श्री एस. एस. उपाध्याय, पूर्व न्यायाधीश एवं पूर्व विधिक परामर्शदाता, मा० राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, लखनऊ ने अपना मत प्रगट किया है कि ब्राह्मणों का एक वर्ग 21वीं शताब्दी में भी यह मानने को तैयार नहीं है कि भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था ने तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी जातीय सर्वोच्चता समाप्त कर दी है और उन्हें पूर्वकालीन भारतीय शूद्रों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया है !
लेकिन आज ब्राह्मण यह भी मानने को तैयार नहीं हैं कि उनके अनेकों प्राचीन एवं मध्यकालीन ग्रन्थों में कतिपय ऐसे संदर्भ, द्रृटान्त और कथानक विद्यमान हैं, जो वर्तमान लोकतांत्रिक और संवैधानिक मान्यताओं के विरुद्ध ही नहीं हैं ! अपितु मानवीय मूल्यों, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक अवधारणा, बौद्धिकता, तर्क, विवेक और सामाजिक शिष्टाचार के भी विरुद्ध हैं !
ग्रन्थों के इन अमानवीय उद्धरणों को आज के कुछ ब्राह्मण अपने कुतर्कों, पूर्व कालीन जातीय सर्वोच्चता के दम्भ, अस्वीकार्य व्याख्याओं के द्वारा सही ठहराना चाहते हैं ! जिसे भूतपूर्व शूद्र समुदाय कत्तई स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था !
शिक्षा, ज्ञान, बौद्धिकता, तर्क, बौद्धिक चतुराई, बौद्धिक धूर्तता पर अब ब्राह्मणों का एकाधिकार नहीं रहा अपितु भूतपूर्व भारतीय शूद्र भी इन क्षेत्रों में अब न केवल घुस आए हैं अपितु इन सब चतुराइयों में ब्राह्मणों से भी आगे निकल गए हैं ! जिनका समर्थन छद्म रूप में भारत का संविधान भी करता है !
वर्तमान लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था के मूल सिद्धान्तों की अनदेखी करते हुए आज के ब्राह्मणों का एक भाग भूतपूर्व शूद्रों से अपेक्षा करता है कि वह आज भी ब्राह्मणों की जातिगत श्रेष्ठता के दंभ का भार ढोता रहे जबकि मनुस्मृति आदि द्वारा निर्दिष्ट ब्राह्मणों के जातीय दंभ को गत 20वी शताब्दी में ही अम्बेडकर स्मृति (भारत का संविधान) ने ध्वस्त कर दिया था ! जिस मनुस्मृति का रोना आज भी रोया जा रहा है !
ब्राह्मणों की जातीय सर्वोच्चता की अवधारणा के विरुद्ध हिन्दू समुदाय का भूतपूर्व शूद्र समुदाय अब उठ खड़ा हुआ है ! जिसके साथ स्पष्ट रूप से ब्राह्मणों का पाला पोसा संघ भी राजनैतिक कारणों से खड़ा दिखाई दे रहा है !
और अब संघ का दावा है कि जातीय सर्वोच्चता के दावे का पाखंड चलने वाला नहीं है, विशेष कर तब जब ब्राह्मणों के एक वर्ग ने अपने खराब और अति खराब आचार विचार,खान पान,बात व्यवहार,अन्तर्जातीय विवाह आदि से ब्राह्मण समाज की छवि को गंभीर क्षति पहुंचा रखी है !
ब्राह्मणों को भी स्मरण रखना चाहिए कि भक्ति कालीन कई कवियों ने और उनके पूर्व के कई मनीषियों और चिंतकों ने तत्कालीन समाज की जातीय संरचना और प्रचलित परम्पराओं के द्रष्टिगत अपने अपने मत की स्थापना अपने अपने लेखन में किया था जिसका आधार तत्कालीन समाज था ! न कि आज का समाज और उसके लिए उन मनीषियों,विचारकों को दोष देना भी अनुचित होगा क्योंकि साहित्य अपने समकालीन समाज का दर्पण होता है !
