सामान्य मनुष्य को ब्रह्म बनाने की प्रक्रिया ही ब्रह्मास्मि क्रिया योग है ! इसमें आपको अपनी जीवनी ऊर्जा को जागृत करके क्रमबद्ध अपना आतंरिक विकास करना होता है और अपने एक एक चक्र को सही दिशा निर्देश में सक्रीय करना होता है !
जैसे ‘मूलाधार चक्र’ जो जननेन्द्रियों और गुदा-द्वार के बीच स्थित है। ’स्वाधिष्ठान चक्र’ जो जननेन्द्रियों के ठीक ऊपर स्थित है ! ‘मणिपूरक चक्र’ जो नाभि के ठीक नीचे स्थित है ! पसलियों के मिलने की जगह के ठीक नीचे हृदय स्थान पर ‘अनाहत चक्र’ होता है ! गले के नीचे के गड्ढे में ’विशुद्धि चक्र’ स्थित होता है ! दोनों भौंहों के बीच ’आज्ञा चक्र’ होता है और सिर के ऊपर ब्रह्मान्द्र में ’सहस्त्रार चक्र’ स्थित है।
सारे ब्रह्माण्ड का सारा खेल इन्हीं सात चक्रों के सक्रीयता और नियंत्रण से शुरू होता है !
अगर आपकी जीवनी ऊर्जा मूलाधार चक्र में प्रबल है, तो आप खाने और सोने को आपके जीवन में सबसे अधिक महत्व देंगे !
अगर यह जीवनी ऊर्जा स्वाधिष्ठान चक्र में प्रबल है, तो आपके जीवन में भोग-विलास को सबसे ज़्यादा महत्व देंगे ! आप संसार में सुख की तलाश करेंगे और भौतिक आनंद में ही जीवन जीना चाहेंगे !
अगर मणिपूरक चक्र प्रबल है, तो आप सामाजिक गतिविधियों में ज़्यादा सक्रिय होंगे ! आप दुनिया में अनेक तरह के अनेकों काम करेंगे ! जिससे आपको धन व यश मिले !
अगर आपका अनाहत चक्र सक्रिय है, तो आप काफी सरल, मिलनसार और सृजनशील व्यक्ति होंगे ! समाज आपकी प्रशंसा करेगा !
अगर आपकी जीवनी ऊर्जा विशुद्धि चक्र को प्रबल करती है, तो आप एक बहुत शक्तिशाली सामाजिक इंसान बन जाएंगे। प्राय: प्रशासनिक अधिकारी या राजनैतिज्ञ इसी ऊर्जा से अपना कार्य करते हैं !
अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा चक्र को प्रबल करती है, तो यहाँ से अध्यात्मिक शक्तियां जाग्रत होना शुरु होती हैं ! आप शांति, स्थिर तथा पञ्च तत्वों को नियंत्रित करने वाले प्रबल बौद्धिक स्तर के प्रबुद्ध व्यक्ति बन जाते हैं ! प्राय: साधक आनंदित होकर यहीं रुक जाते हैं ! जैसे गौतम बुद्ध, विश्वामित्र, अगस्त, हनुमान, तुलसीदास, मीराबाई आदि इसके आगे की यात्रा स्वयं की होती है !
और अगर आपकी जीवनी ऊर्जा स्व प्रयास से सहस्त्रार चक्र में प्रवेश कर जाती है तो आपके अंदर ईश्वरीय ऊर्जा का परम तत्व का विस्फोट होता है ! जिसे समझाया नहीं जा सकता ! तब आपके अन्दर जो घटित होगा वह ऊर्जा का संचार ही आपको ब्रह्म बनाता है ! जैसे आदि शंकराचार्य, कालिदास, वशिष्ठ जी आदि !!
यही वह सात आयाम हैं जो सामान्य मनुष्य को ब्रह्म बनाते हैं और इसको सही तरह से जागृत करने की प्रक्रिया ही ब्रह्मास्मि क्रिया योग है !!