तंत्र से डरिये नहीं यह आपका सहायक है !
तंत्र का तात्पर्य हड्डी, खोपड़ी या दारू की बोतल लेकर नाचना नहीं है | महर्षि वशिष्ठ, महर्षि अगस्त, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि भरद्वाज, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी गोरखनाथ, नीम करोली बाबा आदि अनेक विख्यात संत हुये | जिन्हें तंत्र की बहुत गहन जानकारी थी और समय-समय पर इन लोगों को तंत्र का प्रयोग करते दिखा गया है |
लेकिन इनमें से कोई भी शरीर में भभूत लपेटकर हड्डी और खोपड़ी लेकर नाचता नहीं दिखाई देता था | आजकल तंत्र का जो वीभत्स स्वरूप तथाकथित तांत्रिकों ने पैदा किया गया है वह शुद्ध सात्विक तंत्र के विनाश का कारण है |
शैव तंत्र, शक्ति तंत्र, वैष्णव तंत्र, आदि अनेक ऐसे सात्विक तंत्र हैं, जिनका प्रयोग हमारे पूर्वजों और ऋषियों ने सदियों से किया है | तंत्र का तात्पर्य मात्र इतना है कि हम अपने पुरुषार्थ से प्रकृति से वह प्राप्त कर लें जो सामान्य परिस्थितियों में प्रारब्ध वश हमें प्राप्त नहीं होता है या हमें प्रकृति नहीं देना चाहती है |
जैसे एक जिद्दी बच्चा अपने माता-पिता से जिद्द करके कोई वस्तु प्राप्त कर लेता है जो सामान्यतया: उसे नहीं मिलाती | ठीक उसी तरह ईश्वर से कुछ प्राप्त करने के लिए या तो उसकी भक्ति की जा सकती है | जिससे ईश्वर स्वत: वह वस्तु उस व्यक्ति को प्रदान कर दे या दूसरा तरीका व्यक्ति अपने तप और पुरुषार्थ से ईश्वर को वह वस्तु प्रदान करने के लिए बाध्य कर दे | हमारे ऋषि-मुनियों महात्माओं ने प्रकृति और ईश्वर से जो वस्तुएं तप और पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त की है वह तंत्र की ही उपलब्थि होती है |
किंतु बाजारीकरण ने तंत्र के स्वरूप को ही बदल दिया | अब व्यक्ति अघोरियों जैसी पोशाक व वेशभूषा बनाकर अपने को तांत्रिक कहता है | जिससे समाज के अंदर उसका अपना निजी बाजार बन सके और वह समाज का तांत्रिक होने के नाते भयंकर शोषण कर सके | जबकि तंत्र का व्यक्ति के पोशाक से कोई मतलब नहीं है | तंत्र व्यक्ति का सहायक है और इसका प्रयोग व्यक्ति सदियों से करता चला आ रहा है | बिना किसी अघोर क्रिया के भी मात्र उपासना तंत्र से उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं | इसकी एक निश्चित पद्धति है जिसका प्रयोग कर हर व्यक्ति संसार की समस्त वस्तुओं को प्राप्त कर सकता है |