सत्यता : पूरा आर्य समाज नही बल्कि साठ लाख स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलनकारियों में आर्य समाज के कुछ इक्का दुक्का लोग जो आर्य समाज से पूर्व में कभी संबद्ध रहते थे बाद में इनकी हरकतों से उन्होंने भी छोड़ दिया था सिर्फ वही स्वतंत्रता आन्दोलन में उतरे थे ! यदि आर्य समाज का इतना बढ़ा योगदान होता तो अंग्रेजों ने कभी आर्य समाज को प्रतिबन्धित क्यों नहीं किया था !
ज्यादातर आर्य समाजी अंग्रेजों की चमचागिरी करने और क्रन्तिकारियों की मुखबिरी करना अपना कर्तव्य समझते थे और वह इससे आगे नहीं बढ़ सके ! आर्य समाज के पूर्व सम्पर्क में रहे जो लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में उतरे उनमें मुख्यतौर पर लाला लाजपत राय थे ! जिनकी एक प्रदर्शन के दौरान सर पर लाठी लगने से कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई थी ! उस दुर्घटना से आक्रोशित होकर भगत सिंह भी क्रांतिकारी बने जिसमें आर्य समाज का कोई योगदान नहीं था !
आप लोग कहते है की आजादी की लड़ाई में सबसे अधिक आर्य समाज के लोगो का ही योगदान था, तो क्या झांसी की रानी, बहादुर शाह जफ़र, तात्या टोपे, मंगल पाण्डेय, भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, सुखदेव जैसे और भी लाखों वीरो ने क्या प्रकाशन के पूर्व ही “सत्यार्थ प्रकाश” पढ़ा था ?
यदि यह सभी सत्यार्थ प्रकाश पढ़ कर क्रन्तिकारी बने तो श्रीमद्भगवत गीता की क्रन्तिकारियों के जीवन में क्या भूमिका थी ! जबकि क्रन्तिकारियों के कमरे से श्रीमद्भगवत गीता तो बरामद हुई पर कभी “सत्यार्थ प्रकाश” बरामद नहीं हुई !
नकली आर्यसमाजी (दयानंद के चेले ) अपनी छाती कूट कूट के बड़ी शान से कहते है कि महर्षि दया नन्द ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ा योगदान दिया था ! जबकि दयानन्द स्वयं स्वतन्त्रता संग्राम में पुलिस के डर से तीन वर्ष तक लापता रहे थे ! पुस्तक ‘नवजागरण के पुरोधा दयानन्द सरस्वती ‘ के पेज 38 को देखें !
जो दयानन्द के भक्तों द्वारा वैदिक पुस्तकालय, परोपकारिणी सभा, दयानन्दाश्रम, अजमेर(राजस्थान) से प्रकाशित ’’ नवजागरण के पुरोधा दयानन्द सरस्वती’’ में स्पष्ट किया है कि
महर्षि दयानन्द मार्च 1857 तक तो गंगा नदी के किनारे साथ-2 घूमता रहे ! जब मई 1857 में स्वतन्त्रता संग्राम की तैयारी चल रही थी, उसी समय लापता हो गये ! फिर तीन वर्ष तक उसका कहीं पता नहीं लगा ! जून 1857 में स्वतन्त्रता संग्राम हुआ ! उसके भय से छुप गये थे !
दयानन्द की फोकट महिमा बनाई जाती रही कि स्वतन्त्रता संग्राम में महर्षि दयानन्द का बड़ा योगदान रहा!
सोचने वाली बात है कि जिन भारतीय योद्धाओं को ब्रिटिशों ने चुन चुनकर समाप्त किया था ! उनमें आर्य समाजी या तथाकथित समाज सुधारक कांग्रेसियों की तरह अंग्रेजों से छूट कैसे गये !!