ब्रिटेन की एक लैब में दुनिया की निगाह से छुपा कर 6000 से अधिक जानलेवा बैक्टीरिया जिंदा रखे हुये हैं ! यह बैक्टीरिया कांच के जार में बगरू के साथ डालकर ऊपर से पैराफिन की मोटी परत के अन्दर सुरक्षित रखे गये हैं ! जिन्हें -28 डिग्री तापमान पर रखा गया है, ताकि यह सब निष्क्रिय रूप से जिंदा बने रहें और जरूरत पर इन्हें सक्रिय किया जा सके !
निकट भविष्य में बहुत जल्द ही इनका प्रयोग शुरू कर दिया जायेगा और विश्व की आबादी इन्हीं जैविक हथियारों से लगभग खत्म कर दी जायेगी ! पृथ्वी पर हाथ और मस्तिष्क में चिप लगाये हुये गुलाम रहेंगे और चंद्रमा और मंगल ग्रह पर हमारे विश्व सत्ता के नुमाइंदे रहेंगे !जो हमें उच्च तकनीकी द्वारा वहां से नियंत्रित करेंगे !
यह गुप्त लेब ब्रिटेन के लंदन में स्थित दुनिया की सबसे पुरानी और ऐसी अनोखी लाइब्रेरी के रूप में जानी जाती है ! जहां बैक्टीरिया का संग्रह नेशनल कलेक्शन ऑफ टाइप कल्चरस के नाम से जाना जाता है !
यहां से कई बार जिंदा बैक्टीरिया के स्ट्रेन विश्व सप्ताह के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कड़ी सुरक्षा में दूसरे देशों में भेजे जाते हैं, ताकि इनको और अधिक विकसित और प्रभावी किया जा सके ! इस दौरान सख्त सेफ्टी प्रोटोकॉल होता है !
इसके स्थापना की शुरुआत साल 1915 की सर्दियों से हुई ! जब फ्रांस के “स्टेशनरी हॉस्पिटल” में एक टेलीग्राम आया जिसमें लिखा हुआ था कि ब्रिटिश सैनिकों की तबीयत लगातार डायरिया से बिगड़ती जा रही है ! बता दें कि तब प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी और सैनिक की खंदकों में खराब हालातों में कई-कई दिन बिताने के के कारण उनके अन्दर एक वैक्टीरिया डेबलप हो गया था क्योंकि उस समय युद्ध का सामान ले जाने के लिये रेलगाड़ी की ऊर्जा का स्रोत मात्र कोयला ही हुआ करता था ! जिनको खदानों से खोदकर निकालना पड़ता था ! अत: इन सैनिकों को हफ्तों खदानों में रहना इनकी मजबूरी थी ! जहाँ सीलन, गर्मी, पसीना, बदबू और प्रदूषण के सिवा कुछ नहीं था ! क्योंकि वहां न तो ताजी हवा थी और न ही सूरज की रोशनी थी ! जो कि किसी भी घातक जानलेवा वैक्टीरिया के पैदा होने के लिये एकदम अनुकूल वातावरण था !
उसी दौरान डॉक्टरों ने जांच में एक बैक्टीरिया को इन सैनिकों की हालत के लिये जिम्मेदार माना ! उस बैक्टीरिया को “सिंगला फ्लेक्सनरी” नाम दिया गया ! इसका पता सेना के मेडिकल अफसर और बैक्टीरियोलॉजिस्ट विलयम ब्रौटेन एक्लाक ने लगाया था !
उस समय बैक्टीरिया को कांच के मर्तबान में एक खास तरह की लकड़ी अगरवुड (अगरू) डालकर और ऊपर से पैराफिन वैक्स से सील करके सुरक्षित रख दिया गया था !
यह लेबोरेटरी का पहला सैंपल था ! जिसके बाद से अब तक तो यह दुनिया की सबसे बड़ी लेबोरेटरी बन गई है ! जहां पर जिंदा और जानलेवा 6000 से अधिक बैक्टीरिया भविष्य के जैविक युद्ध के लिये सुरक्षित रखे गये हैं !
ज्यादातर बैक्टीरिया यहां बायो सेफ्टी लेवल दो और कुछ तो तीन पर भी रखे गये हैं ! यहां रखे बैक्टीरिया इतने घातक हैं कि वह तगड़े से तगड़े व्यक्ति को बीमार बना सकते हैं और उन्हें मौत के घाट उतार सकते हैं !
परीक्षण के लिये इसी साल 1915 में ही प्रथम विश्व युद्ध के समय ही इसी लैब के एक बैक्टीरिया का प्रयोग करके अफ्रीका में डायरिया से 1,64,000 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया था !
इस लैब में रखे “जीनोम सीक्वेंस फैमली” के बैक्टीरिया में बदलाव करके समय-समय पर पूरी दुनिया में तरह-तरह की अज्ञात महामारी फैलाई जाती है और फिर उसको ठीक करने के नाम पर नई- नई दवा बनाई जाती है या पुरानी दवा में बदलाव होते हैं !
इस लैब में हर साल पूरी दुनिया से तैयार किये गये घातक बैक्टीरिया के 50 से लेकर 200 तक नये सैंपल पहुंचाये जाते हैं ! जिनमें से लगभग 10 % उपयोगी सैंपल ही भविष्य के जैविक युद्ध के लिये संग्रहित किये जाते हैं !
इस तरह के जैविक हथियारों की चर्चा विश्व के किसी भी पत्र-पत्रिका या टीवी चैनल पर नहीं होती है ! यह सब विश्व सत्ता के दिशा निर्देश पर रचा जाने वाले विश्वव्यापी षड्यंत्र का एक अहम हिस्सा हैं ! जिसके प्रयोग के द्वारा विश्व के किसी भी क्षेत्र की आबादी को इन्हीं जैविक हथियारों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है !
इशारा काफी है आज विश्व सत्ता के इशारे पर पूरी दुनिया में लाशों के ढेर लगे हुये हैं और इन्हें नियंत्रित करने के निर्देश भी हमें इन्हीं विश्वव्यापी संगठनों से ही आ रहे हैं ! जिनके आगे हमारी सत्ता भी बौनी नजर आती है ! आज आवश्यकता है, इस गहरे षड्यंत्र को समझने की और उससे बचने की !!