सभी जानते हैं कि जर्मन, फ्रांस, रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन आदि का इतिहास खूनी क्रांतियों पर टिका है ! किंतु भारत एक ऐसा देश है जहां पर हर तरह का आभाव व अत्याचार सहने के बाद भी कोई आन्दोलन खड़ा नहीं होता है !
इसका अगर गहराई से विश्लेषण किया जाए तो यह पाया जाता है के भारतीय नागरिक की मनोदशा चार वर्गों में बटी हुई है :-
पहला ईश्वरवादी — ईश्वरवादी सोच का व्यक्ति यह मानता है कि उसकी सभी समस्याओं का समाधान ईश्वर “अवतार” लेकर करेंगे ! उसे अपनी किसी भी समस्या को सुलझाने की कोई आवश्यकता नहीं है ! जब वक्त आएगा तो ईश्वर शरीर धारण करेंगे और सारी व्यवस्था ठीक हो जाएगी ! इस तरह की ईश्वरवादी अवधारणा रखने वाले लोग कभी आंदोलन में विश्वास नहीं करते !
दूसरा मजबूर या लाचार वर्ग — इसके अंतर्गत व्यवसाई और कर्मचारी आते हैं ! यह जानते हैं कि यदि हमने कोई भी आंदोलन राष्ट्रहित में छेड़ा तो सबसे पहले या तो मेरा व्यवसाय बंद हो जाएगा या कर्मचारी को नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा ! अतः सब कुछ जानते हुए मजबूरी और लाचारी वश यह दोनों वर्ग सभी तरह के शोषण और अत्याचार को सहते रहते हैं और किसी भी तरह का कोई भी आंदोलन करने का साहस नहीं जुटा पाते !
तीसरा वह वर्ग है चिंतन विहीन वर्ग — जिसके अंदर चिंतन करने की क्षमता नहीं है जिसमें मजदूर या दैनिक रोजगार (रिक्शावाला,फलवाल,रेड़ीवाला आदि ) करने वाले व्यक्ति आते हैं ! यह बेचारे अपनी दाल रोटी में ही इतना परेशान है कि इसके ऊपर उठकर संगठित होकर किसी भी आंदोलन करने का न तो इनके पास समय है और न ही आंदोलन पर विचार करने की इनको समझ है !
चौथा सबसे महत्वपूर्ण वर्ग है स्वार्थी वर्ग — जिसमें राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और तथाकथित बुद्धिजीवी पत्रकार, अधिवक्ता, डॉक्टर, इंजीनियर आदि आते हैं ! यह चौथा वर्ग यदि चाहे भारत की संरचना को ही बदल सकता है किंतु स्वार्थी प्रवित्ति होने के कारण यह वर्ग किसी भी तरह का कोई भी परिवर्तन नहीं करना चाहता क्योंकि वह जानता है कि किसी भी तरह का कोई भी परिवर्तन हमारे लिये ठीक नहीं है क्योंकि हमारा विकास इसी अव्यवस्था या दुर्व्यवस्था में ही हो सकता है ! यदि भारत के अंदर सब कुछ व्यवस्थित हो जाए, जो राजनेता सत्ता सुख नहीं भोग सकेंगे ! प्रशासनिक अधिकारी समाज का शोषण नहीं कर सकेगे ! बुद्धिजीवी अधिवक्ता, इंजीनियर, डॉक्टर, पत्रकार आदि जनता को गुमराह कर के धन नहीं लूट सकेंगे !
यही वह मुख्य कारण है जिस वजह से भारत के अंदर कभी कोई आंदोलन खड़ा नहीं होता और यदि कोई व्यक्ति भारत के अंदर कोई आंदोलन खड़ा करने का प्रयास करे तो यही स्वार्थी वर्ग उस व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा रौड़ा बनते हैं और उस आंदोलन को कुचलने के लिए हर तरह का संभव प्रयास करते हैं ! अंत में एक और महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूं किसी भी आंदोलन को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है धन पर सर्वाधिक नियंत्रण चौथी वर्ग का ही है !
पहले 3 वर्ग के लोग तो किसी भी तरह अपने घर की रोटी चला रहे हैं और चौथा वर्ग जो धन के संसाधनों को नियंत्रण करता है वह कभी नहीं चाहता कि उसके समानांतर कोई दूसरी विचारधारा पैदा हो !
अतः बुद्धिजीवियों के लिए एक बहुत बड़ा प्रश्न है कि भारत को सही दिशा देने के लिए किस तरह एक विचारशील आंदोलन खड़ा किया जाए ?