ब्रिटिश सेनापति “रोबर्ट क्लाइव” ने बंगाल का नवाब “सिराजुद्दोला” के सेनापति “मीर जाफ़र” को अपनी तरफ मिला कर 1757 में “पलासी का युद्ध” जीत कर भारतवर्ष में ब्रिटिश साम्राज्य की नीव डाल दी थी ! इसके बाद भारत के लूट का दौर शुरू हुआ ! पानी के जहाज में भर-भर कर ब्रिटिश लुटेरे “सोना” ब्रिटेन ले जाया जाने लगा ! इसी लूट की दौलत से ब्रिटेन की संपन्नता बढने लगी !
कालांतर में पूरे विश्व की दौलत लूटने के लिये 1 मई 1776 को इंगलैंड में एक “प्रबुद्धता-युग गुप्त समिति” की स्थापित की गई । जो आधुनिक समय में यह “षड़यंत्रपूर्ण संगठन” ब्रिटिश “सिंहासन के पीछे से एक अस्पष्ट शक्ति” के रूप में कार्य करती है ! जो आज भी सभी “कौमन्वैल्थ देश” के वर्तमान की सभी सरकारों और निगमों को नियंत्रित करती है ! आमतौर पर इसे एक नई विश्व व्यवस्था (NWO) के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। कई “साज़िश का खुलासा करने वाले सिद्धांतकारों” का मानना है कि यही वह संघटन आज “कौमन्वैल्थ देश” की दशा व दिशा निर्धारित कर नई “विश्व व्यवस्था” की स्थापना का कार्य कर रही है ।
इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरे विश्व के सभी नागरिकों का हिसाब रखने के लिए कंप्यूटर द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के दसों उंगलियों के निशान व आंख के रेटिना की डिजाइन, जो प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग होती है ! उसे डिजिटल फॉर्म में संग्रहित कर विश्व के सभी नागरिकों को नियंत्रित करने की योजना बना रही है, इसीलिए आधार कार्ड जैसे अभियान चलाए जाते हैं ! जिन्हें कोई भी व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री हो जाए नहीं रोक सकता, क्योंकि यह विश्व सत्ता की आवश्यकता और इच्छा है !
इन्हीं आर्थिक व संसाधनों के आंकड़ों को इकट्ठा करने के लिए विश्व सत्ता द्वारा प्रतिवर्ष सभी देशों के आर्थिक संसाधनों का आंकलन किया जाता है तथा प्रत्येक देश के प्रत्येक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को आंका जाती है ! जो समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कर हम लोगों के सामने प्रस्तुत किए जाते हैं !
प्रत्येक देश के अंदर किस तरह की मांग पैदा की जाए और उसका उत्पादन किस पद्धति से किया जाए यह भी एक रणनीति के तहत निर्धारित किया जाता है ! जिसमें मांग पैदा करने के लिए दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर आने वाले टीवी सीरियल की मदद ली जाती है ! इन्हीं टीवी सीरियलों के माध्यम से तरह-तरह के वस्त्र, उपकरण, वाहन, जीवन शैली आदि दिखाकर समाज में उसकी मांग पैदा की जाती है और उस मांग की पूर्ति के लिए व्यवसाइयों को लाईसंस के नाम पर ठेके दिए जाते हैं ! वह व्यवसाई जब उन वस्तुओं का उत्पादन करके उन्हें समाज में बेचकर जो धन संग्रहित करते हैं तब वह “विश्व सत्ता” के सहयोग के बदले उन्हें दान करके अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं !
इसीलिए प्राय: स्वदेशी उत्पाद अच्छे होते हुए भी हमें उपलब्ध नहीं होते हैं और हमें अपनी आवश्यकता के लिए विदेशी उत्पादों पर निर्भर होना पड़ता है ! इसी श्रंखला में अपना सामान बेचने के लिए “विश्व सत्ता” उसी देश की “विश्व सुंदरी” और “ब्रह्मांड सुंदरियों” का चुनाव करती हैं जिस देश में भविष्य में उन्हें अपना माल बेचना होता है !
यह विश्वव्यापी षड्यंत्र अदृश्य रूप में हमें और हमारी अर्थव्यवस्था को गुलाम बना रहा है ! जिस के संदर्भ में जितना अधिक प्रचार-प्रसार किया जाए उतना अच्छा होगा क्योंकि हम इस गुलामी से मात्र जागरूकता के द्वारा ही बच सकते हैं और हमारे पास कोई विकल्प नहीं है !