आधुनिक शिक्षा व्यवस्था भारत के सर्वनाश के लिये अंग्रेजों द्वारा निर्मित की गई थी ! जिसे हम आज भी ढोह रहे हैं ! आइये जानते हैं इसका वास्तविक इतिहास व भविष्य !
भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव यूरोपीय ईसाई धर्मप्रचारक तथा व्यापारियों के हाथों से डाली गई ! उन्होंने कई विद्यालय स्थापित किए ! प्रारंभ में मद्रास ही उनका कार्यक्षेत्र रहा ! धीरे धीरे कार्यक्षेत्र का विस्तार बंगाल में भी होने लगा ! इन विद्यालयों में ईसाई धर्म की शिक्षा के साथ साथ इतिहास, भूगोल, व्याकरण, गणित, साहित्य आदि विषय भी पढ़ाए जाते थे ! रविवार को विद्यालय बंद रहता था ! अनेक शिक्षक छात्रों की पढ़ाई अनेक श्रेणियों में कराते थे ! अध्यापन का समय नियत था ! साल भर में छोटी बड़ी अनेक छुट्टियाँ हुआ करती थीं !
प्राय: लोग इसे मैकाले की शिक्षा प्रणाली के नाम से पुकारते हैं ! लार्ड मैकाले ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के ऊपरी सदन (हाउस ऑफ लार्ड्स) का सदस्य था ! 1857 की क्रान्ति के बाद जब 1860 में भारत के शासन को ईस्ट इण्डिया कम्पनी से छीनकर रानी विक्टोरिया के अधीन किया गया तब मैकाले को भारत में अंग्रेजों के शासन को मजबूत बनाने के लिये आवश्यक नीतियां सुझाने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था ! उसने सारे देश का भ्रमण किया ! उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि यहां झाडू देने वाला, चमड़ा उतारने वाला, करघा चलाने वाला, कृषक, व्यापारी (वैश्य), मंत्र पढ़ने वाला आदि सभी वर्ण के लोग अपने-अपने कर्म को बड़ी श्रद्धा से हंसते-गाते कर रहे थे !
सारा समाज संबंधों की डोर से बंधा हुआ था ! शूद्र भी समाज में किसी का भाई, चाचा या दादा था तथा ब्राहमण भी ऐसे ही रिश्तों से बंधा था ! बेटी गांव की हुआ करती थी तथा दामाद, मामा आदि रिश्ते गांव के हुआ करते थे ! इस प्रकार भारतीय समाज भिन्नता के बीच भी एकता के सूत्र में बंधा हुआ था ! इस समय धार्मिक सम्प्रदायों के बीच भी सौहार्दपूर्ण संबंध था ! यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि 1857 की क्रान्ति में हिन्दू-मुसलमान दोनों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध किया था ! मैकाले को लगा कि जब तक हिन्दू-मुसलमानों के बीच वैमनस्यता नहीं होगी तथा वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत संचालित समाज की एकता नहीं टूटेगी तब तक भारत पर अंग्रेजों का शासन मजबूत नहीं होगा !
भारतीय समाज की एकता को नष्ट करने तथा वर्णाश्रित कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए मैकाले ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बनाया ! अंग्रेजों की इस शिक्षा नीति का लक्ष्य था – संस्कृत, फारसी तथा लोक भाषाओं के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम करना ! साथ ही सरकार चलाने के लिए देशी अंग्रेजों को तैयार करना ! इस प्रणाली के जरिए वंशानुगत कर्म के प्रति घृणा पैदा करने और परस्पर विद्वेष फैलाने की भी कोशिश की गई थी ! इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पद्धति के प्रति आकर्षण पैदा करना भी मैकाले का लक्ष्य था ! इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में ईसाई मिशनरियों ने भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई ! ईसाई मिशनरियों ने ही सर्वप्रथम मैकाले की शिक्षा-नीति को लागू किया !
प्राय: 150 वर्षों के बीतते बीतते व्यापारी ईस्ट इंडिया कंपनी राज्य करने लगी ! विस्तार में बाधा पड़ने के डर से कंपनी शिक्षा के विषय में उदासीन रही ! फिर भी विशेष कारण और उद्देश्य से 1780 में कलकत्ते में ‘कलकत्ता मदरसा’ और 1791 में बनारस में ‘संस्कृत कालेज’ कंपनी द्वारा स्थापित किए गए ! धर्मप्रचार के विषय में भी कंपनी की पूर्वनीति बदलने लगी ! कंपनी अब अपने राज्य के भारतीयों को शिक्षा देने की आवश्यकता को समझने लगी ! 1813 के आज्ञापत्र के अनुसार शिक्षा में धन व्यय करने का निश्चय किया गया !
