प्रायः लोग यह मानते हैं कि चार्वाक नाम का कोई व्यक्ति था, जिसने भौतिकवादी जीवन शैली को लेकर कोई दर्शन प्रकट किया था ! जबकि यह नितांत गलत है !
जब पूरी दुनिया पर शुक्राचार्य के मार्गदर्शन में मात्र तपोनिष्ठ शैव जीवन शैली ही थी, तब शैवों को दिग्भ्रमित करने के लिए देवताओं ने एक कुटिल चाल चली !
देवताओं ने अपने आचार्य बृहस्पति से यह आग्रह किया कि शैवों को तपोनिष्ठ शैव जीवन शैली से विमुख करने के लिए किसी नई जीवन शैली का निर्माण करें ! जिससे शैवों का तपोबल नष्ट किया जा सके और तपोबल के नष्ट हो जाने के बाद शैवों को अपने अधीन करना बहुत आसान हो जाएगा !
इसी षड्यंत्र के तहत देवताओं के आचार्य बृहस्पति ने जिस उपभोग वादी जीवन शैली के दर्शन को लिखा उसे चार्वाक दर्शन कहा गया !
चार्वाक शब्द की उत्पत्ति ‘चारु’+’वाक्’ (मीठी बोली बोलने वाला दर्शन) से हुई है !
चार्वाक दर्शन से बौद्ध बहुत प्रभावित हुये और उन्होंने इसे ‘लोकायत’ शब्द से संबोधित किया ! जिसका मतलब ‘दर्शन की वह प्रणाली है, जो इस लोक प्रिय हो जिसमें लोक सहज विश्वास करता हो !
इस दर्शन के अनुसार जो भी इंद्रियगम्य है, जिसके अस्तित्व का ज्ञान देख-सुनकर अथवा अन्य प्रकार से किया जा सकता है, वही वास्तविक है ! जिस ज्ञान को चिंतन-मनन से मिलने की बात कही जाती है, वह भ्रामक है, मिथ्या है, महज अनुमान पर टिका है ! आत्मा-परमात्मा जैसी कोई चीज होती ही नहीं है, अतः पाप-पुण्य नर्क-स्वर्ग का कोई अर्थ ही नहीं है !
चार्वाक सिद्धांत चार तत्वों, ‘पृथ्वी’, ‘जल’, ‘अग्नि’, एवं ‘वायु’ को मान्यता देता है ! समस्त जीव-निर्जीव तंत्र/पदार्थ इन्हीं के संयोग से बने हैं ! स्थूल वस्तुओं/जीवों की रचना में ‘आकाश’ का भी कोई योगदान नहीं रहता है, अतः उसे यह पांचवें तत्व के रूप में नहीं स्वीकारता है ! (ध्यान रहे कि कई दर्शन पांच महाभूतों को भौतिक सृष्टि का आधार मानते हैं: ‘क्षितिजलपावकगगनसमीरा’) !
चार्वाक दर्शन के अनुसार मनुष्यों एवं अन्य जीवों की चेतना इन्हीं मौलिक तत्वों के परस्पर मेल से उत्पन्न होती है ! जब शरीर अपने अवयवों में बिखर जाता है तो उसके साथ यह चेतना भी लुप्त हो जाती है ! इस विचार को स्पष्ट करने के लिए चार्वाक दर्शन का अधोलिखित कथन विचारणीय है:
जिस प्रकार पान के पत्ते तथा सुपाड़ी के चूर्ण के संयोग से लाल रंग होंठों पर छा जाता है, उसी प्रकार इन चेतनाशून्य घटक तत्वों के परस्पर संयोग से चेतना की उत्पत्ति होती है ! यानी चेतना आत्मा या तत्तुल्य किसी अन्य अभौतिक सत्ता की विद्यमानता से नहीं आती है ! विभिन्न पदार्थों के सेवन से चेतना की तीव्रता कम-ज्यादा हो जाती है, जिससे स्पष्ट है कि ये ही पदार्थ चेतना के कारण हैं !
चार्वाक दर्शन वस्तुतः आज का विज्ञानपोषित भौतिकवाद है, जिसकी मान्यता है कि समस्त सृष्टि भौतिक पदार्थ और उससे अनन्य रूप से संबद्ध ऊर्जा का ही कमाल है ! पदार्थ से ही जीवधारियों की रचना होती है ! उसमें किसी अभौतिक सत्ता की कोई भूमिका नहीं है !
विशुद्ध चेतनाहीन पदार्थ से ही जटिल एवं जटिलतर जीवों की रचना हुई है ! जीव-रचना की जटिलता के ही साथ चेतना का भी उदय हुआ है ! ऐसी संरचना के निरंतर विकास के फलस्वरूप मानव जैसा चेतन और बुद्धियुक्त जीव का जन्म हुआ है !
