मैंने अपने पूर्व के लेख में ईसाई शासकों द्वारा पूरी दुनिया में जो अत्याचार किये गये थे ! उनका विस्तृत वृत्तांत दिया है ! जिससे यह सिद्ध होता है कि वास्तव में यीशु मसीह जैसे संत की ओट में खड़े हुये यह अंग्रेज शासक मूलत: क्रूर, तानाशाह, षड्यंत्रकारी, नरपिशाच थे ! जिन्होंने अपने गंदे चेहरे को छिपाने के लिये यीशु मसीह जैसे महान संत की ओट ले रखी थी !
ठीक इसी तरह अरब के भूखे-नंगे रेगिस्तान में पलने वाले जहां न तो कोई उद्योग धंधा था ! न ही कृषि थी और न ही विश्व को देने के लिये कोई ज्ञान था ! पशुओं की तरह बेतहाशा बढ़ती हुई इनकी जनसंख्या धीरे धीरे अपराध की तरफ मुड़ गई और इन्होंने अपने निर्वाह के लिये शस्त्र उठा लिये ! पहले तो खुद ही आपस में लड़े फिर छोटे-छोटे गिरोह बनाकर पूरी दुनिया को लूटने निकल पड़े !
मंदिरों को तोड़ा, खजाने को लूटा, बेतहाशा हत्यायें की, बहू बेटियों का अपहरण कर उन्हें यौन दासी के रूप में पूरे विश्व में बेचा ! तलवार और बारूद का भय दिखाकर सम्पन्न और शांतिप्रिय समाज को अपने अधीन कर लिया और बड़े-बड़े साम्राज्यों को लूट कर, षडयंत्र और विश्वासघात करके भूखे नंगे रेगिस्तान में घूमने वाले अशिक्षित जाहिल हत्यारे सुल्तान खुद ही बन बैठे ! इनके द्वारा लूट और हत्या का सिलसिला सदियों तक चलता रहा ! इन सुल्तानों के मध्य गैर मुसलमान काफिर के नर मुंडो की ऊंची से ऊंची इमारत बनाने की प्रतियोगिता चलती रही !
कहने को तो यह सुल्तान थे लेकिन वासना और नशा के भूखे इन सुल्तानों के हरम में हजारों गैर मुसलमान काफिरों की बहू बेटियों की मंडिया लगा करती थी ! जिन्हें मीना बाजार कहा जाता था और नशे के वहशी दरिंदे अपने हवस की आग बुझाने के लिये इस मीना बाजार में सैनिकों के तलवार के साये में डरी सहमी अबोध बालिकाओं को अपने हवस का शिकार बनाने के लिये टूट पड़ते थे !
न जाने कितने दूध मुहे बच्चों की हत्या उनकी मां के सामने ही कर दी जाती थी ! लोगों को दीवाल में जिंदा चुनवा दिया जाता था ! जमीन खोदकर जिंदा ही गाड़ दिया जाता था और नहीं कुछ मिला तो खौलते तेल के कढ़ाई में उन्हें जिंदा ही तल दिया जाता था !
यह भय और आतंक मात्र इसलिये कि इन अनपढ़, जाहिल, संवेदनावहींन शासकों के विरुद्ध कहीं कोई बगावत का स्वर न निकले ! फिर भी कालचक्र ने इन आतंकियों का साम्राज्य ईसाई शासकों द्वारा जड़ मूल से खत्म करवा दिया ! जिनके पूर्वज कभी राज घराने से संबंध रखते थे ! आज वह फुटपाथ पर चप्पले बेच रहे हैं !
प्रकृति को कांटे से कांटा निकालना आता है ! प्रकृति का खेल निराला है ! आज प्रकृति पूरी तरह से खेलने के मूड में दिख रही है ! जो कभी तलवार लेकर पूरी दुनिया पर शासन करने का ख्वाब देखते थे ! आज वह अपने घरों में छिपकर बैठे हैं ! दूसरी तरफ अपनी संपन्नता और ज्ञान का ढिंढोरा पीटने वाले विश्व में अपने को अति संपन्न कहने वाले भी भय वश अपने घरों की खिड़की दरवाजे नहीं खोल रहे हैं ! यही है काल का कहर !
यह प्रकृति का खेल निराला है ! जिसके पूर्वजों ने इस प्रकृति की व्यवस्था पर जितना अत्याचार किया है ! आज वह उतने ही कठोर दंड का भागी होगा ! जिनके पूर्वजों ने विपत्ति काल में भी ईश्वर पर आस्था नहीं छोड़ी ! बस सिर्फ वही लोग इस प्रकृति की व्यवस्था में बचेंगे ! बाकी समस्त पृथ्वी पर कीड़े-मकोड़ों की तरह विचरण करने वाले पूर्व जन्मों के आताताई क्रूर तानाशाह, वहशी दरिंदे, काल के प्रवाह में मात्र एक भूनगे की तरह हैसियत रखने वाले सब के सब नष्ट हो जायेंगे !
इसके बाद बस और बस सिर्फ सत्य सनातन धर्म ही बचेगा ! यह प्रकृति के शुद्धि का काल है ! इसमें किसी का कोई दोष नहीं है ! जिस ने पूर्व में जैसा कृत्य किया है वह वैसा ही उसका दंड भोगेगा ! यही प्रकृति का विधान है !!