किस प्रकार की शिक्षा दी जाए, इसपर प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा के समर्थकों में मतभेद रहा ! वाद विवाद चलता चला ! अंत में लार्ड मेकाले के तर्क वितर्क और राजा राममोहन राय के समर्थन से प्रभावित हो 1835 ई. में लार्ड बेंटिक ने निश्चय किया कि अंग्रेजी भाषा और साहित्य और यूरोपीय इतिहास, विज्ञान, इत्यादि की पढ़ाई हो और इसी में 1813 के आज्ञापत्र में अनुमोदित धन का व्यय हो ! प्राच्य शिक्षा चलती चले, परंतु अंग्रेजी और पश्चिमी विषयों के अध्ययन और अध्यापन पर जोर दिया जाए !
पाश्चात्य रीति से शिक्षित भारतीयों की आर्थिक स्थिति सुधरते देख जनता इधर झुकने लगी ! अंग्रेजी विद्यालयों में अधिक संख्या में विद्यार्थी प्रविष्ट होने लगे क्योंकि अंग्रेजी पढ़े भारतीयों को सरकारी पदों पर नियुक्त करने की नीति की सरकारी घोषणा हो गई थी ! सरकारी प्रोत्साहन के साथ साथ अंग्रेजी शिक्षा को पर्याप्त मात्रा में व्यक्तिगत सहयोग भी मिलता गया ! अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के साथ साथ अधिक कर्मचारियों की और चिकित्सकों, इंजिनियरों और कानून जाननेवालों की आवश्यकता पड़ने लगी ! उपयोगी शिक्षा की ओर सरकार की दृष्टि गई ! मेडिकल, इजिनियरिंग और लॉ कालेजों की स्थापना होने लगी !
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले ने 1848 में एक स्कूल खोला ! यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था ! लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया ! उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए ! स्त्री शिक्षा पर ध्यान दिया जाने लगा !
1853 में शिक्षा की प्रगति की जाँच के लिए एक समिति बनी ! 1854 में बुड के शिक्षासंदेश पत्र में समिति के निर्णय कंपनी के पास भेज दिए गए ! संस्कृत, अरबी और फारसी का ज्ञान आवश्यक समझा गया ! औद्योगिक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया ! प्रातों में शिक्षा विभाग अध्यापक प्रशिक्षण नारीशिक्षा इत्यादि की सिफारिश की गई ! 1857 में स्वतंत्रता युद्ध छिड़ गया जिससे शिक्षा की प्रगति में बाधा पड़ी ! प्राथमिक शिक्षा उपेक्षित ही रही ! उच्च शिक्षा की उन्नति होती गई ! 1857 में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित हुए !
मुख्यत: प्राथमिक शिक्षा की दशा की जाँच करते हुए शिक्षा के प्रश्नों पर विचार करने के लिए 1882 में सर विलियम विल्सन हंटर की अध्यक्षता में भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्ति हुई ! आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के लिए उचित सुझाव दिए ! सरकारी प्रयत्न को माध्यमिक शिक्षा से हटाकर प्राथमिक शिक्षा के संगठन में लगाने की सिफारिश की ! सरकारी माध्यमिक स्कूल प्रत्येक जिले में एक से अधिक न हो; शिक्षा का माध्यम माध्यमिक स्तर में अंग्रेजी रहे ! माध्यमिक स्कूलों के सुधार और व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार के लिए आयोग ने सिफारिशें कीं ! सहायता अनुदान प्रथा और सरकारी शिक्षाविभागों का सुधार, धार्मिक शिक्षा, स्त्री शिक्षा, मुसलमानों की शिक्षा इत्यादि पर भी आयोग ने प्रकाश डाला !
मुम्बई विश्वविद्यालय का फोर्ट कैम्पस, 1870 के दशक में
आयोग की सिफारिशों से भारतीय शिक्षा में उन्नति हुई ! विद्यालयों की संख्या बढ़ी ! नगरों में नगरपालिका और गाँवों में जिला परिषद् का निर्माण हुआ और शिक्षा आयोग ने प्राथमिक शिक्षा को इनपर छोड़ दिया परंतु इससे विशेष लाभ न हो पाया ! प्राथमिक शिक्षा की दशा सुधर न पाई ! सरकारी शिक्षा विभाग माध्यमिक शिक्षा की सहायता करता रहा ! शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही रही ! मातृभाषा की उपेक्षा होती गई !