कालांतर में अब वैज्ञानिकों का एक वर्ग इस विचारधारा का पक्षधर है कि चेतना का मूल कारण भौतिकी के ही प्राकृतिक नियमों में छिपा है ! चेतना का उदय कब और कैसे होता है यह अवश्य इन विज्ञानियों के लिए अभी अबूझ पहेली है !
आधुनिक विज्ञान पदार्थमूलक है ! अध्यात्म से उसका कोई संबंध नहीं है ! आज के विज्ञानमूलक भौतिक दर्शन, जिसमें सब कुछ पदार्थगत है, को चार्वाक दर्शन का परिष्कृत दर्शन कह सकते हैं, क्योंकि यह भौतिक तंत्रों/घटनाओं की तर्कसम्मत व्याख्या कर सकता है ! अवश्य ही यह चार्वाक के चार तत्वों पर नहीं टिका है ! सभी वैज्ञानिक चार्वाक सिद्धांत को यथावत् नहीं मानते हैं ! उनमें कई ईश्वर तथा जीवात्मा जैसी चीजों को मानते हैं !
बौद्ध ‘लोकायत’ के मतावलंबियों के अनुसार चार्वाक दर्शन को मनाने वालों को दो श्रेणियों में बांटा जाता है: 1. सुशिक्षित और 2. धूर्त, ! ‘यह शरीर जब तक है, तभी तक सब कुछ है, उसके बाद कुछ नहीं रहता’ के सिद्धांत के कारण लोकायत में पाप-पुण्य, नैतिकता आदि जैसी बातों का कोई ठोस आधार न होते हुए भी ‘सुशिक्षित’ चार्वाक सुव्यवस्थित मानव समाज की रचना के पक्षधर होते हैं !
दूसरी तरफ ‘धूर्त’ चार्वाकों के लिए ‘खाओ-पिओ मौज करो, और उसके लिए सब कुछ जायज है’ की नीति पर चलते हैं ! उनके लिए सुखप्राप्ति एकमेव जीवनोद्येश्य रहता है ! कोई भी कर्म उनके लिए गर्हित, त्याज्य या अवांछित नहीं होता है ! और ऐसे जनों की इस धरती पर कोई कमी नहीं होती है !
कालांतर में 90% से अधिक बौद्ध अनुयायी चार्वाक सिद्धांत के अनुरूप ही जीवन जीने लगे ! यद्यपि वह किसी न किसी आध्यात्मिक मत में आस्था जरुर रखते थे, किंतु उनकी चार्वाक अवधारणा गंभीरता से विचारी हुई नहीं थी ! इस प्रकार का ‘तोतारटंत’ बौद्ध सुख को भेड़चाल कामना से आम जनता ही नहीं बड़े बड़े रजवाड़े भी चार्वाक सिद्धांत अनुयायी होते चले गये !
जिससे बौद्ध धर्म के अनुयाई पूरे एशिया में फैलते चले गये और कालांतर में बौद्ध अनुयायियों के भोगी, विलासी, दुराचारी, कामुक, जीवन शैली को देख कर ग्रीक राजाओं भारत पर नियंत्रण करने का फैसला लिया !
उस समय भारत की सबसे बड़ी सत्ता बृहदरथ मौर्य के हाथ में थी ! जिसे ग्रीक से खुबसूरत लड़कियाँ उपहार में दी जाने लगीं तथा बौद्ध विहारों में ग्रीक सैनिकों को भिक्षुओं के वेश में पनाह दी जाने लगी ! बौद्ध मठों में भी ग्रीक वेश्यायें आने जाने लगीं ! जिनके साथ बड़ी मात्रा में हथियार भी आते थे !
जिसे लेकर पुष्यमित्र शुंग ने अनेकों बार राजा बृहद्रथ मौर्य को चेतावनी दी किन्तु उन्होंने ग्रीक वेश्याओं के प्रभाव में कोई कार्यवाही नहीं की ! तब देश की रक्षा के लिए पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश के आखिरी शासक बृहद्रथ का वध कर सत्ता अपने हाथ में ले ली और बौद्ध विहार को नियंत्रित करना शुरू कर दिया ! जिससे ग्रीक का षड्यंत्र विफल हुआ !
कहने का तात्पर्य यह है कि चार्वाक नाम का न तो कभी कोई व्यक्ति हुआ था और न ही इस तरह का कोई भी दर्शन कभी भी समाज में लोकप्रिय रहा था ! यह सब मात्र देवताओं का शैव विरोधी षड्यंत्र था ! यही है चार्वाक दर्शन का नितांत सत्य !!