“दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना ! जिससे किसी भी देश का आर्थिक विकास रुक जाता है ! यह साम्राज्यवादी शक्तियों का बहुत ही पुराना और सोचा समझा हुआ खेल है ! इस खेल को समाजवाद या अंतर्राष्ट्रीय भाषा में कॉम्युनिस्ट विचारधारा कहा जाता है !
यह विचारधारा उस घातक हथियार की तरह है जो किसी भी देश या क्षेत्र के आर्थिक विकास को रोकता ही नहीं बल्कि वहां के भविष्य के आर्थिक विकास की संभावनाओं को भी नष्ट कर देता है ! उदहारण के लिये बंगाल जो कभी सबसे संपन्न राज्य था ! वह इस कॉम्युनिस्ट विचारधारा के प्रभाव में पूरी तरह आर्थिक रूप से जल कर नष्ट हो गया है !
कमोवेश यही हाल हर उस उद्योगिक नगरों का है जो इस कॉम्युनिस्ट विचारधारा की चपेट में आ गये ! फिर चाहे वह कानपुर, आगरा हो या मुंबई हो या कोई भी अन्य औद्योगिक नगर हो ! अब कॉम्युनिस्ट विचारधारा के कमजोर पड़ जाने पर पर्यावरण नियंत्रण के नाम पर कुटीर उद्योगों का गला घोंटा जा रहा है और मजे की बात यह है कि सभी संवैधानिक संस्थायें इस षडयंत्र में खुल कर सहयोग कर रही हैं !
आईये विचार करते हैं कि कॉम्युनिस्ट विचारधारा का अफीम काम कैसे करता है ! मनुष्य में आलस्य, लालच, और अहंकार प्राकृतिक गुण है ! जो अव्यवस्थित जीवन शैली के कारण मजदूर वर्ग में सर्वाधिक पाया जाता है ! मजदूर समाज का हर व्यक्ति बिना काम किये ही जल्दी से जल्दी सम्पन्न होना चाहता है ! बस मजदूरों की इसी प्रवृत्ति का लाभ समाज में कॉम्युनिस्ट विचारधारा के ख़िलाड़ी उठाते हैं !
लोकतंत्र में सभी के वोट समान हैं ! इसलिये कॉम्युनिस्ट विचारधारा का ख़िलाड़ी जब मजदूर वर्ग की सुविधाओं के नाम पर उनको गुमराह करता है तो वह गरीब व्यक्ति बिना सोचे समझे उनके साथ हो जाता है ! जिसका लाभ उठाकर कॉम्युनिस्ट नेता उद्योगपतियों को डरते धमकाते हैं और उनका आर्थिक शोषण शुरू कर देते हैं !
जहाँ तक होता है संभव है उद्योगपती इन कॉम्युनिस्ट नेताओं से समझौता करते रहते हैं और जब उनका शोषण अधिक होता है तो वह उद्योग बंद कर देते हैं ! जिससे कॉम्युनिस्ट नेताओं का तो कुछ नहीं बिगड़ता है ! पर मजदूर वर्ग जरुर बर्बाद हो जाता है !
और जो मजदूर इस षडयंत्र में उनका साथ नहीं देता है, उसकी या तो हत्या हो जाती है या फिर उसे पूंजीपतियों का दलाल कह कर मजदूर समाज से बहिस्कृत कर दिया जाता है !
कुल मिला कर कहने का तात्पर्य यह है कि साम्राज्यवादियों द्वारा रचे गये बौद्धिक षड्यंत्र में आलस्य, लालच, और अहंकार पर आश्रित कॉम्युनिस्ट विचारधारा वह घातक अफीम है, जिसका स्वाद चखने के बाद मजदूर वर्ग स्वत: अपने ही निर्णयों से स्वयं को ख़त्म कर लेता है और किसी भी देश या समाज का आर्थिक विकास चक्र रुक जाता है !!