न्याय दर्शन कहते हैं कि वेदों की रचना ईश्वर ने की है ! क्योंकि यह मानवीय नहीं हो सकते हैं ! सांख्य दर्शन कहा कि वेदों की रचना ईश्वर ने भी नहीं की है ! वेद प्राकृतिक हैं ! प्रकृति का मतलब जिसकी रचना किसी ने नहीं की है !
जो नित्य है, वही प्राकृतिक है ! हाँ, यह हो सकता है कि वेदों के ज्ञान को कुछ लोगों ने संगृहीत कर लिया हो, लेकिन वेदों की रचना ईश्वर भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता है !
क्योंकि वह ईश्वर को मानता नहीं है, तो वेदों की रचना ईश्वर ने की है, यह कैसा मान सकता है ?
लेकिन हम यह मान सकते हैं कि बहुत सारे लोगो ने बहुत सदियों तक ज्ञान को अनुभूति के आधार पर लिखा इकट्ठा किया है !
वेदों को इकट्ठा जैसे व्यक्ति ने किया उसको आम तौर पर हम कहते हैं कि वह वेदव्यास थे ! वेदव्यास भी 27 अलग अलग हुये हैं ! व्यास का तात्पर्य प्रमाणित लेखक से है !
वेदव्यास अनादि ऋषि बादरायण भी हुये हैं, जिन्होंने ब्रह्मसूत्र या विधान सूत्र की रचना की थी ! जो वेदांत दर्शन का सबसे मूल ग्रंथ है !
वेदों में दर्शन बहुत ज्यादा नहीं है ! वेदों का ज्यादा जो मंतव्य हैं ! वह मंत्रों के रूप में हैं ! जिनसे हम यज्ञ, कर्मकांड, अनुष्ठान पूजा पाठ आदि करते हैं !
दार्शनिक प्रवृत्ति वेदों के शुरुआती हिस्से में नजर नहीं आती है ! इसलिए वेदों में शुरू में ईश्वर को लेकर कुछ भ्रम भी है ! जैसे ईश्वर एक है या बहुत सारे हैं !
हर वेद के चार हिस्से माने जाते हैं ! जिसमें पहले हिस्से का नाम संहिता होता है ! जिसका बेसिक मतलब है मंत्र ! जिन मंत्रों से हम पूजा पाठ करते हैं ! उन्हें आप वैदिक मंत्र कहते हैं !
दूसरा हिस्सा ब्राह्मण होता है ! लेकिन ब्राह्मण का मतलब वेदों में कर्मकांड है ! जब पूजा पाठ होगा, तो उसके विधि विधान के होंगे ! उन विधि विधानों का वर्णन ब्राह्मण कहलाता है ! ऐसा मानते हैं कि यह विधि विधान करने वाले व्यक्ति बाद में इसी वजह से ब्राह्मण ही कहलाने लगे !
वेद का तीसरा हिस्सा है आरण्यक ! अर्थात जंगल या प्रकृति से प्राप्त ज्ञान ! इसका मतलब है कि जो लोग वनों में निवास करते हैं, तपस्वी हैं, उनके लिए आचार व्यवहार के नियम अलग हैं ? वह आरण्यक में होते थे !
और चौथा हिस्सा होता है उपनिषद् ! उपनिषद वेदों का ही हिस्सा है ! बहुत सारे मानते हैं कि 108 उपनिषद हैं ! जिनमें लगभग 12 बड़े महत्वपूर्ण हैं !
जैसे छान्दोग्य उपनिषद बहुत महत्वपूर्ण है ! बृहदारण्यक उपनिषद् भी महत्वपूर्ण हैं !
वेदांत का मतलब है वेदों का अंतिम हिस्सा ! अर्थात वैदिक फिलॉसफी ! शायद पूरी दुनिया आज तक वैसी फिलॉसफी को सोच भी नहीं पाया ! जितनी गहरी फैलोशिप वेदांत में दिखती है ! ‘वेदान्त’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘वेदों का सार’ !
वेदान्त ज्ञानयोग का एक स्रोत है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है ! वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत ! आदि शंकराचार्य, रामानुज और मध्वाचार्य को क्रमशः इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है !
इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ हैं ! यह शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बार्क, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु ! आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, अरविन्द घोष, स्वामी शिवानन्द स्वामी करपात्री और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं ! ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं ! दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है और कालांतर में यह ज्ञान भारत के बाहर भी गया ! जिसने पश्चिम के दर्शिनिकों को बहुत प्रभावित किया !
यही से भारतीय दर्शन ने भारत को विश्व गुरु बनाया ! इसीलिए दूसरे शब्दों में दुनिया के सारे दर्शन वेदों से ही निकले हैं !!