कहने को तो भारत का संविधान अपनी उद्देशिका में भारत के नागरिकों से यह वादा कर है कि वह भारत के प्रत्येक नागरिक के साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय करेगा तथा उसे अवसर की समता प्रदान करेगा ! इसी तरह भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 भी यह वादा करता है कि भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता का अधिकार है तथा भारतीय विधियों के समान संरक्षण से किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता है !
इसी तरह संविधान का अनुच्छेद 15 यह भी कहता है कि सरकार अपने किसी भी नागरिक के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करेगी !
किंतु जब बात शिक्षा और जीविकोपार्जन की आ जाती है तो इसी भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 के उप खण्ड 3, 4 व अनुच्छेद 16 स्पष्ट रूप से सरकारों को यह निर्देशित करता है कि स्त्रियों और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये सरकारें अवसर की समानता के सिधान्तों के विरुद्ध जा कर अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिये विशेष प्रावधान करेगी ! जिसे आरक्षण कहा जाता है ! जो कि उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पाने हेतु तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में नौकरी पाने हेतु लागू किया जाता है !
अब प्रश्न यह है कि प्रतियोगी परीक्षायें आयोजित की ही क्यों जाती हैं ? स्पष्ट है के प्रतियोगी परीक्षाओं को आयोजित करने का एक मात्र उद्देश्य है, समाज के अंदर से मेधावी और योग्य व्यक्तियों का चयन, जिससे सरकारी कामकाज को करने के लिये योग्य व्यक्ति प्राप्त किये जा सकें !
किंतु संविधान की व्यवस्था के तहत जब अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लिये स्थानों का आरक्षण हो जाता है ! तब प्रायः देखा जाता है कि जो योग्य और मेधावी व्यक्ति उपलब्ध होते हुये भी उनके स्थान पर आरक्षण संबंधी अनिवार्यता के कारण प्रायः नाकारा और अयोग्य व्यक्ति का चयन किया जाता है
तथा योग्य व्यक्ति शिक्षा व जीवकोपार्जन के आभाव में या तो गलत मार्ग पर चला जाता है या फिर अवसाद ग्रस्त होकर आत्म हत्या कर लेता है !
यह स्थिति पूरी तरह से प्रतियोगी परीक्षाओं के उद्देश्य को विफल करती है ! क्योंकि इस तरह के आरक्षण में योग्यता के अभाव में चयनित व्यक्ति प्राय: स्थाई वेतन आदि की निश्चितता के बाद भी अपनी शैक्षिक गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं करना चाहता है ! जिस कारण उस आरक्षण द्वारा नौकरी प्राप्त व्यक्ति को जिस कार्य के लिये नियुक्त किया जाता है, वह व्यक्ति उस कामकाज को सुचारू रूप से नहीं चला पाता है !
जिसका सीधा-सीधा असर समाज और राष्ट्र पर पड़ता है ! क्योंकि जब समाज के अंदर शक्ति प्राप्त दायित्व वान व्यक्ति नाकारा और अयोग्य होंगे, तब निश्चित रूप से वह अपने कार्यों से वह गुणवत्ता नहीं दे पायेंगे जो एक मेधावी और योग्य व्यक्ति दे सकता है ! गुणवत्ता की कमी के कारण परिणामों का स्तर भी गुणवत्ता विहीन ही होगा !
गुणवत्ता विहीन परिणामों के कारण सरकारों का इस तरह के अयोग्य व्यक्तियों के ऊपर जो व्यय होता है, उसका परिणाम प्राय: नकारात्मक ही मिलता है ! इससे राष्ट्र की उत्पादकता में कमी आती है और राष्ट्र की विकास गति धीमी पड़ जाती है ! इसकी जगह सरकारों एक योग्य व्यक्ति के ऊपर उतना ही व्यय करके लाभान्वित हो सकती हैं और राष्ट्र को तेज गति से आगे बढ़ा सकती हैं !
आरक्षण के कारण देश में अराजकता का वातावरण पैदा होता है ! नाकारा और अयोग्य अधिकारियों व कर्मचारियों के कारण प्रशासन अपना कार्य ईमानदारी से नहीं कर पाता है ! उस स्थिति में प्रशासन शिथिल हो जाता है और देश का जन सामान्य व्यक्ति अपने अधिकारों के लिये परेशान होने लगता है !
कुछ समय बाद देश का नागरिक इन अयोग्य अधिकारियों व कर्मचारियों से परेशान होकर न्यायालयों में न्याय प्राप्त करने की इच्छा से तरह-तरह के मुकदमों को लेकर जाता है किंतु प्रतियोगी परीक्षाओं में आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था के कारण वहां भी अयोग्य पदाधिकारियों के कारण नागरिक को न्याय प्राप्त नहीं होता है या न्याय प्रक्रिया में इतना अधिक विलंब हो जाता है कि न्याय प्राप्त होने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है !
यह स्थिति राष्ट्र के लिये बहुत भयावह होती है यदि इस व्यवस्था को समय रहते नियंत्रित नहीं किया जाता है तो देश धीरे-धीरे गृह युद्ध की ओर बढ़ने लगता है ! जिसे आपका विनाश चाहने वाली अन्तरराष्ट्रीय शक्तियां भी हवा देने लगती हैं और देश में तनाव व असुरक्षा का वातावरण बनने लगता है !
अब प्रश्न यह है कि यह सारी की सारी समस्या खड़ी क्यों और कैसे होती है ! उसका एक मात्र उत्तर है कि जब देश में उच्च शिक्षा और नौकरी में आरक्षण होगा, तो निश्चित रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्य व्यक्तियों को उनका स्थान प्राप्त नहीं होगा और अयोग्य व नाकारा व्यक्तिय सरकारी दायित्व पर पहुंचकर योग्यता के अभाव में अपने कर्तव्य का निर्वहन सही तरह से नहीं कर सकेंगे ! जिससे प्रतियोगी परीक्षाओं का उद्देश्य ही असफल हो जाता है !