गौतम बुद्ध उतने मायावी थे नहीं जितना इनके शिष्यों ने उन्हें बना दिया ! इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व भगवान श्री राम के ही वंश की एक शाखा इक्ष्वाकु सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश के “शाक्य कुल” के राजा शुद्धोधन के घर में उनकी पत्नी महामाया के गर्भ से हुआ था ! उनकी माँ कोलीय वंश से थीं ! जिनका बुद्ध के जन्म के सात दिन बाद ही निधन हो गया !
अत: इनका पालन पोषण महारानी की सगी छोटी बहन जो गौतम बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन की दूसरी पत्नी महाप्रजापती गौतमी थी ! उन्होंने किया था ! गौतम बुद्ध निराशावादी दृष्टिकोण के व्यक्ति थे ! यह सदैव हताश, निराश और उदास रहते थे ! इनको प्रसन्न रखने के लिये बहुत सारे प्रयास किये गये लेकिन सभी प्रयास असफल रहे ! इस “अवसाद” की स्थिति के कारण इन्हें शिक्षा हेतु किसी गुरुकुल में भी नहीं भेजा गया ! इनकी आरंभिक शिक्षा औपचारिक रूप से घर पर ही हुई !
इसीलिये इन्हें उस समय की सर्वश्रेष्ठ संस्कृत भाषा का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था और संस्कृत का ज्ञान न होने के कारण इन्होंने कभी भी कोई सनातन धर्म के ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया था और न ही संस्कृत के किसी विद्वान आचार्य से ही इन्होंने धर्म शास्त्र की कोई शिक्षा प्राप्त की थी ! क्योंकि इन्हें संस्कृत नहीं आती थी ! अतः विद्वान जन भी इनको सनातन वैदिक ज्ञान की शिक्षा न दे सके !
किंतु उच्च कुल के राजघराने के राजकुमार होने के नाते इनका विवाह अपने पिता की सगी छोटी बहन अर्थात बुआ की लड़की जो कि कोलीय वंश के राजा सुप्पबुद्ध की पत्नी पमिता थी ! उसी की पुत्री “यशोधरा” से 16 वर्ष की आयु में हो गया था ! किन्तु गौतम बुद्ध के कोई संतान नहीं हो रही थी ! अत: संतान प्राप्ति हेतु गौतम बुद्ध का बहुत समय तक आयुर्वेदिक इलाज हुआ ! तब जा कर यशोधरा ने विवाह के 13 वर्ष बाद 29 वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया ! जिसका नाम राहुल था ! तब गौतम बुद्ध शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को छोड़ कर 35 वर्ष की आयु में अवसाद की अवस्था में बोध गया बिहार के साधुओं की कीर्तन मंडली के साथ बोध गया बिहार में चले आये !
और बोध गया के निकट निरंजना नदी के तट पर जंगल में एक पीपल के विशाल वृक्ष के नीचे रहने लगे ! वहां कुछ भी खाने पीने को न था ! बस सिर्फ नदी के पानी के अलावा ! अत: कुछ दिन बाद भूख से निढ़ाल होकर वह अर्ध मूर्क्षित अवस्था में वहीँ पड़े रहे ! तभी संयोग से समीपवर्ती गाँव की एक स्त्री सुजाता को पुत्र हुआ और वह बेटे के लिये एक पीपल वृक्ष से मन्नत पूरी करने के लिये गाय के दूध से बनी खीर लेकर जा रही थी ! तभी गौतम बुद्ध को अर्धमूर्क्षित अवस्था में पड़ा देखकर उसने अपनी सारी खीर इन्हीं को खिला दी ! तब गुलूकोज मिलने से इनको होश आया और यह उठ कर बैठ गये ! जिस पीपल वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध रहते थे ! उसी को बाद में “बोधिवृक्ष” कहा गया और उसका समीपवर्ती नगर “बोधगया” के नाम से प्रसिद्द हो गया !
अब सुजाता के माध्यम से धीरे-धीरे “बोधगया” क्षेत्र में गौतम बुद्ध का प्रचार-प्रसार होने लगा ! तो क्षेत्र के बहुत से निचली जाति के लोग वहाँ गौतम बुद्ध के निकट प्राय: सुबह-शाम समय पास करने के लिये आकर बैठने लगे ! किंतु इन्हें संस्कृत भाषा नहीं आती थी ! अतः यह क्षेत्रीय पाली भाषा में ही लोगों से बातचीत किया करते थे ! किसी के द्वारा इनकी जाति पूछे जाने पर यह अपनी जाति छिपा लेते थे ! क्योंकि उस काल में ब्राह्मणों को ही सन्यास लेकर भगवा पहनने का अधिकार था ! धीरे-धीरे यह जिन कीर्तन मंडली के साधुओं के साथ यहाँ नेपाल से आये थे ! उनके माध्यम से इनका रहस्य खुलने लगा और लोगों ने ब्राह्मण न होने के कारण इनको वहां से भगा दिया !
