विश्व में जिस तरह “एडोल्फ हिटलर” को आज एक विलेन के रुप में देखा जाता है, उसी तरह भारत की राजनीतिक में राष्ट्रभक्त “नाथूराम गोडसे” को भी एक विलयन के रुप में देखा जाता है ! प्रश्न यह है कि गोडसे जैसे लोग पैदा ही क्यों होते हैं ?
स्पष्ट सीधा सा जवाब है कि जब राजसत्ता आम आवाम के साथ विश्वासघात करती है तो उसी आम आवाम में से कोई एक गोडसे से निकलकर आता है ! होता यूं है कि जब कोई नेता राष्ट्रभक्त होने का मुखौटा ओढ़ कर आम आवाम को ठगने के लिए विदेशी षडयंत्रकारियों के इशारे पर राजनीति प्रारंभ करता है और वह आम आवाम पर यह विश्वास दिलाता है कि वह जनता का सारा दुख समाप्त करके आम नागरिकों को सुखी और खुशहाल बना देगा ! तो जनता ऐसे व्यक्ति के पीछे-पीछे चलना शुरु कर देती है !
वक्त बदलता है वह व्यक्ति आम जनमानस के सहयोग से एक अति “शक्तिशाली राजनेता” का स्थान प्राप्त कर लेता है ! राजनेता का स्थान प्राप्त करते ही उसे “संवैधानिक शक्तियां” प्राप्त हो जाती हैं और जिससे “विधि” उसका संरक्षण करने लगती है ! तब वह व्यक्ति अपने मूल विश्वासघाती स्वरूप को प्रकट करता है और जिन लोगों के इशारे पर उसने राष्ट्रभक्ति का मुखौटा पहना था ! उनके प्रति निष्ठावान होकर अपने ही राष्ट्र के साथ विश्वासघात प्रारंभ कर देता है ! शुरुआत में तो नागरिकों को यह समझ में नहीं आता लेकिन काल के प्रवाह में धीरे-धीरे जब उस राजनेता का वास्तविक स्वरुप जनता को समझ में आने लगता है, तो अधिकांश लोग उस राजनेता से घृणा करने लगते हैं !
लेकिन संवैधानिक शक्तियों और विधि का संरक्षण प्राप्त होने के कारण उस राजनेता को राष्ट्रविरोधी कार्यों से रोका नहीं जा सकता है और ऐसी स्थिति में जनता उस राजनेता के विरुद्ध लोकतांत्रिक तरीके से आन्दोलन करती है, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि यह “आंदोलन” भी उसी भ्रष्ट व्यवस्था में अभिव्यक्ति व्यक्त करने का एक मात्र प्रभावहीन माध्यम है !
पुलिस प्रशासन ऐसे आंदोलनों को कुचलने के लिए हथियार उठा लेती है ! मीडिया अपने हितों के लिये राजसत्ता के साथ मिल कर ऐसे आंदोलनों को राष्ट्रद्रोह प्रचारित करने लगता है ! राजसत्ता के इशारे पर प्रशासन इन आंदोलनों को संचालित करने वाले बड़े-बड़े राष्ट्रप्रेमी स्वयंसेवकों के ऊपर “रासुका-गैंगेस्टर” आदि लगाकर कानून की कठोर कार्यवाहियां आरंभ कर देती हैं ! इन राष्ट्रप्रेमीयों को फर्जी “हत्या बलात्कार” आदि के केसों में फंसा कर जेलों में बंद कर दिया जाता है ! जो भाग कर बचने की कोशिश करते हैं, उन्हें विभिन्न धाराओं में पुलिस तलाशने लगाती है ! अतः इस राष्ट्रघाती कानून से बचने के लिये यह राष्ट्रप्रेमी स्वयंसेवक भूमिगत हो जाते हैं ! जिससे धीरे-धीरे आंदोलन बिखरने लगता है !
ऐसी स्थिति में राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत इन विश्वासघाती राजनेताओं पर सही समझ रखने वाला कोई नौजवान इस व्यवस्था के कुचक्र को समझकर यह जान लेता है कि लोकतांत्रिक पद्धति से इस भ्रष्ट व्यवस्था में किसी भी राष्ट्रघाती राजनेता के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है !
संवैधानिक पद प्राप्त राजनेता जो राष्ट्र के साथ विश्वासघात करते हैं ! जिसके परिणाम स्वरुप राष्ट्र के आम आवाम की स्वतंत्रता और सुरक्षा दोनों ही नष्ट हो जाती है ! कानून के दायरे में कोई भी विकल्प जब शेष नहीं बचता तो भगवान श्री कृष्ण के दिए हुए निर्देश के अनुसार कि “अन्याय और अधर्म के मार्ग पर कोई भी खड़ा हो तो तू युद्ध कर” के अनुसार आम जनमानस के बीच से कोई एक अर्जुन अपने हाथ में गांडीव लेकर निकलता है और उस राष्ट्रघाती राजनेता को अपने भविष्य के सारे परिणाम जानते हुये दंडित करता है !
इसकी एक वजह और भी है कि ऐसा व्यक्ति यह जानता है कि जब तक इस राजनेता के विरुद्ध हम आम जन मानस को जागृत करेंगे, तब तक यह राजनेता राष्ट्र का बड़ा नुकसान कर चूका होगा ! शायद इसी का परिणाम था कि शासन-सत्ता की राष्ट्रघाती व्यवस्था से तंग आकर राष्ट्र के बटवारे से उद्वेलित होकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विरुद्ध जब कोई भी लोकतांत्रिक विकल्प नाथूराम गोडसे को नहीं दिखाई दिया तब उसने “गांधी-वध” का निर्णय लिया !
निसंदेह यह “गांधी-वध” सभ्य समाज पर एक कलंक है ! किंतु प्रश्न यह खड़ा होता है कि इस समाज में आम-आवाम की भावनाओं के प्रति हमारी राज्यसत्तायें कितनी संवेदनशील हैं ! जब तक यह राजसत्तायें इसी तरह से संवेदना विहीन रहेगी ! तब तक कालांतर में समय-समय पर नाथूराम गोडसे पैदा होते रहेंगे !
इसलिए यदि “गांधी-वध” को रोकना है तो राज्य सत्ताओं को संवेदनशील बनना पड़ेगा ! न्यायपालिकाओं को सरल बनना पड़ेगा और संविधान की सुरक्षा और संरक्षण में जो लोग राष्ट्र के साथ विश्वासघात कर रहे हैं ! उनके विरुद्ध शीघ्र और सरल कार्यवाही की पद्धति संविधान में सुनियोजित करनी पड़ेगी ! इसी में राष्ट्र का हित है !