शिक्षा संस्थाओं और शिक्षितों की संख्या बढ़ी, परंतु शिक्षा का स्तर गिरता गया ! देश की उन्नति चाहनेवाले भारतीयों में व्यापक और स्वतंत्र राष्ट्रीय शिक्षा की आवश्यकता का बोध होने लगा ! स्वतंत्रताप्रेमी भारतीयों और भारतप्रेमियों ने सुधार का काम उठा लिया ! 1870 में बाल गंगाधर तिलक और उनके सहयोगियों द्वारा पूना में फर्ग्यूसन कालेज, 1886 में आर्यसमाज द्वारा लाहौर में दयानंद ऐंग्लो वैदिक कालेज और 1898 में काशी में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा सेंट्रल हिंदू कालेज स्थापित किए गए !
[1] 1894 में कोल्हापुर रियासत के राजा छत्रपति साहूजी महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए ! इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी ! 1894 से 1922 तक पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएं खोलने की पहल की ! यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं, इस पहल में दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये गए थे !वंचित और गरीब घरों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई ! 1920 को नासिक में छात्रावास की नींव रखी ! साहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था ! साहू जी महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने वंचितों के लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करवा दिया और उन्हें सामान्य छात्रों के साथ ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की ! डा० भीमराव अम्बेडकर बड़ौदा नरेश की छात्रवृति पर पढ़ने के लिए विदेश गए लेकिन छात्रवृत्ति बीच में ही रोक दिए जाने के कारण उन्हे वापस भारत आना पड़ा ! इसकी जानकारी जब साहू जी महाराज को हुई तो महाराज ने आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें सहयोग दिया !
1901 में लार्ड कर्ज़न ने शिमला में एक गुप्त शिक्षा सम्मेलन किया था जिसें 152 प्रस्ताव स्वीकृत हुए थे ! इसमें कोई भारतीय नहीं बुलाया गया था और न सम्मेलन के निर्णयों का प्रकाशन ही हुआ ! इसको भारतीयों ने अपने विरुद्ध रचा हुआ षड्यंत्र समझा ! कर्ज़न को भारतीयों का सहयोग न मिल सका ! प्राथमिक शिक्षा की उन्नति के लिए कर्ज़न ने उचित रकम की स्वीकृति दी, शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की तथा शिक्षा अनुदान पद्धति और पाठ्यक्रम में सुधार किया ! कर्ज़न का मत था कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही दी जानी चाहिए ! माध्यमिक स्कूलों पर सरकारी शिक्षाविभाग और विश्वविद्यालय दोनों का नियंत्रण आवश्यक मान लिया गया ! आर्थिक सहायता बढ़ा दी गई ! पाठ्यक्रम में सुधार किया गया !
कर्जन माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में सरकार का हटना उचित नहीं समझता था, प्रत्युत सरकारी प्रभाव का बढ़ाना आवश्यक मानता था ! इसलिए वह सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ाना चाहता था ! लार्ड कर्जन ने विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा की उन्नति के लिए 1902 में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया ! पाठ्यक्रम, परीक्षा, शिक्षण, कालेजों की शिक्षा, विश्वविद्यालयों का पुनर्गठन इत्यादि विषयों पर विचार करते हुए आयोग ने सुझाव उपस्थित किए ! इस आयोग में भी कोई भारतीय न था ! इसपर भारतीयों में क्षोभ बढ़ा ! उन्होंने विरोध किया ! 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय कानून बना ! पुरातत्व विभाग की स्थापना से प्राचीन भारत के इतिहास की सामग्रियों का संरक्षण होने लगा ! 1905 के स्वदेशी आंदोलन के समय कलकत्ते में जातीय शिक्षा परिषद् की स्थापना हुई और नैशनल कालेज स्थापित हुआ जिसके प्रथम प्राचार्य अरविंद घोष थे ! बंगाल टेकनिकल इन्स्टिट्यूट की स्थापना भी हुई !
