गांधी स्वयं को कष्ट देकर दूसरे पर दबाव बने की स्त्रियोचित आन्दोलन व्यवस्था की कला के आविष्कारक नहीं थे बल्कि यह उनके गुजराती परिवार महिलाओं द्वारा सदियों से इस्तेमाल की जाने वाले संस्कार की अभिव्यक्ति मात्र थी !
गुजरात कभी सशस्त्र युद्ध प्रधान क्षेत्र नहीं रहा है ! यह सदैव से अपने व्यापार के लिये भी गला काट प्रतिस्पर्धा में सदा विपत्ति में भी अवसर तलाश लेने के जीवन दर्शन को मान्यता देता रहा है !
यही संस्कार वहां के स्त्रियों में भी रहे हैं ! स्त्रियाँ स्वेच्छा से परिवार के नाम पर पुरुष का दासत्व स्वीकार करती हैं और फिर बिना किसी संघर्ष के पुरुष को अपना गुलाम बना लेती हैं ! ऐसा सदियों से हो रहा है ! यह एक बहुत सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक खेल है ! इसके बहुत ही सूक्ष्म तरीके हैं ! जिस पर प्राय: पुरुष प्रधान समाज ध्यान नहीं देता है ! यह मनोवैज्ञानिक सामाजिक या पारिवारिक शतरंज में पैदल से बादशाह को मारने की कला है !
एक गुजराती स्त्री आपसे कभी प्रत्यक्ष नहीं लड़ेगी वह सदैव यह कहेगी कि वह आप पर आश्रित एक निर्बल अबला है और दूसरी तरफ अपने जिद्द की पूर्ति के लिये वह रोएगी और तब तक रोएगी जब तक आप हार न मान लें । वह आपको नहीं मारेगी, वह खुद को मारेगी और खुद को मारने के माध्यम से रो रो कर आपको हारने के लिये बाध्य कर देगी ! वह आपको अपनी जिद्द मनवा कर रहेगी ! इसे दूसरे शब्दों में भावनात्मक आक्रमण भी कहा जा सकता है !
जो ताकतवर से ताकतवर आदमी को भी झुकने के लिये बाध्य कर देता है ! इस तरीके एक बहुत पतली, कमजोर औरत एक बहुत ताकतवर आदमी पर हावी हो जाती है और उसे अपना गुलाम बना लेती है ! शास्त्रों में इसे त्रिया चरित्र कहा गया है !
भारतीयों सशस्त्र संघर्ष विरोधी मानसिकता को देखते हुये गांधी ने इसी पद्धति का सहारा लिया ! जिसके वह कोई आविष्कारक नहीं थे ! बल्कि इस पध्यति का इस्तेमाल गुजराती महिलायें सदियों से करती चली आ रहीं हैं ! उन्होंने बस इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया था !
गाँधी से पहले इस पध्यति का इस्तेमाल अपने अनुनायियों की संख्या बढ़ाने के लिये गौतम बुद्ध ने भी किया था और जिन्होंने अपने जीवन काल में अपने चालीस हजार अनुयायी बनाये थे ! जब भारत की आबादी मात्र चार करोड़ हुआ करती थी और इसी सिधान्त से उन्होंने सत्य सनातन हिन्दू धर्म के स्थान पर बौद्ध जीवन दर्शन की स्थापना कर दी थी !
यह है भावनात्मक स्त्रियोचित आन्दोलन का महत्व ! जिसे बाद में गाँधी ने अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिये इस्तेमाल किया और देश का बंटवारा कर लाशों के ढेर पर खड़े होकर वह महात्मा गाँधी बन गये !!