हत्या वध और आतंकवाद यह तीन अलग-अलग शब्द हैं और इन तीनो शब्दों के अर्थ भी अलग अलग हैं ! हत्या का तात्पर्य है कि जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से अनुचित लाभ प्राप्त करने की मंशा से या अनुचित हानि पहुंचाने की इच्छा से उस व्यक्ति को किसी भी रीति से यह जानते हुए कि अगला व्यक्ति मर जाएगा फिर भी मृत्यु प्रदान करता है तो उसे हत्या कहते हैं ! यह विधि विरुद्ध कृत्य है ! जब किसी व्यक्ति को हत्या के आरोप में न्यायालय उसे हत्यारा घोषित कर देती है ! तब उसे कारावास या मृत्यु दंड से दंडित किया जाता है !
ठीक इसी तरह विधि के निर्देश पर या राष्ट्र व समाज के हित में जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को मृत्यु प्रदान करता है ! तब उस मृत्यु को वध कहा जाता हैं ! जैसे पुलिस द्वारा अपराधियों का एनकाउंटर करना, सैनिक द्वारा देश की रक्षा के लिए आक्रमणकारियों का वध करना या जल्लाद द्वारा विधि के निर्देश पर किसी अपराधी को फांसी के फंदे पर लटका देना, आदि आदि ! वध के लिए सदैव वध करने वाले व्यक्ति को समाज व शासक सम्मानित करता है ! उस वधी को वध करने के लिए पुरस्कृत करता है !
और इन दोनों विचारधाराओं से अलग एक तीसरी स्थिति भी होती है ! जिससे आतंकवाद कहते हैं ! यहां पर मारने वाले व्यक्ति और मरने वाले व्यक्ति के मध्य किसी भी तरह का कोई भी संबंध नहीं होता ! आतंकवादी का एकमात्र उद्देश्य होता है कि वह अपराध द्वारा अन्य लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करे ! प्रायः आतंकवादी मानसिक बीमार होते हैं या इनका ब्रेनवाश करके कुछ लोग इस तरह के व्यक्तियों को आतंकी घटना में प्रयोग करते हैं ! आतंकवादी का मरने वाले व्यक्ति से न तो कोई निजी परिचय होता है और न ही उसे मरने वाले से कोई हानि लाभ होता है ! आतंकवाद हत्या से अधिक जघन्य अपराध है और विधि में आतंकवादियों को दंडित करने की अलग व्यवस्था है !
आइये अब मैं अपने विषय पर आता हूं ! आजकल साध्वी प्रज्ञा के बयान के बाद नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी के वध को किये जाने के विषय को लेकर अनेकों तरह के वक्तव्य और बयान सामने आ रहे हैं ! कुछ लोग उसे आजाद भारत का पहला आतंकवादी भी बतलाते हैं ! मैं इस स्थिति को स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि नाथूराम गोडसे आतंकवादी की श्रेणी में नहीं आते हैं ! क्योंकि आतंकवादी का एकमात्र उद्देश्य होता है, समाज का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना ! वह अपनी घटना द्वारा मरने वाले व्यक्तियों से निजी तौर पर कोई संबंध नहीं रखता है !
किंतु गांधी और गोडसे के संबंध में गोडसे का उद्देश्य आम जनमानस का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना बिल्कुल नहीं था तथा गोडसे गांधी को व्यक्तिगत रूप से जानते भी थे और समझते भी थे ! गांधी के निरंतर मुस्लिम / पाकिस्तान तुष्टीकरण नीति के कारण गोडसे गांधी के निर्णय से असंतुष्ट थे और उन्हें लगता था गांधी ने राष्ट्रहित की मर्यादाओं को त्याग कर तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पर जाकर राष्ट्र विरोधी निर्णय लेना शुरू कर दिया है !
ऐसी स्थिति में गांधी के प्रभाव के कारण सत्ता भी गांधी का विरोध नहीं करना चाहती थी ! तब गोडसे के अंदर राष्ट्रभक्ति का जो चिंतन उमड़ा उसका निष्कर्ष था कि यदि राष्ट्र के स्वाभिमान को बचने के लिये गांधी का वध राष्ट्र हित में किया जाना परम आवश्यक था ! इस निश्चित निर्णय के बाद गोडसे ने गांधी का वध कर दिया !
विधि की दृष्टि में बलात इसे हत्या घोषित किया गया ! यदि यह हत्या थी तो आज तक कोई भी गांधीवादी यह क्यों नहीं स्पष्ट करना चाहता है कि गांधी को चौथी गोली किसने मारी थी ! दूसरी बात नाथूराम गोडसे ने जो न्यायालय में अपना पक्ष रखते समय बयान दिये थे, उन्हें एक लंबे समय तक गोपनीय क्यों रखा गया ! गांधी को गोली लगने के बाद उन्हें चिकित्सा हेतु किसी भी अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया या घटनास्थल पर ही मृत घोषित किये जाने के बाद उनका विधि अनुसार पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया गया !
क्योंकि हत्यारे को दंडित करने की विधि में एक व्यवस्था है ! उस व्यवस्था के तहत जब कोई हत्या होती है तो पुलिस उस हत्या पर संज्ञान लेती है और मृतक व्यक्ति के शव को अपने कब्जे में लेकर तत्काल उसका परीक्षण करवाती है ! चिकित्सक मृत्यु का कारण घोषित करते हैं और इसके बाद पुलिस इस घटना की जांच करती है ! मृत्यु का कारण और घटना की जांच के निष्कर्ष के आधार पर न्यायालय दोषी व्यक्ति को दंडित करता है !
किन्तु गांधी मर्डर केस के प्रकरण में इस तरह पुलिस ने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया ! कोई पोस्टमार्टम नहीं हुआ था ! अतः मृत्यु का सही कारण क्या था यह स्पष्ट नहीं था ! निसंदेह नाथूराम गोडसे को उस दिन गोली चलाते हुये लोगों ने देखा था लेकिन यह आवश्यक नहीं कि नाथूराम गोडसे की गोली लगने से ही गांधी की मृत्यु हुई हो ! गोडसे की तीन गोली के अलावा चौथी गोली किसने चलाई थी ! हो सकता है गोडसे की गोली के कारण गांधी की मृत्यु न हुई हो बल्कि गांधी की मृत्यु उस चौथी गोली के कारण हुई हो !
लेकिन यह सारी स्थिति स्पष्ट करती है कि जब विधि अनुसार क्रमबद्ध तरीके से गांधी के शव का परीक्षण नहीं करवाया गया था तो गोटसे को इस हत्या का दोषी कैसे ठहराया गया ! आखिर वह कौन लोग हैं जो गांधी की मृत्यु के बाद उनके शव का परीक्षण कराने में आनाकानी करते रहे क्योंकि विधि विरुद्ध इस तरह की आनाकानी यह सिद्ध करती है कि गांधी की हत्या के लिये विधि अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता की सही प्रक्रिया को न अपनाये जाने के कारण नाथूराम गोडसे को दिये जाने वाला मृत्यु दंड ही विधि विरुद्ध था !
आजकल बिना सोचे समझे नाथूराम गोडसे को आतंकवादी घोषित किया जा रहा है ! यदि नाथूराम गोडसे आतंकवादी होते तो उसके पीछे आतंक अर्थात समाज को भयभीत करने की एक मनसा होनी चाहिये थी ! लेकिन नाथूराम गोडसे ने गांधी के वध के उपरांत स्वत: अपने को विधि के समक्ष आत्मसमर्पण किया था ! ऐसी स्थिति में घटनास्थल पर ही आत्मसमर्पण करने वाला व्यक्ति आतंकवादी नहीं हो सकता है !
अतः विवेकशील चिंतकों और विचारों से मेरा आग्रह है कि नाथूराम गोडसे को हत्यारा या आतंकवादी कहने पर एक बार उन्हें विचार करना चाहिये ! मुझे ऐसा लगता है कि उस समय के घटनाक्रम में गांधी जिस तरह मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पर जाकर राष्ट्र को खंड खंड करवाने पर आतुर थे और निरंतर हिंदू विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे, उस स्थिति में गोडसे द्वारा गांधी के वध का निर्णय लिया जाना राष्ट्र हित में उठाया गया, एक सही कदम था और बिना विधि की सही प्रक्रिया अपनाते हुए गोडसे को फांसी पर चढ़ा देना ! आजाद भारत का पहला केस था जिसमें गोडसे को नहीं बल्कि भारत की विधि व्यवस्था को फांसी पर चढ़ाया गया था ! जिसका परिणाम आज तक भारतीय समाज समाज भुगत रहा है !