1911 में गोपाल कृष्ण गोखले ने प्राथमिक शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य करने का प्रयास किया ! अंग्रेज़ सरकार और उसके समर्थकों के विरोध के कारण वे सफल न हो सके ! 1913 में भारत सरकार ने शिक्षानीति में अनेक परिवर्तनों की कल्पना की ! परंतु प्रथम विश्वयुद्ध के कारण कुछ हो न पाया ! प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने पर कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त हुआ ! आयोग ने शिक्षकों का प्रशिक्षण, इंटरमीडिएट कालेजों की स्थापना, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्डों का संगठन, शिक्षा का माध्यम, ढाका में विश्वविद्यालय की स्थापना, कलकत्ते में कालेजों की व्यवस्था, वैतनिक उपकुलपति, परीक्षा, मुस्लिम शिक्षा, स्त्रीशिक्षा, व्यावसायिक और औद्योगिक शिक्षा आदि विषयों पर सिफारिशें की ! बंबई, बंगाल, बिहार, आसाम आदि प्रांतों में प्राथमिक शिक्षा कानून बनाये जाने लगे ! माध्यमिक क्षेत्र में भी उन्नति होती गई ! छात्रों की संख्या बढ़ी ! माध्यमिक पाठ्य में वाणिज्य और व्यवसाय रखे दिए गए ! स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट परीक्षा चली ! अंग्रेजी का महत्व बढ़ता गया ! अधिक संख्या में शिक्षकों का प्रशिक्षण होने लगा !
1916 तक भारत में पाँच विश्वविद्यालय थे ! अब सात नए विश्वविद्यालय स्थापित किए गए ! बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तथा मैसूर विश्वविद्यालय 1916 में, पटना विश्वविद्यालय 1917 में, ओसमानिया विश्वविद्यालय 1918 में, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 1920 में और लखनऊ और ढाका विश्वविद्यालय 1921 में स्थापित हुए ! असहयोग आंदोलन से राष्ट्रीय शिक्षा की प्रगति में बल और वेग आए ! बिहार विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, गौड़ीय सर्वविद्यायतन, तिलक विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, जामिया मिल्लिया इस्लामिया आदि राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना हुई ! शिक्षा में व्यावहारिकता लाने की चेष्टा की गई !
1921 से नए शासनसुधार कानून के अनुसार सभी प्रांतों में शिक्षा भारतीय मंत्रियों के अधिकार में आ गई ! परंतु सरकारी सहयोग के अभाव के कारण उपयोगी योजनाओं का कार्यान्वित करना संभव न हुआ ! प्राय: सभी प्रांतों में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करने की कोशिश व्यर्थ हुई ! माध्यमिक शिक्षा में विस्तार होता गया परंतु उचित संगठन के अभाव से उसकी समस्याएँ हल न हो पाईं ! शिक्षा समाप्त कर विद्यार्थी कुछ करने के योग्य न बन पाते ! दिल्ली (1922), नागपुर (1923) आगरा (1927), आंध्र (1926) और अन्नामलाई (1926) में विश्वविद्यालय स्थापित हुए ! बंबई, पटना, कलकत्ता, पंजाब, मद्रास और इलाहबाद विश्वविद्यालयों का पुनर्गठन हुआ ! कालेजों की संख्या में वृद्धि होती गई ! व्यावसायिक शिक्षा, स्त्रीशिक्षा, मुसलमानों की शिक्षा, हरिजनों की शिक्षा, तथा अपराधी जातियों की शिक्षा में उन्नति होती गई !
अगले शासनसुधार के लिए साइमन आयोग की नियुक्ति हुई ! हर्टाग समिति इस आयोग का एक आवश्यक अंग थी ! इसका काम था भारतीय शिक्षा की समस्याओं की सागोपांग जाँच करना ! समिति ने रिपोर्ट में 1918 से 1927 क प्रचलित शिक्षा के गुण और दोष का विवेचन किया और सुधार के लिए निर्देश दिया !
1930-1935 के बीच संयुक्त प्रदेश में बेकारी की समस्या के समाधान के लिए समिति बनी ! व्यावहारिक शिक्षा पर जोर दिया गया ! इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दो वर्षों में से एक वर्ष स्कूल के साथ कर दिया जाए, जिससे पढ़ाई 11 वर्ष की हो ! बाकी एक वर्ष बी.ए. के साथ जोड़कर बी.ए. पाठ्यक्रम तीन वर्ष का कर दिया जाए ! माध्यमिक छह वर्ष के दो भाग हों – तीन वर्ष का निम्न माध्यमिक और तीन वर्ष का उच्च माध्यमिक ! अंतिम तीन वर्षों में साधारण पढ़ाई के साथ साथ कृषि, शिल्प, व्यवसाय सिखाए जायँ ! समिति की ये सिफारिशें कार्यान्वित नहीं हुई !