तब यह काशी आ गये और बहुत समय तक काशी में भटकते रहे ! उस समय काशी में लगभग सभी लोग संस्कृत भाषा में बोलते थे ! इन्हें संस्कृत नहीं आती थी ! अत: वहां भी इनकी दाल नहीं गाली ! तब यह काशी के निकट सारनाथ नामक स्थान पर आकर शूद्रों की बस्ती के निकट रहने लगे ! वहां पर गौतम बुद्ध की जन्म स्थली लुम्बनी के कुछ शुद्र भी रहा करते थे ! जिनके माध्यम से लुम्बनी इनके पिता शुद्धोधन को गौतम बुद्ध के सारनाथ में होने की सूचना मिली तब गौतम बुद्ध को घर बापस लाने के लिये इनके ममेरे भाई आनंद को भेजा गया !
लेकिन जब वह सारनाथ पहुंचे तो देखा कि तब तक सारनाथ के काफी शुद्र इनके शिष्य बन चुके थे ! अत: व्यवसायिक बुद्धि के आनंद भी कुछ समय बाद इनके साथ ही सारनाथ में आकर रहने लगे ! आनंद क्योंकि व्यवसायिक सोच के व्यक्ति थे ! अत: उन्हों इस बात को समझने में बिल्कुल विलंब नहीं लगा कि क्षत्रिय होने के नाते गौतम बुद्ध को कभी भी सन्यास के क्षेत्र में जनसमर्थन प्राप्त नहीं होगा ! अत: उन्होंने इन्हें काशी सारनाथ आते ही इनको बोध गया बिहार का ब्राह्मण बतलाना शुरू कर दिया ! जिससे समाज में यह भ्रम पैदा हुआ कि बुद्ध के काल में एक साथ दो बुद्ध हुये हैं ! एक जो वास्तविक बुद्ध क्षत्रिय थे और दूसरे बोधगया के निकट ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ बुद्ध जो ब्राह्मण थे और यह भ्रम आज तक चला आ रहा है !
लेकिन यह सूचना गलत है ! गौतम बुद्ध एक ही थे जो क्षत्रिय कुल में पैदा हुये थे ! लेकिन सन्यास की तीव्रता के बाद भी जब ब्राह्मण न होने के कारण लोगों ने इनकी शिष्यता लेने से बोधगया में मना कर दिया ! तब इनके भाई आनंद ने सारनाथ में इन्हें क्षत्रिय के स्थान पर ब्राम्हण कुल का घोषित कर दिया था !
वहां पर इन्होंने सभी वर्ण के लोगों को खास तौर से शूद्रों को अपना शिष्य बनाना शुरू कर दिया ! जिनको शिष्य बनाते ही आनंद सर घुटवा कर यह भगवा पहना देते थे ! जो भगवा पहनना उस समय गैर ब्राह्मणों के लिये बड़े गर्व की बात थी ! संस्कृत न आने के कारण यह अपने विचार संस्कृत भाषा में नहीं रख पाते थे ! इसलिये इनके ममेरे भाई आनंद जो एक व्यवसायिक सोच के व्यक्ति थे ! वह गौतम बुद्ध की तरफ से जनता को संबोधित किया करते थे और गौतम बुद्ध सभा में ध्यानास्त बैठ कर मात्र अपनी उपस्थिती दर्ज करवाते थे !
इसी बीच आनंद का सम्पर्क बनारस के एक द्रोंण मिश्र नामक नास्तिकवादी औघड़ ब्राह्मण से हुआ ! जो अन्त तक गौतम बुद्ध के साथ रहा ! आनंद जो जनता को प्रवचन में बतलाते थे ! वह सब कुछ द्रोंण मिश्र ही आनंद को लिख कर दिया करते थे ! जो आज गौतम बुद्ध के नाम से बौद्ध ज्ञान के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है !
80 वर्ष की उम्र मांसाहार भोजन प्रिय गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी मांसाहारी भोजन सड़े मीट से निर्मित भोजन कुन्डा नामक एक लोहार से एक भेंट के रूप में प्राप्त कर किया था ! जिसको खाने से उन्हें सेफटिक हो गया था ! जिसके कारण वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गये और उनकी मृत्यु गोरखपुर के निकट कुशी नगर नामक स्थान पर हो गई !
गौतम बुद्ध मरने पर 6 दिनों तक उस अहिंसा के प्रचारक के अनुयायियों के मध्य गौतम बुद्ध के अवशेषों को लेकर मगध के राजा अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्यों और वैशाली के क्षत्रियों आदि के बीच भयंकर युद्ध हुआ ! जिसमें हजारों लोग मरे गये !
तब इसी बनारस के नास्तिकवादी औघड़ ब्राह्मण ने द्रोण मिश्र ने झगड़ा शांत करवा कर इनके मध्य समझौता करवाया ! तब सातवें दिन शव को जलाया गया ! फिर जले हुये शव के अवशेषों को आठ भागों में बांट लिया गया सभी राजाओं को शव के अवशेष देकर बराबर का अधिकार दिया गया ! तब ऐसा में आठ स्तूप आठ राज्यों में बनाकर उन शव के अवशेष को सुरक्षित रखा गया ! बताया जाता है कि बाद में सम्राट अशोक ने भारत विजय के बाद उन्हें निकलवा कर 84000 स्तूपों में बांट दिया था !!