विश्व के सभी धर्मों में प्रायः सभी व्यक्तियों के लिए एक ही तरह की पूजा का विधान है | किंतु सनातन हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं के पूजा का विधान है | हमारे ऋषियों-मुनियों ने यह विचार किया कि देश, काल, परिस्थिति के अनुसार जन्म जन्मांतर से चले आ रहे संस्कारों के प्रभाव में व्यक्ति अलग-अलग आराधना पद्धति या आराध्य की उपासना करता है | होता यह है कि जब कोई व्यक्ति जन्म जन्मांतर तक किसी विशेष तरह के देवी-देवताओं की आराधना करता चला आता है | तो उसके अंदर उसी तरह के देव ऊर्जा की आराधना के संस्कार विकसित हो जाते हैं |
ब्रह्मांड में देव ऊर्जा अलग-अलग तल पर अलग-अलग रूप में विद्यमान है | कुछ को हम “ईश्वर” के नाम से जानते हैं | कुछ को हम “देवी या देवता” के नाम से जानते हैं और कुछ को हम “भगवान” के नाम से जानते हैं | कुछ लोग प्रेत, पिशाच, जिन्न, शमशान आदि की भी आराधना करते हैं | प्रत्येक व्यक्ति की आराधना का स्तर अलग-अलग ऊर्जाओं का है | जिस व्यक्ति के आराधना का स्तर जितना उच्च होगा वह ब्रह्मांड में उतने अधिक उच्च स्तर की आराध्य ऊर्जा से संपर्क स्थापित करने में सक्षम होगा | यह संपर्क स्थापित करने का सामर्थ किसी को एक जन्म की आराधना से प्राप्त नहीं होता है | किस व्यक्ति को जीवन में किस स्तर की ऊर्जा से संपर्क स्थापित करने का सामर्थ्य है यह उसकी जानकारी कुंडली देख कर ज्ञात किया जा सकता है |
अत: अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण एक ही परिवार में रहने वाले दो अलग-अलग व्यक्ति दो अलग-अलग स्तर की आराधना कर सकते हैं | हो सकता है कि पिता किसी निम्न स्तर की आराधना करता हो और उसी का पुत्र पिता से उच्च स्तर की आराधना करने में सक्षम हो | जब कि वह उसी पिता से उत्पन्न होने के बाद उसी परिवेश और संस्कारों में पला है |
प्राय: यह भी होता है कि प्रत्येक देव ऊर्जा का गुण और धर्म अलग-अलग होता है और व्यक्ति ने पूर्व के जन्मों में जिस देव ऊर्जा की आराधना की है यदि वर्तमान में भी उसी देव ऊर्जा की आराधना को आगे निरंतर जारी रखता है तो उसे जल्दी सफलता प्राप्त होती है | यदि उससे अलग हटकर किसी अन्य नई ऊर्जा की आराधना आरंभ करता है तो उसे सफलता प्राप्त करने में पुनः लंबा समय और ऊर्जा लगाना पड़ता है | कभी-कभी नई आराध्य ऊर्जा का गुण धर्म पूर्व की आराध्य ऊर्जा से विपरीत या भिन्न होती है तब इस तरह की नई ऊर्जा की आराधना से व्यक्ति को अप्रत्याशित क्षति भी होती है |
यह भी देखा गया है कि पूरी निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी के साथ किये गये पूजन, अनुष्ठान आदि के बाद भी हमारी समस्या जैसी की तैसी बनी रहती है अर्थात उसमें कोई लाभ नहीं होता है | कभी-कभी तो यह भी देखा जाता है कि हमारी समस्यायें समाधान की जगह और भी प्रबल रूप से बढ़ जाती हैं | अत: पूजा अनुष्ठान कभी भी सुनी-सुनाई परंपरा के तहत नहीं करनी चाहिये |
इस तरह बिना सोचे समझे अनावश्यक रूप से पूजा अनुष्ठानों को आरम्भ कर देने से व्यक्ति को तो जो क्षती होती है वह होगी ही | साथ ही आने वाले नई समस्याओं के कारण “विधर्मियों” को भी देव आराधना के ऊपर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने का अवसर मिल जाता है | जिससे सनातन देव आराधना पध्यति कलंकित होती है |
अत: मेरा यह अनुरोध है कि पूजा अनुष्ठान आदि में अपने ज्योतिषी से “शास्त्रसम्मत” इष्ट का निर्धारण अवश्य करवाइये तब ही आराधना प्रारम्भ कीजिये | अनुमान से आराधना प्रारम्भ करके अनावश्यक रूप से धन और समय व्यर्थ व्यय मत कीजिये अन्यथा वह पूजा आराधना अपनी समस्याओं को और भी बढ़ा सकती है |