प्रायः हम सभी लोग जब किसी सांसारिक समस्या में उलझ जाते हैं | तो उस समस्या के समाधान के लिए किसी न किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी कुंडली पर परामर्श लेकर अपनी समस्या को हल करने के लिए सुझाव पूछते हैं और यह मानते हैं कि उस विद्वान ज्योतिषी द्वारा जो समस्या का समाधान मुझे बताया जा रहा है | यदि उसका सही तरह से पालन किया जाए तो निश्चित ही हमें ग्रह दोषों से मुक्ति मिल जायेगी और हमारी समस्या का समाधान हो जाएगा |
अत: हम पूरी निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी के साथ अपनी समस्या के समाधान हेतु विद्वान ज्योतिषी द्वारा बतलाये गये पूजन, अनुष्ठान या रत्न धारण आदि को करते हैं | किंतु कभी-कभी सब कुछ सही सही करने के बाद भी हमारी समस्या जैसी की तैसी रहती है अर्थात उसमें कोई लाभ नहीं होता है | कभी-कभी तो यह भी देखा जाता है कि हमारी समस्याओं के समाधान की जगह वह समस्यायें और भी प्रबल रूप से बढ़ती चली जाती है |
इस पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है | सबसे पहला प्रश्न तो यह खड़ा होता है कि जो विद्वान ज्योतिषी मुझे किसी भी समस्या के समाधान के लिए कोई भी पूजन, रत्न या अनुष्ठान आदि बतला रहे हैं | क्या वह ज्योतिष के किसी “सनातन शोध ग्रंथ” पर आधारित है | क्योंकि अक्सर यह देखा जाता है कि तथाकथित विद्वान ज्योतिषियों द्वारा बतलाया गया पूजन, रत्न का अनुष्ठान आम परंपरा में जो चला आ रहा है, उसी की सलाह दे दी जाती है |
जबकि होना यह चाहिए कि विद्वान ज्योतिषीयों को “सनातन ज्योतिष के शोध ग्रंथों” पर आधारित ही रत्न, पूजा अनुष्ठान आदि का परामर्श देना चाहिए न कि अन्य सुनी-सुनाई परंपरा के तहत जो उपाय आम चलन में हैं उसका परामर्श दें | ऐसा करने से यजमान द्वारा अपना धन और समय व्यय करने के बाद भी उसे अपनी समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलाती है बल्कि कभी-कभी समस्याऐ और भी प्रबल होकर उसके सामने खड़ी हो जाती हैं | इसके 1-2 छोटे-छोटे उदाहरण मैं आपको देना चाहता हूं |
जैसे कि उदाहरण के लिए परिवार में कोई व्यक्ति दुर्घटना ग्रस्त हो जाए या अत्यधिक बीमार हो जाए तो 90-95% ज्योतिषी उस व्यक्ति की समस्या समाधान के लिए “महामृत्युंजय मंत्र” के अनुष्ठान का सुझाव देते हैं, जबकि हर मामले में शास्त्र इसकी आज्ञा नहीं देते हैं | शास्त्र सम्मत सुझाव यह है कि कुछ मामलों में तो “महामृत्युंजय मंत्र” का अनुष्ठान कराना आवश्यक है लेकिन अन्य मामलों में “मृत संजीवनी मंत्र” का अनुष्ठान या मारकेश ग्रह की शांति के लिए “वैदिक मंत्रों के अनुष्ठान” का भी विधान बतलाया गया है |
इसी तरह प्रायः हर जगह दोषी ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को शांत करने के लिए रत्न नहीं पहनना चाहिए बल्कि ज्यादातर नकारात्मक ऊर्जा देने वाले ग्रहों का दान करवाना चाहिए क्योंकि दान करवाने में तथाकथित विद्वान ज्योतिषी को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता है, अत: वह अपने यजमान को महंगे से महंगा रत्न पहनने का सुझाव देते हैं |
इसी तरह प्रायः देवी दुर्गा की आराधना या अनुष्ठान करने का सुझाव देते समय विद्वान ज्योतिषीयों को यह जरूर देखना चाहिए कि “देवी दुर्गा की आराधना” समस्या में फंसे हुए व्यक्ति को विशेष ग्रह स्थिति में “तंत्रोक्त तरीके से” करना श्रेष्ठ कर रहेगा या “वैदिक पद्धति से” करना श्रेष्ठ कर रहेगा | मात्र “दुर्गासप्तशती” पर ही विद्वान् ज्योतिषियों को आश्रित नहीं होना चाहिये |
ठीक इसी तरह राहु या शनि की शान्ति के लिये प्रायः हनुमान जी की आराधना करने का सुझाव तथाकथित विद्वान ज्योतिषी आंख बंद करके दे देते हैं | लेकिन आज से 400 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास द्वारा “हिंदी में” रचित विभिन्न हनुमान उपासना के पूजन ग्रंथों तक ही तथाकथित विद्वान ज्योतिषी अपना सुझाव दे पाते हैं | मैं इन विद्वान ज्योतिषियों से यह अनुरोध करता हूं कि 400 साल से पहले जब गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हनुमान जी के ऊपर रचित हिंदी में “हनुमान चालीसा” या “हनुमानाष्टक” आदि ग्रंथ नहीं थे | तब इसके पूर्व “हनुमान जी की आराधना” के लिए जिस तरह का विधान शास्त्रों में वर्णित है | उन पर भी विद्वान ज्योतिषियों को विश्लेषण करना चाहिए और अपने यजमानों को वास्तविक लाभ पहुंचाने के लिए उस “सनातन शास्त्र सम्मत हनुमान जी की पूजा, आराधना या अनुष्ठान” का उपाय बतलाना चाहिए | न की आम चलन में कहा-सुनी के आधार पर जो सामान्य उपाय बतलाए जाते हैं |
होता यह है कि जब इस तरह का “शास्त्र विरुद्ध अनावश्यक उपाय” यजमानों को बतलाया जाता है | तो प्रायः इन उपायों को करने के बाद या तो व्यक्ति की समस्या का समाधान नहीं होता है या समस्यायें और बढ़ जाती हैं | जिससे समाज के अंदर लोगों का “ज्योतिष और धर्म शास्त्रों के प्रति” विश्वास और समर्पण समाप्त हो जाता है |
अतः यह परम आवश्यक है कि हमारे विद्वान ज्योतिषी भाई किसी भी व्यक्ति को किसी भी समस्या के समाधान हेतु उपाय “शास्त्रों में वर्णित पद्धति” के अनुसार ही बतलायें | जिससे यजमान को भी लाभ प्राप्त हो और ज्योतिष विध्या के प्रति लोगों की निष्ठा और समर्पण बनी रहे अन्यथा इस तरह के अनावश्यक अनुष्ठानों का परामर्श देने से यजमानों को तो जो क्षती होती है वह होगी ही, साथ ही आने वाले समय में “विधर्मियों” को ज्योतिष विधा के ऊपर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने का अवसर मिल जायेगा | जिससे “सनातन ज्योतिष विद्या” तथाकथित विद्वान ज्योतिषियों के ज्ञान के अभाव में कलंकित हो जाएगी |
और यजमानों से भी मेरा यह अनुरोध है कि आपके ज्योतिषी जब तक “शास्त्रसम्मत” कोई उपाय, अनुष्ठान, उपचार, रत्न आदि पहनने का सुझाव यदि नहीं देते हैं तब तक किसी भी कार्य में अनावश्यक रूप से धन और समय व्यय न करें अन्यथा वह उपाय अपनी समस्याओं को और बढ़ा सकता है |