भगवा ध्वज वैष्णव विजय का प्रतीक है ! पढ़िए पूरा इतिहास : Yogesh Mishra

भगवा ध्वज भारत का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक ध्वज है ! बतलाया जाता है कि यह त्याग, बलिदान, ज्ञान, शुद्धता एवं सेवा का प्रतीक है ! ध्वज का भगवा रंग उगते हुए सूर्य का रंग है साथ ही प्रज्वलित अग्नि के ज्वालाओ का भी रंग है ! उगते सूर्य का रंग होने के कारण इसे वैष्णव ज्ञान और वीरता का प्रतीक माना गया है इसीलिये हमारे वैष्णव पूर्वजों ने इसे अपना प्रेरणा स्वरूप माना था ! यह वैष्णव ध्वज आर्य संस्कृति का शास्वत सर्वमान्य प्रतीक चिन्ह है ! यह वैष्णव ध्वज भगवान विष्णु की सेना के रथों पर रणभूमि में लहराता था !

कालान्तर में वैष्णव विश्व विजय के उपरान्त यही भगवा ध्वज प्रत्येक पवित्र स्थान मन्दिर, मठ, आश्रम, पर फहराया जाने लगा ! यह वैष्णव हिन्दुओं के महान विजय का प्रतीक बन गया ! आज हजारों हजार सालों से यह भारत के शूरवीरों के लिये सम्मान का विषय बना हुआ है ! लाखों शूरवीरों ने इसकी रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये !

भगवा ध्वज दो त्रिकोणों से मिलकर बना है जिसमें से ऊपर वाला त्रिकोण नीचे वाले त्रिकोण से छोटा होता है ! ध्वज का भगवा रंग उगते हुए सूर्य का रंग है यही हवनकुंड की आग का रंग है ! इसीलिए वैष्णव ने इसे अपनी प्रेरणा और विजय का स्वरूप माना था !

यह ध्वज वैष्णव धर्म की समृद्धि, विकास, अस्मिता, ज्ञान और विशिष्टता का प्रतीक है ! यह भगवा रंग और स्वरूप यज्ञ की अग्नि जो कि वैष्णव धर्म का आधार है उसकी ज्वाला के रंग व स्वरूप का प्रतीक है !

वैष्णव द्वारा यज्ञ को सभी कर्मों में श्रेष्ठतम कर्म बतलाया गया है क्योंकि यह धर्म ठण्डे जगह (हिम-आलय ) से निकल कर आया था ! जबकि अन्य संस्कृति दानव, दैत्य, यक्ष, रक्ष, नाग, गरुण, वन नर आदि गर्म शैव क्षेत्र में पनपी थी ! इसीलिये शैव अपने इष्ट भगवान शिव की उपासना प्रकृति द्वारा उपलब्ध बेल, बेल पत्र, भांग, धतूरा, दूध, दही, शहद, जल आदि से (रुद्राभिषेक) करते थे !

आपने देखा होगा भगवान शिव के कई मंदिरों पर अर्ध चंद्र अंकित ध्वज फहराया जाता है ! नाग मंदिरों में नाग का चिह्न अंकित नाग ध्वज रहता है ! अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चित्र अंकित था ! कृपाचार्य की ध्वजा पर सांड, मद्रराज की ध्वजा पर हल, अंगराज वृषसेन की ध्वजा पर मोर और सिंधुराज जयद्रथ के झंडे पर वराह की छवि अंकित थी ! गुरू द्रोणाचार्य के ध्वज पर सौवर्ण वेदी का चित्र था तो घटोत्कच के ध्वज पर गिद्ध राज विराजमान थे ! दुर्योधन के झंडे पर रत्नों से बना हाथी था जिसमें अनेक घंटियां लगी हुई थीं ! इस तरह के झंडे को जयन्ती ध्वज कहा जाता था !

भगवान श्रीकृष्ण के झंडे पर गरूड़ अंकित था ! बलराम के झंडे पर ताल वृक्ष की छवि अंकित होने से तालध्वज कहा जाता था ! महाभारत में महाराज शाल्व के ध्वज को अष्टमंगला ध्वज कहते थे ! इसी तरह अन्य प्राचीन ग्रंथों के अनुसार अनेकों गैर वैष्णव राजा अपने-अपने झंडे के ऊपर बाज, वज्र, मृग, छाग, प्रासाद, कलश, कूर्म, नीलोत्पल, शंख, सर्प और सिंह की छवियां अंकित करते थे !

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार धूमकेतु झंडे का खूब प्रयोग होता था ! निषादराज गुह की नौकाओं पर स्वस्तिक ध्वज लहराता था ! महाराज जनक का सीरध्वज के पास कुषध्वज था !

भगवन शिव के शैव भक्त परशुराम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि ने कभी भी वैष्णव भगवा ध्वज नहीं लहराया था !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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