आज मांग नहीं बल्कि ब्राण्ड करता है कीमत को नियंत्रित : Yogesh Mishra

अर्थशास्त्र का सामान्य सिधान्त है कि किसी वस्तु की कीमत मांग और पूर्ति के संतुलन से निर्धारित होती है ! किंतु अब देखने में आ रहा है कि बाजार में वस्तु की कीमत का निर्धारण मांग और पूर्ति के संतुलन से नहीं बल्कि ब्रांड की लोकप्रियता से निर्धारित हो रही है !

जिसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आज वस्तु के बाजार मूल्य का निर्धारण ग्राहक की आश्यकता नहीं है, बल्कि उसे किस ब्राण्ड की वस्तु पसन्द है या दूसरे शब्दों में किस ब्राण्ड लोकप्रियता पैदा की गई है ! इस आधार पर वस्तु के मूल्य का निधारण हो रहा है और यह ब्राण्ड की लोकप्रियता स्वत: नहीं होती है बल्कि विज्ञापन द्वारा पैदा की जाती है !

आज डिजिटल दुनियां में सभी तकनीकी तरह से किये गये प्रयास उत्पादक द्वारा ब्राण्ड की लोकप्रियता पैदा करवा रहे हैं ! जिससे वह वस्तु से अधिक अपने ब्राण्ड का मूल्य नियंत्रित कर रहे हैं !

इसे उदाहरण से समझते हैं ! जैसे बाजार में जब कोई विशेष ब्राण्ड का तेल उपलब्ध नहीं था तो तेल की कीमत मांग और पूर्ति पर निर्भर रहती थी ! जब फसल आने पर सरसों पर्याप्त उपलब्ध होती थी तो तेल की उपलब्धता मांग से अधिक होने के कारण तेल सस्ता बिकने लगता था और वही तेल की उपलब्धता मांग से कम होने पर वह तेल महंगा बिकने लगता था !

क्योंकि मांग और पूर्ति के सिद्धांत में जब मांग अधिक और पूर्ति कम होती है, तो स्वाभाविक अवस्था में वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और इसके विपरीत जब पूर्ति अधिक और मांग कम होती है तो वस्तु की कीमत घट जाती है ! जैसा पुराने समय में बाजारों में दिखाई देता था !

किन्तु जब से तेल यदि ब्रांड के रूप में बाजार में बिक रहा है तो उस ब्रांड के तेल की कीमत ग्राहक नहीं बल्कि तेल निर्माता पूंजीपति निर्धारित करते हैं ! उस ब्रांडेड तेल की कीमत के अनुसार फुटकर बिना ब्राण्ड का तेल निकालकर बेचने वाले व्यापारी भी अपने तेल की कीमत ब्राण्ड के तेल के अनुसार निर्धारित करने लगते हैं ! यहां पर कोई भी मांग और पूर्ति का स्वाभाविक सिद्धांत लागू नहीं होता है !

इस लेख को लिखने के पीछे कुल उद्देश्य यह है कि सट्टा बाजार को नियंत्रित करने वाला मस्तिष्क आज हमारे दैनिक अनिवार्य आवश्यकता के वस्तुओं की कीमतें भी मात्र ब्राण्ड के नाम पर निर्धारित कर रहे हैं ! जिससे समानों की उपलब्धता होने के बाद भी निरंतर मंहगाई बढ़ती चली जा रही है !

समाज को दिशा देने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों के मुंह बंद करने के लिये उन्हें कमोडिटी शेयर मार्केट के नाम पर अपनी लूट में सहयोगी बना कर उनका मुंह बंद कर दिया जाता है ! जिससे समाज में विरोध नहीं पनप पाता है और अपनी कमाई का थोडा सा हिस्सा इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को देकर उनका मुंह बंद कर दिया जाता है !

ब्राण्ड द्वारा निर्धारित कीमत के मानक पर यदि तत्काल विवेक पूर्ण नियंत्रण नहीं लगाया गया तो निश्चित रूप से हमारी मेहनत की कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा यह पूंजीपति ठग मात्र ब्रांड के नाम पर हड़प लेंगे !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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