जानिए कैसे ! वर्तमान शिक्षा नीति ही बेरोजगारी की जनक है !

‘आक्सफैम’ की विषयक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेरोजगारी एक बड़ा संकट है ! इस संकट का उचित समय पर समाधान न हुआ तो इसका समाज की स्थिरता और शांति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा ! एक और जो दसियों लाख युवा श्रम-शक्ति में प्रतिवर्ष आ रहे हैं उनके लिए पर्याप्त रोजगार नहीं हैं, दूसरी ओर इन रोजगारों की गुणवत्ता व वहतन अपेक्षा से कहीं कम हैं ! लिंग, जाति व धर्म आधारित भेदभावों के कारण भी अनेक युवाओं को रोजगार प्राप्त होने में अतिरिक्त समस्याएं हैं ! इस स्थिति से परेशान युवा एक समय के बाद रोजगार की तलाश छोड़ देते हैं ! इन कारणों से सरकार द्वारा रोजगार प्राप्ति की सुविधाजनक परिभाषा के बावजूद बेरोजगारी के आंकड़ें चिंताजनक हो रहे हैं व यह प्रवृत्ति आगे और बढ़ सकती है !

नये भारत को निर्मित करते हुए हमें शिक्षा एवं रोजगार के बीच संतुलित व्यवस्था स्थापित करनी होगी ! सही गुणवत्ता के रोजगारों का पर्याप्त मात्रा में सृजन न होना शासन की एक बड़ी विफलता है ! विफलता तो यह भी है कि आजादी के सत्तर सालों में हमने ऐसी उपलब्धियां हासिल नहीं की है कि अधिकतर युवाओं को अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध हो ! महंगी एवं निजी संस्थानों में किसी तरह उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी ली तो रोजगार न मिलने से सब व्यर्थ गया ! अब विवश होकर शिक्षित युवाओं को रोजगार के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ती है ! वह उच्च शिक्षा की डिग्रियों को एक तरफ रखकर जो भी रोजगार मिलता है, उसे पाने के लिये दौडधूप करते हैं ! जब भी किसी भी सरकारी नौकरी चाहे वह पुलिस की हो, सुरक्षा गार्ड की हो, बागवान की हो, चपरासी की हो, क्लर्क की हो, उसके लिये आवहदन आमंत्रित किये जाते हैं, तो देश की यह उच्च शिक्षा प्राप्त पीढ़ी लाइन में लग जाती है !

इसका उदाहरण वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग में चपरासियों व संदेशवाहकों के 62 पदों के लिए भर्ती का है, इन 62 पदों के लिए 93000 अभ्यर्थियों ने आवहदन किया जिनमें से 3700 पीएचडी, 28000 पोस्ट ग्रेजुएट व 50000 ग्रेजुएट थे ! जबकि इन पदों के लिए न्यूनतम योग्यता पांचवीं पास थी ! इसी तरह जनवरी 2019 में मध्य प्रदेश में 8वीं पास योग्यता और 7,500 रुपए मासिक मानदेय वाली चपऱासी की नौकरी के 57 पदों के लिए प्राप्त होने वाले 60,000 आवहदन पत्रों में बड़ी संख्या में इंजीनियर, एम.बी.ए. और पी.एच.डी. डिग्री वाले उम्मीदवार शामिल थे ! यह ऐसी त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति है जो हमारे तमाम विकास की उपलब्धियों को धुंधलाती है ! हमारे विकास के तमाम दावों पर एक बदनुमा धब्बा है !

लोकतंत्र के मुखपृष्ठ पर ऐसे बहुत धब्बे हैं, गलत तत्त्व हैं, दोगलापन है ! मानो प्रजातंत्र न होकर सज़ातंत्र हो गया ! क्या इसी तरह नया भारत निर्मित होगा? राजनीति सोच एवं व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन हो ताकि अब कोई गरीब युवक नमक और रोटी के लिए आत्महत्या नहीं करें ! भारतीय शिक्षा व अर्थव्यवस्था को आज बड़े बदलावों की जरूरत है ताकि एक ओर तो अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा सभी छात्रों को मिले और दूसरी ओर अर्थव्यवस्था में इसके अनुकूल रोजगारों का सृजन भी हो ! जो सनातन शिक्षा नीति से ही संभव है ! जहाँ प्रत्येक व्यक्ति समाज की आवश्यकता अनुसार स्वत: रोजगार सृजित करता था !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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