शमशान साधना व्यक्ति का आध्यात्मिक पतन करती है !
बामा खेपा, तारापीठ आदि अनेक ऊर्जायें श्मशान में रहती हैं और तामसी शक्तिओं की आराधना करने वाले साधक सामान्यतः श्मशान में ही रह कर इनकी आराधन करके अपना कार्य बनते हैं ! इन्हीं तामसी शक्तियों को प्रायः भूत, प्रेत, योगिनिया, पिसाचनियां इत्यादि नाम दिये जाते हैं ! यह सभी श्मशान भूमि को ही अपना निवास स्थान बनती हैं तथा उनकी आराधना करने वाले साधकों के कार्य करती हैं ! काली, तारा, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, इत्यादि तामसी गुणों से संपन्न देवियों तथा नाना शिव अवतारी भैरवों का घनिष्ठ सम्बन्ध श्मशान से ही है ! भैरव श्मशान के द्वारपाल या रक्षक हैं !
अब प्रश्न यह है कि लोग श्मशान साधना करते क्यों हैं और इससे उन्हें क्या मिलता है ! इसका स्पष्ट जवाब है कि लोग अपने संस्कारों के प्रभाव में श्मशान साधना करते हैं और इससे उन्हें कुछ सांसारिक सफलताएं मिल जाती हैं ! लेकिन श्रीमद भगवत गीता के अनुसार जो व्यक्ति जिस योनि की आराधना करता है, वह मृत्यु के उपरांत उसी को प्राप्त होता है ! अतः यह प्रमाणित है कि शमशान आराधना करने वाले व्यक्ति मृत्यु के उपरांत भूत, प्रेत, पिशाच, जिन्न आदि की योनियों को प्राप्त होते हैं !
अब दूसरा प्रश्न यह है कि क्या शमशान साधना के बिना भी वह सफलतायें प्राप्त की जा सकती हैं, जो श्मशान साधक को प्राप्त होती हैं ! इसका उत्तर है हां क्योंकि प्रकृति अपने कंपन के सिद्धांत से चलती है ! यदि आप प्रकृति से कुछ भी प्राप्त करना चाहते हैं, तो प्रकृति के कंपन के स्तर में परिवर्तन करके आप प्रकृति से वह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं जो इस ब्रह्मांड में उपलब्ध है !
जैसे आदि गुरु शंकराचार्य ने प्रकृति के कंपन में परिवर्तन करके स्वर्ण की वर्षा करवाई थी ! कुबेर ने अयोध्या के निकट राजा रघु के प्रकोप से बचने के लिए प्रकृति के कंपन में परिवर्तन करके रत्नों की वर्षा करवाई थी ! इसी तरह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संत नागार्जुन प्रकृति के कंपन के स्तर में परिवर्तन करके प्रत्येक वस्तु को स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया करते थे !
इस तरह स्पष्ट है कि शमशान साधना करने वाले यदि शमशान साधना से अलग हटकर किसी अन्य साधना पद्धति से प्रकृति के कम्पन के स्तर में परिवर्तन करने में सक्षम हो जाते हैं तो यह निश्चित मानिये कि वह श्मशान साधक उस विधि से वह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं जो उन्हें श्मशान साधना से प्राप्त होता है !
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” पद्धति द्वारा कोई भी साधक प्रकृति के कंपन के स्तर में परिवर्तन करके प्रकृति से कुछ भी प्राप्त कर सकता है !
अतः यदि मृत्यु उपरांत व्यक्ति भूत, प्रेत, पिशाच, जिन्न आदि योनि से बचना चाहता है और साथ ही संसार में भी सांसारिक सफलताएं चाहता है तो उसे “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” साधना को माध्यम बनाना चाहिये क्योंकि यही एक ऐसी सात्विक वृत्ति की उपासना है जिससे व्यक्ति जीवन में सभी सफलताओं को प्राप्त करने के उपरांत भी सीधे मोक्ष को प्राप्त करता है इसलिए शमशान साधकों को भी चाहिये कि वह भी “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” पध्यति से साधना करें ! जिससे यह जीवन सफल हो और मृत्यु उपरांत भी किसी अन्य निम्न योनि में न भोगना भटकना पडे और व्यक्ति मोक्ष की और अग्रसर होता रहे !