आदि गुरु शंकराचार्य भगवान् शंकर के साक्षात् अवतार थे ! ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे ! उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार स्वरूप प्रदान किया था ! उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया ! उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं !
उन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी ‘शंकराचार्य’ ही कहे जाते हैं ! वे चारों स्थान ये हैं- (1 ) बदरिकाश्रम, (2) शृंगेरी पीठ, (3) द्वारिका शारदा पीठ और (4) पुरी गोवर्धन पीठ !
इन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था ! ये शंकर के अवतार माने जाते हैं ! इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है ! उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं ! जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है ! स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है !
आदि शंकराचार्य ने वेदों से लोक हित में “अहं ब्रह्मास्मि” का व्यावहारिक प्रयोग बतलाया और इस स्थिती को प्राप्त करने की प्रक्रिया भी बतलाई ! यजुर्वेदः बृहदारण्यकोपनिषत् अध्याय 1 ब्राह्मणम् 4 मंत्र 10 ॥
इसकी पुष्टि महायोगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं करते हुये कहा है कि “सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो” अर्थात “मैँ सभी प्राणीयोँ के दिल में बसता हूँ !” “अहं ब्रह्मास्मि” यह वाक्य मानव को महसुस कराता है कि जिस भगवान ने बड़े-बड़े सागर, पर्वत, ग्रह, नक्षत्र अर्थात यह पूरा ब्रह्मांड बनाया है ! उस अखंड शक्तिस्रोत का मैँ भी अंश हूँ ! तो मुझे भी उसका तेजोँऽश जागृत कर उस जैसा बनने का प्रयत्न करना चाहिए ! तभी हमारे नैतिक व आध्यात्मिक उन्नती की शुरूवात हो सकती है !
इस अवस्था को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है ! उसी प्रक्रिया को ब्रह्मास्मि क्रिया योग साधना कहते हैं ! इस साधना से निम्नांकित लाभ होते हैं !
1. मानसिक शान्ति !
2. आंतरिक प्रसन्नता !
3. आत्मानन्द का अनुभव !
4. आत्म विश्वास की वृद्धि !
5. बुद्धि की स्थिरता !
6. कार्यशक्ति की वृद्धि !
7. मानसिक शक्तियों का विकास !
8. रचनात्मक बुद्धि का विकास !
9. स्मरण-शक्ति व दूरदर्शिता का विकास !
10. व्यक्तित्व का विकास एवं प्रभाव की वृद्धि !
11. विचारों में स्पष्टता !
12. कार्यक्षमता में बृद्धि !
13. उचितानुचित का बोध !
14. चिंता,भय,काम,क्रोध,आसक्ति,और अन्यान्य मानवीय दुर्बलताओं की निवृत्ति,तथा अहिंसा,सत्य,अभय,प्रेमादि दैवीगुणो की अभिव्यक्ति !
15. पारिवारिक और सामाजिक व्यवहार में सुधार !
16. व्यक्तित्व में आकर्षण,माधुर्य एवं दिव्यता का विकास !
17. आदि-व्याधि,मानसिक और शारीरिक रोगों का दूर होना !
18. जीवन में निराश-निशा का समाप्त होना और आशा-उषा का प्राकट्य होना !
19. व्यक्तिगत,पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन में सामन्जस्य का होना !
20. कर्मयोग की व्यावहारिक चरितार्थता !
21. जीवन में ही मुक्ति की प्राप्ति !
हमारे संस्थान सनातन ज्ञान पीठ में ब्रह्मास्मि क्रिया योग साधना का अभ्यास करवाया जाता है ! अधिक जानकारी के लिये कार्यालय में सम्पर्क कीजिये !