वन गमन से चेतना शक्ति का विकास : Yogesh Mishra

आपने बहुत बार यह महसूस किया होगा कि जब आप शहर से दूर कहीं किसी बड़े पार्क में या जंगल की तरफ यात्रा करते हैं, तो आपके अंदर स्वत: ही स्फूर्ति का विकास होने लगता है अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि आपकी चेतना शक्ति इस शहर रूपी कंक्रीट के जंगल से दूर होते ही स्वत: विकसित और स्फूर्तिवान हो जाती है !

अब प्रश्न यह है कि ऐसा होता क्यों है ?

इसका स्पष्ट उत्तर है कि मानव शरीर पृथ्वी तत्व से बना है और इस पृथ्वी तत्व का पोषण पृथ्वी पर जितने भी तरह के तत्व हैं, उन सभी से होता है !

जब हम मानव निर्मित कृतिम शहर में लंबे समय तक स्थाई निवास करते हैं, तो हमारे शरीर में पृथ्वी तत्व का पोषण रुक जाने के कारण उसकी कमी हो जाती है और पृथ्वी तत्व के आभाव में हम मानसिक और शाररिक रूप से बीमार रहने लगते हैं !

क्योंकि हमारे शरीर की स्वाभाविक शोधन प्रक्रिया रुक जाती है और हमारा शरीर विभिन्न तरह के विकारों से शोधन प्रक्रिया रुक जाने के कारण अनावश्यक रूप से विजातीय तत्वों को अपने शरीर में स्थान देने लगता है !

धीरे-धीरे यही विकार विभिन्न अंगों के निष्क्रिय होने का कारण बन जाता है और मनुष्य अंगों की निष्क्रियता के कारण पहले तो व्यक्ति अस्थाई फिर स्थाई रूप से बीमार रहने लगता है !

हमारे ऋषि-मुनियों मनीषियों ने इसी प्रकृति और शारीरिक सम्बन्ध की व्यवस्था को देखते हुए नगरों और गांव से दूर पर्वतों के चोटी पर मंदिरों का निर्माण करवाया था ! जिसमें प्रति माह एक निश्चित तिथि को सभी नगर वासियों का आना धर्म के नाम पर परम आवश्यक था ! जिसे पाप और पुण्य से जोड़ा गया !

इसके पीछे उद्देश्य यह था कि मनुष्य अपने दैनिक दिनचर्या के कार्य से समय निकालकर एक या 2 दिन के लिए अवश्य रूप से प्रकृति के संपर्क में रहे ! जिससे प्रकृति मनुष्य के विजातीय तत्वों के शोधन का कार्य स्वाभाविक अवस्था में कर सके !

यही वजह है कि जब हम जंगल, पहाड़, पर्वत आदि क्षेत्रों में जाते हैं, तो हमारे शरीर से विजातीय तत्वों का स्वाभाविक शोधन आरंभ हो जाता है और हम अपने अंदर स्फूर्ति का अनुभव करते हैं !

जिससे हमारी जीवनी शक्ति उधर्व आगामी होती है और हम अपने को अधिक स्वस्थ महसूस करते हैं ! यही कारण है कि व्यक्ति को सदैव प्रकृति के निकट रहना चाहिए वरना व्यक्ति अवसाद तथा अन्य शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रसित हो जाएगा !

भगवान श्री राम तथा पांडव में अद्भुत युद्ध करने का सामर्थ्य लंबे समय तक वन गमन के कारण ही प्रगट हुआ था क्योंकि वन ही आपके प्राकृतिक पृथ्वी तत्व को स्वाभाविक अवस्था में विकसित कर सकते हैं !

जिसके बाद आपके अंदर प्रचंड शक्ति का प्रवाह होने लगता है ! इसलिए व्यक्ति को अपने व्यस्ततम जीवन से समय निकालकर वर्ष में कम से कम 2 बार हफ्ते 10 दिन के लिए प्रकृति की गोद में वन गमन अवश्य करना चाहिए !!

विशेष : अब मैं संवाद हेतु आनलाईन वेबनार में भी उपलब्ध हूँ ! मेरे ज्ञानवर्धक सत्संग से जुड़ने के लिये कार्यालय में संपर्क कीजिये !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

नॉलेज और विजडम में अंतर : Yogesh Mishra

नॉलेज का सामान्य अर्थ सूचना की जानकारी होना है और विजडम का तात्पर्य सूचना के …