अधिवक्तृता” नहीं राष्ट्र हित में “निष्पक्ष विश्लेषण” कीजिये ! Yogesh Mishra

आजकल प्रायः देखा जाता है कि जब किसी “व्यक्ति” या “घटना” के संदर्भ में कोई सूचना समाज को प्राप्त होती है तो समाज सीधा-सीधा दो हिस्सों में बंट जाता है ! एक वर्ग उस व्यक्ति या घटना के पक्ष में खड़ा हो जाता है और दूसरा वर्ग उसके विपक्ष में खड़ा हो जाता है ! व्यक्ति या घटना के पक्ष और विपक्ष में खड़े होने के पीछे व्यक्ति का स्वार्थ, समझ और संस्कार होते हैं !

और जब कोई बुद्धिजीवी व्यक्ति किसी घटना या व्यक्ति के पक्ष में खड़ा होता है ! तो वह उस घटना या व्यक्ति के पक्ष में तर्कों का संग्रह शुरू कर देता है और समाज को अपने संग्रहित तर्कों को क्रमबद्ध तरीके से रख कर संतुष्ट करने की कोशिश करता है ! इसी तरह जब कोई व्यक्ति उस महत्वपूर्ण व्यक्ति या घटना के विपक्ष में खड़ा होता है !

तब वह भी विपक्ष के सारे तर्कों को संग्रहित करके समाज को संतुष्ट करने का प्रयास शुरू कर देता है ! लेकिन इन दोनों ही पक्ष-विपक्ष के बुद्धिजीवी विचारकों के जहन में यह चिंता कभी नहीं होती है कि उनके द्वारा दिये जाने वाले तर्क का समाज पर क्या सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा ! इसी बुद्धिजीवीयों के समाज के प्रति दायित्व विहीन पक्ष-विपक्ष के तर्कों को समाज के सामने रखना ही “व्यक्ति या घटना” की “अधिवक्तृता” कहलाती है !

यह एक पक्षीय अधिवक्तृता की कला समाज के लिए अत्यंत घातक है ! होता यूं है कि समाज का अधिकांश वर्ग विश्लेषणात्मक शक्ति विहीन होता है और उसके पास प्रायः निष्पक्ष सूचनाओं का भी अभाव रहता है ! जिसके परिणाम स्वरुप जिस बुद्धिजीवी व्यक्ति के पास जितनी अधिक सूचनाएं होती हैं ! वह अपनी “अधिवक्तृता कला” से समाज को उस “व्यक्ति या घटना” के संदर्भ में पक्ष-विपक्ष का वही स्वरूप दिखलाने में सफल हो जाता है जो वह चाहता है ! जिससे इस पूर्वाग्रहित गलत सूचना के मिलने से समाज दिग्भ्रमित हो जाता है और उस विशेष “व्यक्ति या घटना” के संदर्भ में समाज सही निर्णय नहीं ले पाता है ! निर्णय के गलत होने के कारण प्रायः समाज गलत व्यक्ति के नेतृत्व में गलत मार्ग पर बढ़ जाता है ! जिससे राष्ट्र, देश और समाज का ही नहीं “व्यक्तियों” का भी विनाश हो जाता है !

ठीक इसी तरह यदि अपनी अधिवक्तृता की कला को समाज का बुद्धिजीवी वर्ग किनारे रख दे और तटस्थ होकर किसी “व्यक्ति या घटना” का “बिना किसी पूर्वाग्रह के परीक्षण करे ! तो उस “व्यक्ति या घटना” के संदर्भ में उस बुद्धिजीवी का निष्पक्ष विद्वान्ता पूर्ण निर्णय समाज को सही दिशा दे सकता है !

इसलिए मेरा समाज के बुद्धिजीवियों से यह अनुरोध है कि किसी भी “व्यक्ति या घटना” की समीक्षा करते समय “अधिवक्तृता” के गुण को त्याग कर बिना किसी पूर्वाग्रह से पीड़ित हुए तथा विश्लेषण करें ! जिससे आपके द्वारा किए गए “विश्लेषण” से राष्ट्र, देश और समाज का ही नहीं उस व्यक्ति का भी विकास हो !

जिसके समक्ष आप अपना निष्पक्ष विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं ! क्योंकि बुद्धिजीवी वर्ग के पास तार्किक शक्ति प्रबल होती है ! अतः यदि बुद्धिजीवी वर्ग समाज का निष्पक्ष और तटस्थ मार्गदर्शन करेगा तो निश्चय ही देश और समाज दोनों का विकास होगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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