देश का उद्धार न सत्ता परिवर्तन से होगा और न ही व्यवस्था परिवर्तन से : Yogesh Mishra

राजीव दीक्षित के बहुत से अनुयायियों द्वारा प्राय: अपने वक्तव्य में मैंने यह कहते हुये सुना है कि देश को सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है !

आज मैं इस विषय पर कुछ अपना विचार व्यक्त करना चाहता हूं ! मेरे दृष्टिकोण से सत्ता और व्यवस्था नि:संदेह दोनों अलग-अलग चीजें हैं ! सत्ता का तात्पर्य है कि लोकतांत्रिक पद्धति से जब कोई व्यक्ति जन प्रतिनिधि के रूप में चुन कर संसद या विधानसभा में जाता है ! तब उस स्थिति में केंद्र में राष्ट्रपति एवं राज्य में राज्यपाल द्वारा जिस जनप्रतिनिधि के पास सर्वाधिक जनप्रतिनिधियों का समर्थन होता है ! उसे बुलाकर देश के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलवाई जाती है फिर वह व्यक्ति अपना जनसमर्थन सदन में सिद्ध करता है ! इसके बाद वह केंद्र या राज्य की सत्ता चलाता है !

ऐसी स्थिति में जो जनप्रतिनिधियों का समर्थन प्राप्त शीर्षथ व्यक्ति है ! उसी की सरकार कहीं जाती है और वह व्यक्ति संविधान के अनुसार देश की या राज्य की शासन व्यवस्था चलाता है ! वैसे यह बात अलग है कि अब बेईमान राजनीतिज्ञों ने शीर्षस्थ व्यक्ति के चयन के लिये जनप्रतिनिधि होने की अनिवार्यता नियुक्ति के समय समाप्त कर दी है अर्थात नियुक्त के बाद 6 माह के अंदर उस व्यक्ति को दोनों सदनों में से किसी भी सदन की सदस्यता ले लेना आवश्यक बतलाया गया है जोकि पूरी तरह से संविधान की मूल भावना के विपरीत है !

अतः लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि के रूप में कोई भी व्यक्ति चुना जाये लेकिन उसे शासन सत्ता संविधान के अनुसार ही चलानी पड़ेगी ! इसीलिये कहा जाता है कि हम बार-बार सत्ता के अगुआ व्यक्ति को बदल देते हैं लेकिन जो संविधान की व्यवस्था है ! जिस व्यवस्था के तहत सत्ता में बैठा हुआ व्यक्ति शासन सत्ता चलाता है ! उसको जब तक नहीं बदला जायेगा ! तब तक देश का उद्धार नहीं हो सकता है इसलिये व्यवस्था को भी बदलना बहुत आवश्यक है !

आइये अब चर्चा करते हैं ! व्यवस्था परिवर्तन की ! व्यवस्था परिवर्तन पर कोई भी चर्चा करने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था क्या है और हम क्या परिवर्तित करना चाहते हैं ! जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत में संविधान सर्वोपरि विधिक सत्ता है ! इस के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति कार्य करता है और उसके द्वारा निर्गत की गई शक्तियों से प्रधानमंत्री या उसका मंत्रिमंडल कार्य करता है और राष्ट्रपति न्यायपालिका में जिन व्यक्तियों को न्यायमूर्ति या न्यायाधिपती नियुक्त करता है ! न्याय देने के लिये वह लोग भी राष्ट्रपति द्वारा निर्गत की गयी संवैधानिक शक्ति के अंतर्गत ही न्यायिक कार्य कर सकते हैं ! अतः सिद्ध है कि भारत के अंदर व्यवस्था सर्वोच्च विधिक शक्ति संविधान में ही निहित है ! तो क्या संविधान ही बदलना पड़ेगा !
यदि हाँ तो इसे विधि में कौन बदल सकता है !

