क्या मात्र दलित और विधार्मियों के मत से जीता जायेगा 2019 का चुनाव | Yogesh Mishra

यह जान कर बड़ी हैरत होती है कि सरेआम नाक के नीचे दलितों का बहुत बड़ी संख्या में धर्मान्तरण और दूसरी तरफ दलित हिन्दुओं द्वारा हिन्दू धर्म ग्रन्थों की होली जलाये जाने पर भी सत्ताधीशों की शान्ती | कहीं इस मनमानी ओछी हरकतों के पीछे राजनैतिक कारणों से मौन सहमति तो नहीं है |

भारत में सर्वाधिक कर देने वाला 5.3 करोड़ सवर्ण हिंदू जो आज 92 फीसद कर का स्वयं ही भुगतान भारत को अपना देश समझ कर करता है | वही आज अपने ही देश में उपरोक्त हरकतों के कारण अपने को असुरक्षित और असहाय महसूस कर रहा है | चुनावी आंकड़े यह बताते हैं कि 80 करोड़ मतदाताओं में से मात्र 19 करोड़ वोटों से वर्ष 2014 में भाजापा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई थी और वर्ष 2019 में भाजापा को पुनः पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने के लिए मात्र 20 करोड़ वोटों की आवश्यकता है |

भारत के अंदर सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों को समानता से मत देने का अधिकार है | आंकड़े यह बताते हैं कि भारत के अंदर लगभग 2 करोड़ इसाई, 14 करोड़ मुसलमान, 16 करोड़ दलित मतदाता हैं | यदि कोई भी राजनीतिक दल इन 3 मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो जाता है तो वह वर्ष 2019 में भारत की सत्ता पर काबिज हो सकता है |

वर्ष 2019 में भारत की सत्ता पर काबिज होने के लिए किसी भी राजनैतिक दल को सवर्ण हिंदू मतदाता के मतों की कोई आवश्यकता नहीं है | अगर सवर्ण हिंदू मतदाता भारत में बिजनेस करना चाहते हैं, व्यवसाय करना चाहते हैं या नौकरी करना चाहते हैं तो राजनीति की दृष्टिकोण से वह वर्तमान गणित में दोयम दर्जे के नागरिक हैं | भले ही वह देश को 92%कर देते हों | लेकिन उन्हें देश में दोयम दर्जे के नागरिक बनकर असुरक्षा के वातावरण में मात्र अपना कार्य करना होगा और अपनी मेहनत की कमाई से विभिन्न तरह के कर देने होंगे |

जिन करों से संगृहीत धनराशि का उपयोग सवर्ण हिंदू समाज की भावनाओं के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वाले विधर्मी और दलितों के हित में उनकी सुख सुविधाओं पर खर्च किया जाएगा | अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो सवर्ण हिंदू करदाता के कर से प्राप्त धनराशि का इस्तेमाल उसी सवर्ण हिंदू करदाता को भयभीत, भयाक्रांत और निर्बल बनाने के लिये किया जाएगा |

राजनीतिक प्रेरणा से प्रेरित होकर योग्यता और अयोग्यता को दरकिनारे कर आज हमारे राजनीतिज्ञ निहायत ही नाकारा और अयोग्य लोगों को आरक्षण के नाम पर नौकरी देकर शाही कोश से वेतन, सुविधा, और भत्ता के नाम पर जो धन लुटा रहे हैं और हमारे शोषण के लिये उन्हें विधि में सभी तरह की शक्तियां भी प्रदान की गई हैं | यह शाही कोष का धन हम सवर्णों की ही मेहनत का धन है | जिसे हमने कर के रूप में दिया था |

और जब सवर्ण करदाता है अपनी शिकवा शिकायत सुनाता है तो शासन से विधिक शक्ति प्राप्त आरक्षण और अल्पसंख्यक की सुविधा का लाभ उठा कर नौकरी प्राप्त करने वाले यह लोग सवर्ण करदाताओं की शिकवा शिकायत में कोई रुचि नहीं लेते हैं | बल्कि यह अवधारणा है कि सवर्ण कर दाता चोर हैं और यह लोग शोषण के लिए ही बने हैं | देश का भी इन स्वर्ण करदाताओं को सार्वजनिक मंच पर “चोर” की उपाधि से विभूषित करता है
|
न खाएंगे और न खाने देंगे का नारा लगाने वाले यह राजनीतिज्ञ जिनके धन से खा रहे हैं, आज वही करदाता अपनी सुरक्षा के लिए अपनी जायज़ मांगों के लिए दर दर ठोकर खा रहा है और उसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है | क्या यह स्थिति देश को अराजकता की ओर नहीं ले जाती है |

जब योग्यता रखने वाला, कर देने वाला, साहस रखने वाला, विधि के दायरे में अपनी जायज़ मांगों को लेकर दर दर ठोकर खायेगा तो क्या उस देश में अमन चैन कायम हो सकता है | यह बहुत बड़ा प्रश्न है इस पर राजनीति से हट कर विचार होना चाहिये |

हम सवर्ण तो सिर्फ इतना ही कहेंगे :-

“दिलवा दी हमें गुलामी बिना खड़ग बिना ढाल,
गुजरात के सपूत तूने कर दिया कमाल |”

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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