कार्यपालिका का प्रमुख होने के नाते भारतीय संविधान के अनुसूची 3 के अनुसार यह शपथ लेता है कि “वह भारत के प्रत्येक नागरिक के साथ पक्षपात किये बिना विधि के अनुसार न्याय करेगा !” इसके बदले में भारत का प्रत्येक नागरिक भारत सरकार को “कर” देता है जिस करके संग्रहित धन से भारत का प्रधानमंत्री भारत के नागरिकों के साथ विधि अनुसार न्याय करते हुए अपना शासकीय कार्यभार चलाता है !

किंतु चुनाव के आते ही प्रधानमंत्री का रुख बदल जाता है ! उस समय प्रधानमंत्री कहने को तो भारत के प्रधानमंत्री होता है और भारत के प्रत्येक नागरिक के साथ समान व्यवहार करना उनका संवैधानिक दायित्व होता है किंतु फिर भी व्यवहार में देखा जाता है कि वह प्रधानमंत्री किसी विशेष राजनीतिक दल के चुनाव प्रत्याशी की पैरवी में पूरे देश भर में भ्रमण करता है !

अब प्रश्न यह है कि क्या प्रधानमंत्री किसी विशेष राजनीतिक दल के चुनाव प्रत्याशियों का का प्रधानमंत्री होता है, या भारत के प्रति नागरिक का प्रधानमंत्री होता है ! अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य है कि चुनाव के दौरान जो भी भारत का नागरिक चुनाव प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहा है, हमारे देश का प्रधानमंत्री उस चुनाव प्रत्याशी को जो उसके राजनीतिक दल से अलग है, उसके विरुद्ध चुनाव हरवाने वाला कोई भी वक्तव्य बतौर प्रधानमंत्री कैसे दे सकता है !

क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री होने के नाते प्रत्येक चुनाव प्रत्याशी भारत का नागरिक है चाहे वह विशेष राजनैतिक दल का चुनाव प्रत्याशी हो या उसके विपरीत लड़ने वाला अन्य राजनीतिक दल का चुनाव प्रत्याशी हो या फिर निर्दलीय चुनाव प्रत्याशी हो ! अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के चुनाव प्रत्याशी नागरिकों के मध्य किसी विशेष राजनीतिक दल के चुनाव प्रत्याशी को विशेष समर्थन देना एवं अन्य को न देना यह प्रधानमंत्री के शपथ के विरुद्ध है !

दूसरी बात के बतौर भारत के प्रधानमंत्री जब आप किसी विशेष राजनैतिक दल के प्रत्याशी के समर्थन में देश भर में सरकारी खर्चे पर यात्रा करते हैं तो वह सरकारी खर्च भारत के आम सामान्य नागरिकों द्वारा दिए गये “कर” से संग्रहित होता है ! अत: भारत के आम नागरिक के द्वारा दिये गये “कर” से स्थापित राजकीय कोषागार के धन का प्रयोग करते हुए देश का प्रधानमंत्री किसी व्यक्ति विशेष या राजनैतिक दल विशेष की पैरवी और अन्य प्रत्याशियों का विरोध कैसे कर सकते हैं ! जिसने राजकीय कोषागार में “कर” दे कर भारत की शासन सत्ता को चलाने के लिए प्रधानमंत्री को योगदान दिया है !

तीसरी बात जो सर्वाधिक विचारणीय है ! वह यह है कि बतौर भारत के प्रधानमंत्री जब आप किसी भी चुनाव प्रत्याशी की पैरवी करते हैं और वह चुनाव प्रत्याशी चुनाव हार जाता है, तो उस स्थिति में किसी व्यक्ति का अपमान नहीं होता बल्कि राष्ट्र के मुखिया का अपमान होता है ! क्योंकि स्पष्ट रूप से यह माना जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री ने एक अयोग्य व्यक्ति की पैरवी की, जिसे जनता पसंद नहीं करती और उस स्थिति में अयोग्य व्यक्ति की पैरवी करने पर जनता ने प्रधानमंत्री के आवाहन को ही ठुकरा दिया है !

ऐसी स्थिति में नाकारा, अयोग्य, अविश्वसनीय चुनाव प्रत्याशी, जिसे समाज और देश के आम आवाम ने अस्वीकार कर दिया ! ऐसे व्यक्ति की पैरवी में जब भारत का प्रधानमंत्री सरकारी खर्च पर चुनाव रैलियों में शामिल होता है तो यह राजकीय धन का दुरुपयोग है और प्रधानमंत्री की गरिमा के विपरीत है !

चौथी उससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि राजकीय कोष से धन व्यय करने के बाद जब प्रधानमंत्री किसी विशेष चुनाव प्रत्याशी की पैरवी करता है और वह व्यक्ति चुनाव में हार जाता है, तो नैतिकता के आधार पर उस व्यक्ति को किसी दूसरे विधिक या संवैधानिक गुप्त मार्ग से मंत्री बनाकर अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना ! यह प्रधानमंत्री की शक्ति का दुरुपयोग है ! क्योंकि जिस व्यक्ति को जनता ने अस्वीकार कर दिया ! उसको अपने हठधर्मिता से जन आकांक्षा के विरुद्ध जाकर मंत्री बनाना यह बतलाता है कि देश का प्रधानमंत्री जन भावनाओं का सम्मान नहीं करता है !

ऐसी स्थिति में यह सर्वथा उचित है कि देश के प्रधानमंत्री को यदि किसी विशेष राजनीतिक दल के चुनाव प्रत्याशियों की पैरवी करनी है तो उसे चुनाव की आचार संहिता लगने के पूर्व ही अपने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देकर किसी अन्य व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का दायित्व सौंप देना चाहिये ! जिस से प्रधानमंत्री पद की गरिमा सुरक्षित रहें !

यदि प्रधानमंत्री के कार्य और व्यक्तित्व का प्रभाव जनमानस में है तो वह व्यक्ति पद पर रहे या न रहे भारत का आम जनमानस उसका सम्मान करता रहेगा और यदि प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति का कार्य आम जनमानस के लिए सम्मान के योग्य नहीं है तो उस स्थिति में वह प्रधानमंत्री चाहे जितना भी किसी विशेष राजनैतिक दल के प्रत्याशी को जिताने का आवाहन कर ले आम जनमानस उसे अस्वीकार कर देगा !

इसलिए राष्ट्र और संविधान की मर्यादा यही है कि प्रथम तो यह प्रयास करना चाहिए कि देश का प्रधानमंत्री किसी विशेष राजनीतिक दल के जनप्रतिनिधि की पैरवी सार्वजनिक मंचों पर न करे और यदि आवश्यकता ही है तो यह उचित होगा कि वह प्रधानमंत्री देश के चुनावी आचार संहिता की घोषणा के पहले ही अपने प्रधानमंत्री पद के दायित्व से अपने को मुक्त करने के उपरांत ही किसी विशेष राजनीतिक दल के चुनाव प्रत्याशी की पैरवी करें ! यही विधि और संविधान के अनुसार उचित होगा !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …