प्राय: आरोप लगाया जाता है कृष्ण एक कुटिल राजनीतिज्ञ थे और राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे ! यह बात अलग है कि राम को मर्यादा पुरुषोत्तम घोषित करने का श्रेय एक पैतृक कथावाचक और कवि गोस्वामी तुलसीदास को जाता है !
यदि राम को एक राजा के रूप में देखा जाए तो राम अपने जीवन में अत्यंत सफल राजा हुये ! जो कि एक कबीले के राजा के पुत्र होकर उन्होंने पूरे एशिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया और साम्राज्य विस्तार ही राजा के सफलता का मानक है ! फिर वह साम्राज्य विस्तार छल से किया गया हो या धर्म से !
यह बात अलग है कि एशिया के राजा बनने के बाद उनके प्रशंसक कवियों ने उन्हें महिमामंडित करने के लिए उनके कुल, वंश खानदान के विषय में हजारों गीत लिख डाले ! जिससे उनका वंश भी यशस्वी राजाओं में गिना जाने लगा !
अब हम अपने विषय पर बात करते हैं ! राजा दशरथ के दो बीवियां थी ! एक कौशल्या और दूसरी सुमित्रा ! जिनसे उनके कोई संतान नहीं हुई थी !
वैष्णव परंपरा के अनुसार किसी भी राजा के यदि कोई संतान नहीं होती है तो यह उसके कुलवंश के समाप्त होने की सूचना है !
अतः राजा दशरथ ने कैकय देश की राजकुमारी कैकई से विवाह करने का निश्चय किया क्योंकि मानव बल्कि आनव प्रजाति की राजकुमारी थी ! इनके माता पिता का नाम राजा अश्वपति और शुभलक्षणा था !
क्योंकि मानव प्रजाति की रानियों से अभी तक दशरथ को कोई संतान नहीं हुई थी, तो विद्वानों का मत था कि दशरथ की माता इंदुमती क्योंकि वास्तव में मानव प्रजाति की स्त्री न होकर एक अप्सरा थीं ! अत: राजा दशरथ यदि किसी मानव के अतिरिक्त अन्य प्रजाति की स्त्री से विवाह करें तो शायद उनके संतान हो सकती है !
अत: राजा दशरथ ने आनव प्रजाति की राजकुमारी कैकई से विवाह करने का निश्चय किया ! विवाह की यह शर्त थी कि कैकई से उत्पन्न होने वाली संतान ही अयोध्या का राजा बनेगा !
इस विवाह में अयोध्या के कुल गुरु वशिष्ठ की महत्वपूर्ण भूमिका थी ! उन्होंने कैकई के पिता अश्वपति और माता शुभलक्षणा को यह वचन दिया था कि यदि कैकई का पुत्र अयोध्या का राजा नहीं बनेगा तो मैं अयोध्या त्याग दूंगा ! और राम के राजा बनते ही उन्होंने अयोध्या त्याग दी और वह मनाली चले गये ! जहाँ राम का शासन नहीं था !
कैकई तीनों रानियों में सबसे अधिक विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ और योद्धा थी ! वह अयोध्या की सेनापति भी थीं ! जिस सेना का बहुत बड़ा हिस्सा कैकय देश से आनव सैनिकों का राजा दशरथ को उपहार स्वरूप भी मिला था ! जिस सेना ने कैकई के दिशा निर्देश पर दशरथ के साथ कई युद्ध भी लड़े थे !
किंतु दुर्भाग्यवश कैकई को भी कोई संतान प्राप्त नहीं हुई ! परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को अपने दमाद श्रृंग ऋषि से पुत्रेष्ठ यज्ञ कराना पड़ा और देव कृपा से तीनों रानियों को संतान प्राप्त हुई !
इसमें भी ईश्वर की कृपा से एक खेल यह हुआ कि कैकई का पुत्र कौशल्या के पुत्र के बाद जन्मा ! अतः वैष्णव परंपरा के अनुसार राजा का बड़ा बेटा ही राजा का उत्तराधिकारी होता है !
कैकई को क्योंकि राजा दशरथ में यह वचन दिया था कि उसी का बेटा राजा बनेगा ! अतः वह आनव प्रजाति की रानी होने के कारण अपने भविष्य की असुरक्षा को देखते हुए अपने जिद पर अड़ गई !
क्योंकि उस काल में वैष्णव मानव विष्णु भक्त और आनव शिवभक्त के मध्य जीवन शैली को लेकर बहुत बड़ा संघर्ष चल रहा था ! शिव भक्तों का नेतृत्व परशुराम और रावण जैसे योद्धा कर रहे थे !
अतः कैकई को यह पता था कि यदि कौशल्या का पुत्र वैष्णव परंपरा के अनुपालन में राजा बन जायेगा तो निश्चित रूप से हमारा आगे का जीवन दुख में होगा ! क्योंकि वह आनव प्रजाति स्त्री हैं !
इधर दूसरी तरफ कैकई के पिता जोकि इंद्र के परम मित्र थे ! इंद्र उनके सहयोग से अपने अपमान का बदला लेने के लिए रावण की हत्या राम के हाथों करवा देना चाहता था और यदि राम अयोध्या के राजा बन जाते तो इंद्र राम को रावण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार नहीं कर पाते !
अत: राम के राज्य अभिषेक की सूचना प्राप्त होते ही वशिष्ठ ने अपने शिष्य के हाथों एक गुप्त संदेश कैकई को भेजा ! जिसमें दशरथ से दो शर्ते मनवाने के लिए कहा !
एक भरत को राजगद्दी और दूसरा राम को 14 वर्ष का वनवास ! क्योंकि इंद्र जानते थे कि जब तक राम अयोध्या के मोह से बाहर नहीं आएंगे ! जब तक वह रावण की हत्या में उनके सहयोगी नहीं बन सकते हैं !
राम रावण की हत्या करने में सक्षम हैं, इस बात का अंदाजा इंद्र को विश्वामित्र से प्राप्त सूचना के अनुसार पता लग गया था !
क्योंकि राम ने बिना किसी भय के रावण की नानी केतुमति की हत्या बिना किसी कारण के कर दी थी ! जिसे बाद में वैष्णव लेखकों ने केतुमति को ताड़क वन में रहने के कारण ताड़का कहकर संबोधित किया !
राम के अयोध्या से जाने के बाद जब दशरथ की मृत्यु हुई और भरत द्वारा दशरथ की अंत्येष्टि के बाद जव वह राम को मनाने चित्रकूट पहुंचे, तो राम यह जानते थे कि मामला अभी गर्म है !
कैकई के आनव प्रजाति के सैनिक क्रूर और हिंसक योद्धा हैं ! जिससे उनके जीवन को खतरा है ! अतः उन्होंने इस तनाव के वातावरण में तत्काल वापस अयोध्या जाने का निर्णय नहीं लिया और उन्होंने समझा-बुझाकर भरत को वापस कर दिया !
इसका एक उदाहरण यह भी मिलता है कि जब रावण द्वारा सीता का अपहरण हो गया था ! तब भी अयोध्या से भरत के लाख कहने पर आनव प्रजाति की सेना राम के मदद के लिए युद्ध करने नहीं गई थी ! जबकि भारत के 300 से अधिक वैष्णव राजाओं की सेना राम की ओर से लड़ने के लिए लंका गई थी !
यही राम के वन गमन के पीछे का सत्य था जिसे बहुत शोध के बाद निकाला गया है !