शास्त्रों के अनुसार स्वर्ग से अलग कहीं नहीं है ! स्वर्ग के सम्पूर्ण लक्षण तिब्बत मे ही मिलते हैं ! Yogesh Mishra

प्रायः माना जाता है कि स्वर्ग पृथ्वी से अलग किसी अन्य लोक में स्थित है ! जबकि यह गलत अवधारण है ! हम आपको बताना चाहते है कि त्रिविष्टप तथा स्वर्ग के सम्पूर्ण लक्षण तिब्बत मे ही मिलते हैं अर्थात स्वर्ग पृथ्वी से अलग नहीं बल्कि त्रिविष्टप या स्वर्ग तिब्बत में ही स्थित था और मनुष्यों की प्रथम उत्पत्ति यहीं से हुई है !

इसमें कुछ निम्नलिखित प्रमाण हैं —

1. साकं सजातैः पयसा सहैध्युदुब्जैनां महते वीर्याय !
ऊर्घ्वो नाकस्याधि रोह विष्टपं स्वर्गो लोक इति यं वदन्ति !!
(अथर्ववेद 11/1/7)

अर्थात् हे मनुष्य! जिसको त्रिविष्टप और स्वर्गलोक भी कहते है, उसपर तू चढ़ जा ! वह पृथिवी से ऊँचा, सुख का देनेवाला स्थान है ! वह पृथिवी पानी से सबसे पहले बाहर आई और जिसमें एक साथ पैदा हुये, समान मनुष्य प्रकट हुए ! महान वीर्यप्राप्ति के लिये उसको तू प्राप्त कर !!1 !!

2. इमानि त्रीणि विष्टपा तानीन्द्र वि रोहय !
शिरस्ततस्योर्वरामादिदं म उपोदरे !! (ॠग० 8/91/5)

अर्थात् हे राजन्! तू उस त्रिविष्टप स्थान को प्राप्त कर जो सारी पृथिवी से ऊँचा है और मनुष्यों के लिये सुखकारी है तथा माता के उदर के समान मनुष्यों को पैदा करने का स्थान है !!2 !!

इन दोनो वेदमंत्रो के द्वारा परमात्मा ने सैद्धांतिक रूप से बतलाया कि जो स्था जल से सारी पृथिवी से पहले बाहर पृकट हुआ और जो सारी पृथिवी से ऊँचा है,जिसमें इन्सानों की पहलेपहल उत्पत्ति हुई उसी का नाम त्रिविष्टप वा स्वर्ग है ! वह स्थान मनुष्यों के लिये सुखकारक है, उस को तुम भी प्राप्त होवो !!

३. उपह्वरे गिरीणां संगमे च नदीनाम् ! धिया विप्रो अजायत !! (यजुः26/15)

पहाड़ों की गुफाओं में तथा नदियों के संगम पर ध्यान करने से विप्रपन की प्राप्ति होती है !! 3 !!

४.सूर्याचन्द्रमतौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् !
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः !!
(ॠग० 10/190/3)

इस सारे संसार को धारण करनेवाले परमात्मा ने सूर्य, चन्द्र द्युलोक, पृथिवी, सितारों तथा सुखदायक स्थान अर्थात् स्वर्ग को पैदा किया ! जैसे पूर्व कल्प में पैदा किया था वैसे ही !! 4 !!

इन दोनो मन्त्रों से भी सिद्ध है कि जि देश में पहाड़ों की गुफाएं तथा नदियों के संगम हों वह देश ही ध्यान के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति के सुख का हेतु होने से स्वर्ग है तथा उसे ही परमात्मा ने यथापूर्व पैदा किया ! इन दोनों मन्त्रों में कथित लक्षणों के अनुसार भी तिब्बत का ही नाम स्वर्ग वा त्रिविष्टप सिद्ध होता है !

5.तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः ! आकाशाद्वायुः ! वायोरग्निः ! अग्नेरापः ! अद्भ्यः पृथिवी ! पृथिव्या ओषधयः ! ओषधीभ्योsन्नम् ! अन्नाद्रेतः ! रेतसः पुरुषः स वा एष पुरुषोsन्नरसमयः !
(तैत्तिरीयोपनिषत् ब्रह्मानन्दवल्ली 2/1)

अर्थात् उसी ब्रह्म से आकाश हुआ, आकाश से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथिवी, पृथिवी से ओषधियां, ओषधियों से अन्न , अन्न से रेतः, रेत से पुरुष ! सो यह पुरुष अन्न-रसमय है !!5 !!

इससे सिद्ध है कि जब सर्वत्र जल-ही-जल थे तो उस समय जलों के सूखने पर पृथिवी का जो भाग सबसे पहले नजर आया, उसी पर पहलेपहल ओषधि, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि की प्रथम सृष्टि हुई ! इस पृथिवी पर मनुष्यों के रहने के योग्य सबसे ऊँची पृथिवी का भाग तिब्बत ही है, अतः सिद्ध हुआ कि पृथिवी का यही भाग जलों से पहलेपहल बाहर आया और इसी पर प्रथम् सृष्टि हुई !!

6.वाक्शौचं कर्मशौचं च यच्च शौचं जलात्मकम् !
त्रिभिः शौचैरुपेतो यः स स्वर्गो नात्र संशयः !!82 !!
(महा० वन० अ० 199)

अर्थात् वाणी की शुद्धता, कर्मों की शुद्धता, और जलमय शुद्धता ये तीन प्रकार की शुद्धता जिस देश में हो, उसी का नाम स्वर्ग है !!6 !! इससे सिद्ध है कि स्वर्ग पृथिवी से भिन्न किसी स्थान का नाम नहीं है, अपितु शुद्धता द्वारा विशेषसुख के साधन का नाम ही स्वर्ग है !

इससे सिद्ध होता है कि त्रिविष्टप वा स्वर्ग इसी पृथिवी पर विद्यमान हैं !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …