मौसम व कृषि ज्योतिष के जनक महर्षि पाराशर : Yogesh Mishra

दुनिया के अन्य महाद्वीपों के लोग जब वर्षा, बादलों की गड़गड़ाहट के होने पर भयभीत होकर गुफाओं में छुप जाते थे ! जब उन्हें एग्रीकल्चर का ककहरा भी मालूम नहीं था ! उससे भी हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पाराशर मौसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारतवर्ष के किसानों के मार्गदर्शन के लिए” कृषि पाराशर” नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे !

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है ! यह महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं ! पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे ! परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे ! वह छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे !

वैदिक वांड्मय में जिस यज्ञ की अभूतपूर्व प्रतिष्ठा रही है, उसकी मुख्य वजह यह रही है कि मनुष्य और देवता सभी का गुजर-बसर यज्ञ पर ही निर्भर करता है ! यदि हम यज्ञ के विवरणों पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि इसका संबंध कृषि कर्म या उत्पादन पक्ष से था ! ब्रीहि(धान), यव (जौ), माण(उड़द),मुदंग (मूंग), गोधूम (गेहूँ), और मसूर आदि अनाजों, जो यज्ञ क्रिया के प्रमुख घटक रहे हैं, का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है !

इसलिए वेदों में कृषि कार्य को यज्ञ या सर्वश्रेष्ठ कार्य का दर्जा दिया गया है! सभी ऋषि-मुनियों ने कृषि कर्म को सर्वोपरि सम्मान दिया है ! वैदिक व्याख्याकार मानते हैं कि राजा जनक कृषि के अधिष्ठाता हैं और सीता कृषि की अधिष्ठातृ देवी हैं ! रामविलास शर्मा ने वेदों में खेती करने वाले ऋषि-मुनियों का विशेष रूप से उल्लेख किया है !

विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख मिलता है-“अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहु मन्यमानः” ! अर्थात जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ ! हमारे समाज में प्रचलित जन-उक्ति कृषि कार्य की श्रेष्ठता को अभिव्यक्त करती है –‘उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी कुक्कर निदान! ’ खेती उत्तम इसलिए है क्योंकि इस क्रिया के प्रारंभ होने से अन्न उत्पादित होने तक करोड़ों सूक्ष्म जीवियों से लेकर गाय-बैल आदि पशुओं एवं करोड़ों लोगों का पेट भरता है ! गुरुकुलों में राजा और प्रजा दोनों के पुत्र खेती करते हुए ज्ञानार्जन करते थे ! अर्थात् ज्ञान और श्रम के बीच कोई दूरी नहीं थी !

इस प्रकार ऋग्वेद एवं उत्तरवैदिक काल में आर्यो का मुख्य व्यवसाय कृषि ही था ! यजुर्वेद संहिता में मानसून का वर्णन सल्लिवात के रूप में आता है ! शतपथ ब्राह्यण में कृषि की क्रियाओं-जुताई, कटाई, मड़ाई, का उल्लेख मिलता है ! कालांतर में वृहत्संहिता, मेघदूत आदि ग्रंथों में महर्षि पाराशर, वराहमिहिर, कश्यप, गर्ग और कालिदास आदि विद्वानों से लेकर भक्तिकालीन साहित्य और रीतिकालीन साहित्य में घाघ और भड्डरी जैसे कवियों ने समय-समय पर कृषि संबंधी अनुभवों और वर्षा एवं मौसम पूर्वानुमान व्यक्त किया हैं ! 11वीं शती के ‘कृषिपाराशर’ नामक ग्रन्थ में जल संसाधनों से सिंचाई के साधनों के सभी विवरण मिलते हैं!

तीन खंडों में लिखा गया यह लघु ग्रंथ वृष्टि ज्ञान , मेघ का प्रकार, कृषि भूमि का विभाजन, कृषि में काम आने वाले यंत्रों का वर्गीकरण आकार प्रकार, वर्षा जल के मापन की विधियां, हिंदी महीने पूस के महीने में वायु की गति व दिशा के आधार पर 12 महीनों की बारिश का अनुमान व मात्रा का प्रतिशत निकालने की विधि ! बीजों का रक्षण, जल रक्षण की विधियां कृषि में काम आने वाले वाहक पशुओं की देखभाल पोषण व उनके प्रबंधन के संबंध में अमूल्य जानकारी निर्देश दिया गया है !