1937 में शिक्षा की एक योजना तैयार की गई जो 1938 में बुनियादी शिक्षा के नाम से प्रसिद्ध हुई ! सात से 11 वर्ष के बालक बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य हो ! शिक्षा मातृभाषा में हो ! हिंदुस्तानी पढ़ाई जाए ! चरखा, करघा, कृषि, लकड़ी का काम शिक्षा का केंद्र हो जिसकी बुनियाद पर साहित्य, भूगोल, इतिहास, गणित की पढ़ाई हो ! 1945 में इसमें परिवर्तन किए गए और परिवर्तित योजना का नाम रखा गया ‘नई तालीम’ ! इसके चार भाग थे – (1) पूर्व बुनियादी, (2) बुनियादी, (3) उच्च बुनियादी और (4) वयस्क शिक्षा ! हिंदुस्तानी तालीमी संघ (भारतीय शैक्षिक संघ) पर इसका संचालनभार छोड़ दिया गया !
1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होते होते सार्जेट योजना का निर्माण हुआ ! छह से 14 वर्ष की अवस्था के बालकों तथा बालिकाओं के लिए अनिवार्य शिक्षा हो ! जूनियर बेसिक स्कूल, सीनियर बेसिक स्कूल, साहित्यिक हाई स्कूल ओर व्यावसायिक हाई स्कूल की पढ़ाई 11 वर्ष की अवस्था से 17 वर्ष की अवस्था तक हो ! इसके बाद विश्वविद्यालय में प्रवेश हो ! डिग्री पाठ्यक्रम तीन वर्ष का हो ! इंटरमीडिएट कक्षा समाप्त कर दी जाए ! पाँच से कम अवस्थावालों के लिए नर्सरी स्कूल हो ! माध्यम मातृभाषा हो !
भारत के लिये अंग्रेजों की शिक्षा नीति
ब्रिटिश काल में शिक्षा में मिशनरियों का प्रवेश हुआ, इस काल में महत्वपूर्ण शिक्षा दस्तावेज में मैकाले का घोषणा पत्र 1835, वुड का घोषणा पत्र 1854, हण्टर आयोग 1882 सम्मिलित हैं ! इस काल में शिक्षा का उद्देश्य अंग्रेजों के राज्य के शासन सम्बन्धी हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था !
मार्च १८९० में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा पहली बार अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी प्रस्ताव किया गया था ! हर्टांग समिति 1929 ने प्राथमिक विद्यालयों की संख्यात्मक वृद्धि पर बल न देकर गुणात्मक उन्नति पर जोर दिया था ! गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बुनियादी शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य, शिल्प आधारित शिक्षा द्वारा बालक का सर्वांगीण विकास कर उसे आत्मनिर्भर आदर्श नागरिक बनाना था ! मैकाले ने सुझाव दिया कि अंग्रेजी सीखने से ही विकास संभव है !
स्वतंत्रता के बाद
आजादी के बाद राधाकृष्ण आयोग (1948-49), माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) 1953, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (1953), कोठारी शिक्षा आयोग (1964), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) एवं नवीन शिक्षा नीति (1986) आदि के द्वारा भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देनें की गंभीर कोशिश की गयी !
1948-49 में विश्वविद्यालयों के सुधार के लिए भारतीय विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति हुई ! आयोग की सिफारिशों को बड़ी तत्परता के साथ कार्यान्वित किया गया ! उच्च शिक्षा में पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई ! पंजाब, गौहाटी, पूना, रुड़की, कश्मीर, बड़ौदा, कर्णाटक, गुजरात, महिला विश्वविद्यालय, विश्वभारती, बिहार, श्रीवेकंटेश्वर, यादवपुर, वल्लभभाई, कुरुक्षेत्र, गोरखपुर, विक्रम, संस्कृत वि.वि. आदि अनेक नए विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई ! स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात् शिक्षा में प्रगति होने लगी ! विश्वभारती, गुरुकुल, अरविंद आश्रम, जामिया मिल्लिया इसलामिया, विद्याभवन, महिला विश्वक्षेत्र में प्रशंसनीय वनस्थली विद्यापीठ आधुनिक भारतीय शिक्षा के विद्यालय और प्रयोग हैं !
1952-53 में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक शिक्षा की उन्नति के लिए अनेक सुझाव दिए ! माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन से शिक्षा में पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई ! लेकिन अब पुनः संशोधित आधुनिक शिक्षा व्यवस्था भारत को सर्वनाश की ओर ले जा रही है ! जिसे हम अपने विनाश के लिये आज भी ढोह रहे हैं !