यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे का रहस्य : Yogesh Mishra

‘यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे’ -चरक संहिता का यह श्लोकांश हमें समझाता है कि जो-जो इस ब्रह्माण्ड में है वही सब हमारे शरीर में भी है !

यह भौतिक संसार पंचमहाभूतों से बना है ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी ! उसी प्रकार हमारा हमारा यह शरीर भी इन्हीं पाँचों महाभूतों से बना हुआ है ! जब जीव की मृत्यु होती है तो उसके उपरान्त ये पाँचों महातत्त्व अपने-अपने तत्त्व में जाकर मिल जाते हैं !

इन पंचमहाभूतों की पंचतन्मात्राएँ हैं मनुष्य में भी ये सभी पंचतन्मात्राएँ विद्यमान हैं ! आकाश की तन्मात्रा शब्द है ! मनुष्य अपने कानों से सुनता है ! वायु की तन्मात्रा स्पर्श है ! मनुष्य अपने शरीर पर स्पर्श का अनुभव करता है ! अग्नि की तन्मात्रा ताप है ! अग्नि तत्त्व मनुष्य के शरीर में है जिससे वह भोजन पचाता है और अग्नि जैसा तेज उसके चेहरे पर रहता है ! जल की तन्मात्रा रस है ! मनुष्य के मुँह से निकलने वाला रस भोजन को स्वादिष्ट बनाता है और शरीर को पुष्ट करता है ! पृथ्वी की तन्मात्रा गंध है ! पृथ्वी में हर स्थान पर गंध बिखरी हुई है ! मनुष्य अपनी घ्राण शक्ति (नाक) से गंध को सूंघता है और आनन्दित होता है !

इन पंचमहाभूतों के पाँच गुण हैं जो मनुष्य शरीर में भी होते हैं- आकाश का गुण अप्रतिघात है ! आकाश की तरह पूरे शरीर पर त्वचा का आवरण है ! हमारे शरीर के छिद्रों से जहाँ प्रतिघात होता है उसे आकाश तत्त्व से उपचार से रोका जाता है !

वायु का गुण चलत्व है ! हमारा शरीर भी वायु की तरह चलायमान है ! इधर-उधर आता-जाता है !

अग्नि का गुण उष्णत्व है ! अग्नि के समान उष्णता मनुष्य में होती है तभी वह जीवित रहता है ! यदि उसकी उष्णता समाप्त हो जाए तो वह इस दुनिया से कूच कर जाता है !

जल का गुण द्रवत्व है ! जल के समान ही मनुष्य में आर्द्रता होती है ! तभी दया, ममता, करुणाआदि गुणों के कारण वह दूसरों के दुख को सुनकर द्रवित हो जाता है !

पृथ्वी का गुण ठोसपन है ! पृथ्वी की तरह मनुष्य भी ठोस है अन्यथा वह टिक नहीं सकता हवा में झूलता रहेगा ! पृथ्वी की तरह शरीर में भी अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ एवं लवण कैलशियम, पोटाशियम, फासफोरस, सोडियम, लोहा, तांबा, सल्फर आदि विद्यमान हैं !

ब्रह्माण्ड और शरीर में समानता है पर अंतर केवल स्थूल व सूक्ष्म का है ! जितने मूर्तिमान भाव विशेष इस लोक में हैं वे सब मनुष्य में हैं ! दूसरे शब्दों में कहें तो लोक या प्रकृति तथा पुरुष में समानता है ! चरक संहिता इसी कथन को हमारे लिये इस प्रकार कहती है !

यावन्तो हि लोके मूर्तिमन्तो भावविशेषा: !
तावन्त: पुरुषे यावन्त: पुरुषे तावन्तो लोके॥

ब्रह्माण्ड में चेतनता है तो मनुष्य भी चेतन है ! एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलता फिरता रहता है ! परन्तु जब यह किसी कारण से रोगी हो जाता है और चलने-फिरने में अक्षम हो जाता है तो इसमें जड़ता आने लगती है ! ईश्वर ने बुद्धि के रूप में सबसे अच्छा उपहार इसे दिया है ! इस बुद्धि से वह चमत्कार करता है !

इस प्रकार पंचमहाभूतों के सभी गुण मनुष्य में हैं ! जिसे दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जो इस ब्रह्माण्ड में है वही इस शरीर में भी है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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