महर्षि पाराशर ग्रंथ में लिखते हैं जीवन का आधार कृषि है कृषि का आधार वृष्टि अर्थात बारिश है हर किसान को बारिश के विषय में जरूर जानना चाहिए !

महर्षि पाराशर ने अपने ग्रंथ के द्वितीय खंड वृष्टि खंड में बादलों को 4 भागों में वर्गीकृत किया है !
बादलों का यह वर्गीकरण उनके आकार / पैटर्न के आधार पर किया गया है ज्ञात हो आधुनिक मौसम विज्ञानी भी कंप्यूटर मॉडल एल्गोरिदम के तहत इसी कार्य को आज कर रहे हैं !

(1)आवरत मेघ,(2) सम्रत मेघ , (3)पुष्कर मेघ ,(4)द्रोण मेघ !

पहले वाला मेघ एक निश्चित स्थान में बारिश करता है दूसरा मेघ एक समान बारिश करता है तीसरे मेघ से बहुत कम वर्षा होती है चौथे मेघ से उत्तम वर्षा होती है !

महर्षि पाराशर का मत है 2,3 दिवस पूर्व बारिश का पूर्वानुमान कोई लाभकारी नहीं होता किसान के लिए !

पूरे वर्ष के लिए बारिश की मात्रा के लिए ज्ञात करने के लिए एक विधि विकसित की ! इसके तहत उन्होंने वर्णन किया है कि पूस महीने के 30 दिन को 60 घंटे के 12 भागो में विभक्त कर प्रत्येक दिन के सुबह शाम के 1:00 1 घंटे में वायु की गति व दिशा के आधार पर पूरे वर्ष के लिए वर्षा की मात्रा वह किन किन तिथियों में वर्षा होगी उसका विश्लेषण किया जा सकता है !

मित्रों आपको जानकर अपार हर्ष होगा वर्ष 1966 में काशी के राजा स्वर्गीय डॉक्टर विभूति नारायण सिंह के निर्देश पर एक प्रयोग किया गया था जिसमें महर्षि पाराशर कि इस विधि को एकदम सटीक पाया गया था !

अब बात हम महर्षि पाराशर के ग्रंथ की कृषि खंड की करते हैं ! महर्षि पाराशर ने कृषि भूमि को तीन भागों में विभाजित किया अनूप कृषि भूमि ,जांगल कृषि भूमि विकट भूमि !

पहली से दूसरी दूसरी से तीसरी भूमि को कृषि के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया ! कृषि खंड में उन्होंने बताया किस महीने में बीजों का संग्रह करना चाहिए बीजों की रक्षा कैसे करनी चाहिए बीजों का रोपण किस विधि से होना चाहिए ! कृषि कार्य में खगोलीय घटनाओं नक्षत्र आदि के प्रभाव का भी उन्होंने विस्तृत वर्णन किया है !

सचमुच अतीत का भारत विश्व गुरु था ! जहां जान विज्ञान कला कौशल की भरमार थी ! कोई ऐसा क्षेत्र है जहां हमारे महर्षि-मुनियों ने अमूल्य ग्रंथों की रचना ना की हो !

दुर्भाग्य से महाभारत के महायुद्ध में हजारों लाखों महर्षि महर्षि , योद्धा मारे गए ! परिणाम स्वरूप गुरुकुल शिक्षा पद्धति और शिक्षा परंपरा विद्या की वैदिक संस्थाएं लुप्त हो गई देश की अधिकांश जनता पाखंड अंधविश्वास ढोंग आडंबर जातिवाद आलसी भाग्यवादी पुरुषार्थ विहीन हो गई 90 फ़ीसदी से अधिक ज्ञान परंपरा व ग्रंथ लुप्त हो गए ! उसका खामियाजा हम और आप क्या पूरी दुनिया उठाएगी !

आज जलवायु परिवर्तन के कारण अमेरिका ऑस्ट्रेलिया की भूमि बंजर होती जा रही है यह भारत के महर्षियों का प्रबल प्रताप ज्ञान ही था कृषि के क्षेत्र में लाखों करोड़ों वर्ष के पश्चात भी भारत भूमि बंजर नहीं हो पाई महर्षि पाराशर का मत था कि प्रकृति का बलात दोहन हमें नहीं करना चाहिए पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए प्रकृति का उपयोग हमें करना चाहिए !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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