इस्लामी तंत्र घातक है
तंत्र शब्द तन और त्र: से मिलकर बना है। तन का अर्थ है विस्तार और त्र से त्राण अर्थात रक्षा का बोध होता है। धर्म ग्रंथों में तंत्र के देवता भगवान शिव को माना गया है। तंत्र विद्या षट् कर्मों में यथा- शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण कर्मों में विभाजित है।
हमारे ऋषिमुनियों ने इस विद्या को समझा और मानव कल्याण के लिए दत्तात्रेय तंत्र, उड्डीस तंत्र, रुद्रयामल तंत्र, गुरु गोरखनाथ का गोरख तंत्र जैसे ग्रंथ आज भी हमें तंत्र प्रयोगों की जानकारी प्रदान कर रहे हैं। तंत्र विद्या का विस्तार भारत में हो रहा था वहीं बौद्ध मतालंबी भिक्षुओं और विद्वानों ने भी इसमें रुचि लेकर इसे बौद्धतंत्र के रूप में विकसित किया।
बौद्धों की तरह ही अन्य धर्मावलंबियों ने भी तंत्र विद्या को अपने मतों के अनुसार अपनाया और वैष्णव तंत्र, शैव तंत्र, शाक्तों द्वारा शक्ति तंत्र व वनस्पति तंत्र के नाम से इसे अपने अध्ययन एवं प्रयोगों से विकसित किया।
परन्तु भारत में इस्लामी शासन में इस्लाम तंत्र का रूप भी आया। वर्तमान समय का इस्लामी तंत्र शास्त्र इन्हीं सनातन तंत्रों का परिवर्तित स्वरूप है। किन्तु सनातन परिपेक्ष्य यह विकृत है यह पिशाच आराधना पर आधारित है (सड़ी गली गड़ी हुई लाश) के इर्द गिर्द अतृप्त पैशाचिक शक्तियां निवास करती हैं
जो आपके इत्र अगरबत्ती आदि के सुगंध से भोजन ग्रहण करतो हैं तथा खुश होकर अपनी पैशाचिक शक्तियों से आपके कार्य करवाती हैं और धीरे –धीरे आप पर अपना अधिकार जमा लेती हैं इसीलिये इस्लाम तंत्र का प्रयोग करने से सनातनी व्यक्ति धर्मच्युत हो जाता है और उसका का पतन प्रारंभ हो जाता है जिससे उसे जन्म दर जन्म इन्हीं पैशाचिक शक्तियों के प्रभाव में नकारात्मक परिणाम भुगतने पडते हैं
इसीको भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भागवत गीता के 9 अध्याय के 25 श्लोक में कहा है
>यान्ति देव व्रताः देवान् पितॄन् यान्ति पितृ व्रताः |
भूतानि यान्ति भूत इज्याः यान्ति मत् याजिनः अपि माम् || (९/२५)
देवतओं को पूजनेवाले देवतओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजनेवाले पितरों को प्राप्त हैं,
भूतों को पूजनेवाले भूतों को प्राप्त होते हैं, मेरा पूजन करनेवाले भी मुझको (प्राप्त होते हैं) | (९/२५)—-
अतः तंत्र की आराधना करने वाले साधकों को अपने लोक परलोक हितों को देखते हुए मात्र सनातन तंत्र की ही आराधना करनी चाहिए —
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