पूर्व के विचारकों, चिंतकों, मनीषियों ने अपने अपने समय के समाज में जो जिया, देखा,सुना और पाया,वह सब अपने अपने लेखनों में कह दिया ! आज के ब्राह्मण अनावश्यक ही पूर्व के कवियों, लेखकों आदि की रचनाओं में विद्यमान विवादास्पद अंशों को आज की सामाजिक, राजनीतिक, लोकतांत्रिक, संवैधानिक व्यवस्था में सही और सुसंगत होना सिद्ध करना चाहते हैं, जिसमें अन्ततः वह विफल भी हो जायेंगे !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीमान् मोहन भागवत जी स्वयं मराठी ब्राह्मण हैं परंतु फिर भी उन्होंने जातिगत श्रेष्ठता के दंभ पर तगड़ी चोट की है जो पूरी तरह वेदों के चिंतन के अनुरूप है, सनातन वैदिक सभ्यता संस्कृति और समाज संरचना के वैदिक सामाजिक दर्शन के अनुरूप है परन्तु वेदों, उपनिषदों आदि मूल ग्रन्थों में विद्यमान शास्वत ज्ञान भंडार से कटा हुआ और भक्ति कालीन कवियों, चिंतकों, विचारकों की रचनाओं तक सीमित ब्राह्मणों का एक वर्ग अपने सीमित ज्ञान सागर में सब को डुबकी लगवाना चाहता है और समस्त हिन्दू समुदाय को, विशेष कर भूतपूर्व कथित शूद्रों को, जाति विमर्श पर अपने पूर्वाग्रहों व कुतर्को़ से सहमत कराना चाहता है जो अम्बेडकर स्मृति के वर्तमान युग में अब संभव नहीं है !
हिन्दुओं के अनेकों ग्रन्थों में बौद्ध काल में बौद्ध विद्वानों के द्वारा तमाम ऐसे क्षेपक डाल दिए गए हैं जो मूल ग्रन्थों के अंश नहीं हैं ! ऐसे क्षेपकों के कारण भी ग्रन्थों से अनेक प्रकार के भ्रम व विवाद हिन्दू समुदाय में समय समय पर पैदा होते रहे हैं !
ब्राह्मण को दूरदर्शिता का परिचय देते हुए ग्रन्थों में से विवादास्पद ऐसे क्षेपकों को चिन्हित करने में और उन्हें मूल ग्रन्थों से अलग किए जाने में अपने बुद्धि कौशल का प्रयोग करके अपनी और अपनी अगली पीढ़ियों का भारत में भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं, वृहत्तर हिन्दू समुदाय की एकता और उसकी जातियों, उपजातियों, मतों, पंथों के बीच एकत्व, सद्भाव और समरसता को सुदृढ़ कर सकते हैं, बशर्ते वह कुतर्कों, पूर्वग्रहों आदि की संकुचित धारणाओं से पहले मुक्त हो लें !
ब्राह्मणों को स्मरण रखना होगा कि उन्हीं के पूर्वजों द्वारा वैदिक काल से जिस सनातन सभ्यता व संस्कृति को अभिसिंचित किया गया था उसे विनष्ट करने के लिए ईसाइयत और कट्टर इस्लाम उद्यत है और हिन्दू सभ्यता और संस्कृति को वास्तविक खतरा उन्हीं से है न कि भूतपूर्व शूद्रों से !
ब्राह्मणों का मान सम्मान, भविष्य तभी सुरक्षित है जब बृहत्तर हिन्दू समुदाय बचेगा, रहेगा, न कि ईसाइयत और इस्लाम के आधिपत्य में ! धरती के भूतपूर्व देवताओं (वन्दहुं प्रथम महीसुर चरना, मोह जनित संशय सब हरना) को स्मरण रखना होगा कि सनातन धर्म, सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्र, समाज पर जब जब संकट आया है, उनके पूर्वजों ने अपने बौद्धिक पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए सब की रक्षा की है, अपनी सभ्यता, संस्कृति, समाज, समुदाय का मार्गदर्शन किया है, आज भी उनसे इसी भूमिका का निर्वहन करने की समाज अपेक्षा रखता है, यह अलग बात है कि वह ऐसा करने के इच्छुक हैं या नहीं अथवा तथ्य व तर्क़ हीन कुतर्क में फंसे रहकर आने वाले समय के पदचापों को सुनने से इंकार करते हैं और तदनुरूप अपनी दिशा और दशा को समयानुकूल आकार देना चाहते हैं या नहीं !
धरती के देवताओं में आज भी अकूत बौद्धिक सामर्थ्य है, प्रश्न यह है कि वह इसका उपयोग दूरदर्शिता के साथ करना चाहते हैं अथवा भावनाओं के प्रवाह में बहते हुए 21वीं शताब्दी में नियति का शिकार होना चाहते हैं या फिर अपने पूर्वजों की तरह देश काल परिस्थिती को ध्यान में रखते हुये ! धर्म और राष्ट्र की रक्षा हेतु नये आयाम से विचार करना चाहते हैं !!