इसी संविधान के द्वारा प्राप्त शक्तियों से विधायिका देश के लिये विधि का निर्माण करती है और कार्यपालिका विधायिका द्वारा निर्मित विधि को प्रशासनिक अधिकारियों की मदद से क्रियान्वित करती है ! यदि उस विधि के क्रियान्वयन में कहीं अन्याय हो रहा है ! तो न्यायपालिका संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार के तहत याची को न्याय प्रदान करता है !

अब प्रश्न यह है कि क्या व्यवस्था परिवर्तन की बात करने वाले लोग इस संविधान को बदल देना चाहते हैं या इस संविधान के द्वारा जो लोकतांत्रिक व्यवस्था है ! जिसमें कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका अलग-अलग वर्णित है ! अलग-अलग तरह से अपना कार्य करती है ! उन्हें बदल देना चाहते हैं और यदि बदल देना चाहते हैं ! तो बनी हुई नई व्यवस्था कैसी होगी और वह वर्तमान व्यवस्था से किस तरह बेहतर होगी ! आज तक इस विषय पर कोई भी मत स्पष्ट नहीं हो पाया है !

मैं ऐसा मानता हूँ कि हर देश की सभ्यता, संस्कृति, विचार, भाषा, धर्म, कार्यशैली और जीवन शैली अलग-अलग होती है ! अतः कभी भी यह नहीं हो सकता कि किसी एक शासन पद्धति का निर्माण करके पूरी दुनिया को उसी शासन पद्धति से चलाया जा सकता है या वह शासन पद्धति विश्व के सभी सभ्यता संस्कृति के अनुकूल होगी ! इसकी कोई गारंटी नहीं ली जा सकती है !

और शायद यही कारण है कि विश्व के अधिकांश देशों में जहाँ भी लोकतंत्र है वह पूरी तरह से असफल हो चुका है ! प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह न होने के कारण पूरी तरह से भ्रष्ट, नाकारा, अयोग्य, अकर्मण्य, बनकर “कर व्यवस्था” के कारण उस देश के समाज पर बोझ बनकर लदे हुये हैं !

यह स्थिति मानवता के लिये बहुत भयावह है क्योंकि इन नाकारा प्रशासनिक अधिकारीयों और जनप्रतिनिधियों के कारण आज पूरा विश्व महामारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, बेरोजगारी जैसी अनंत समस्याओं को झेल रहा है !

मैं यह बात मानता हूँ कि मात्र सत्ता परिवर्तन से काम नहीं चलेगा लेकिन व्यवस्था परिवर्तन के उपरांत आप वह कौन सी नवनिर्मित व्यवस्था लाना चाहते हैं जो वर्तमान व्यवस्था के विकल्प के रूप में जन सामान्य और राष्ट्र के लिये उपयोगी हो !

इस विषय पर सभी मौन हो जाते हैं लेकिन मैंने आने वाले युग की नई आधुनिक व्यवस्था के विषय में प्राचीन शास्त्रों में बहुत तरह का अध्ययन किया है ! कभी इस विषय पर जब मैं सत्र लूंगा ! तब उसकी चर्चा करूँगा ! लेकिन अगर व्यवस्था परिवर्तन के लिये आपके पास कोई अच्छा मॉडल है तो आप उसे जनहित में जरूर प्रस्तुत कीजिये !

क्योंकि यह मेरा निजी मत है कि भारत जैसे महान राष्ट्र का उद्धार न सत्ता परिवर्तन से होगा न व्यवस्था परिवर्तन से होगा ! बल्कि इसके लिये कुछ और ही मेरे चिंतन में है ! जिससे देश का वर्तमान और भविष्य दोनों ही सकारात्मकता के साथ बदला जा सकता है और भविष्य में उसके बहुत अच्छे परिणाम आने की संभावना है ! जिस पर चर्चा मैं शीघ्र ही अपने विशेष व्यवस्था परिवर्तन सत्र में करूंगा !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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