गाली देने का मनोविज्ञान समझे : Yogesh Mishra

गाली एक अन्तर्राष्ट्रीय मानव व्यवहार से जुड़ी तनाव मुक्ति का साधन है ! कुछ लोग इसे आवश्यक बुराई के रूप में देखते हैं ! यह विश्व की सभी भाषाओँ में उपलब्ध है ! जिनका अर्थ प्राय: एक ही होता है ! वैसे यह सबसे सस्ता मनोरंजन भी है ! इसका प्रयोग मनोरंजन करने के साथ-साथ किसी को अपमानित करने के लिये या अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिये भी किया जाता है !

लेकिन इसके कुछ अन्य भी प्रयोग हैं ! जैसे कि व्यक्ति को जब अपनी भड़ास निकालने के लिये अन्य कोई भी साधन नहीं मिलता है या कोई संसाधन प्रयोग करने का साहस नहीं होता है ! तो वह गाली का प्रयोग कर के आत्म संतोष प्राप्त करता है ! ठीक इसी तरह अति विद्वान व्यक्ति जब अपने मन की बात किसी को समझाना चाहता है और एक मुढ़ बुद्धि का व्यक्ति उसकी बात को नहीं समझ पाता है ! तब प्राय: वह विद्वान व्यक्ति गाली देकर उस बात को पुनः समझाता है और नहीं तो फिर गाली देकर उस विषय को ही खत्म कर देता है !

ठीक इसी तरह जब हम किसी की अप्रत्याशित सफलता को देखते हैं और यह जानते हैं कि हम उस तरह की सफलता कभी प्राप्त नहीं कर सकते हैं ! तो हम गाली देकर आत्मग्लानि से उबर कर उस विषय को वहीं समाप्त कर देते हैं ! दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जब हमारे विचार, हमारा सामर्थ किसी अन्य व्यक्ति के विचार और सामर्थ्य से नहीं मिलता है तो हम उसे गाली देकर अपने मन का संतोष प्राप्त कर लेते हैं !

वैसे गाली देने के बहुत से लाभ भी हैं ! जैसे क्रोध के विषय में कहा गया है क्रोध को या तो थूक देना चाहिये या फिर पी जाना चाहिये ! लेकिन कभी भी निरंतर क्रोध अग्नि में चलना नहीं चाहिये ! यह स्वास्थ्य के लिये उचित नहीं है ! व्यक्ति का पित्त बढ़ जाता है और व्यक्ति स्थाई रोगी बन जाता है !

लेकिन इस बात का बहुत कम लोगों ने ध्यान किया कि क्रोध को पीने या थूकने में गाली बहुत सहायक है ! जब हम क्रोध से दुखी होते हैं तो हम उस क्रोध को बाहर निकालने के लिये गाली का प्रयोग करते हैं ! जिसे आम जनमानस सुनता है और हमें हेय समझता है ! लेकिन जब हम क्रोध को पीते हैं तब भी अंदर गाली का ही प्रयोग करते हैं ! लेकिन इसे आम जनमानस सुन नहीं पाता और आपको एक शरीफ व्यक्ति के रूप में चिन्हित करता है !

गाली व्यक्ति को तनाव से मुक्त करती है ! जो व्यक्ति गाली नहीं देते हैं या वह समाज के सामने नहीं देना चाहते हैं ! तो वह हृदय रोग के स्थाई रोगी हो जाते हैं ! डायबिटीज, किडनी फेलियोर, ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, पैरालिसिस जैसे भयानक रोग प्राय: गाली न देने वाले व्यक्ति को ही होते हैं ! क्योंकि गाली देने से जो व्यक्ति को जो आत्म संतोष प्राप्त होता है वह गाली न देने वाले व्यक्तियों को प्राप्त नहीं हो पाता है और यह लोग निरंतर तनाव में बने रहने के कारण विभिन्न तरह के गंभीर रोगों से ग्रसित हो जाते है !

दुर्व्यवस्था, अव्यवस्था के चलते जब व्यक्ति उसको सुधार करने की स्थिति में नहीं होता है तो भी वह व्यवस्था अधिकारियों को गाली देकर अपने मन को संतोष प्राप्त कर लेता है !

ठीक इसी तरह जब व्यक्ति किसी का उपहास करता है तो वह प्राय: गाली देकर अपने विचारों को व्यक्त करता है ! अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये की गाली जितना तनाव से मुक्ति का आधार है ! उतना ही किसी व्यक्ति के विचार व्यक्ति का भी आधार भी है !

गाली आपके यश मापन का भी आधार है ! आपको गाली देने वाले कितने व्यक्ति हैं ! यह निर्धारित करता है कि आप की बात जनसामान्य में कितने लोगों द्वारा सुनी जा रही है ! यदि आपको गाली देने वालों की संख्या कम है तो इसका मतलब आपका समाज पर प्रभाव कम है ! इसलिये गाली देने वालों की बढ़ती संख्या से घबराइये नहीं बल्कि उसमें यह सोचिये कि लोगों ने अब आपको सुनना शुरू कर दिया है !

रही गाली देने की बात तो लोग ऋषि, मुनि, महात्मा, गुरु ही नहीं भगवान को भी गाली देने में नहीं चूकते हैं ! यदि आपको दो चार गाली किसी ने दे भी दी तो उससे क्या फर्क पड़ता है ! आप यदि सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं तो अपने विचारों को निरंतर समाज में प्रस्तुत करते रहिये ! जिस दिन आपके गाली देने वालों की संख्या जितनी अधिक बढ़ेगी ! उस दिन आपके विचारों का प्रभाव भी समाज में उतना अधिक पड़ने लगेगा ! यही गाली देने का मनोविज्ञान है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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