शिव सहस्त्रार ज्ञान साधना स्वयं में संपूर्ण साधना है ! इस साधना को करने वाले मानव साधक को अपने कल्याण के लिये किसी भी अन्य सहयोगी साधना पद्धति की आवश्यकता नहीं है !
यह ज्ञान परंपरा मनुष्य का कल्याण इस पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि परलोक में भी करती है और व्यक्ति को निरंतर मुक्ति के मार्ग की ओर ले जाती है और शिव ओरे में उसे प्रवेश दिलवाती है !
पृथ्वी पर अनादि काल से यही एक मात्र ऐसी साधना पद्धति है, जिससे व्यक्ति अपने आत्म कल्याण के चरम को प्राप्त कर सकता है !
इसमें किसी भी धर्म ग्रंथ, कर्मकांड, मठ-मंदिर, नगाड़ा-ढोलक आदि की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही इसमें उपासना पद्धति का कोई समय चक्र विधान (महूर्त आदि) है ! इसमें सिद्धि प्राप्त करने के लिये गणना की भी कोई परंपरा में नहीं है !
समस्त सृष्टि के जीवो के कल्याण के लिए भगवान शिव ने स्वयं इस साधना पद्धति पर अपना प्रथम व्याख्यान अपने सुपात्र शिष्य ब्रह्म कुल के सर्वश्रेष्ठ तपस्वी रावण को दिया था !
जिसे रावण ने अपने “रक्ष साम्राज्य” में प्रत्येक नागरिकों के कल्याण के लिये “रक्ष साम्राज्य” की राजकीय भाषा “तमिल” में लोक गीतों के माध्यम से प्रचारित और प्रसारित किया था !
जिसमें एक हजार आठ सूत्र थे जोकि वैष्णव आक्रांताओं के कारण नष्ट कर दिये गये ! जिस पर अब बहुत शोध के उपरांत मात्र 777 सूत्र प्राप्त किये जा सके हैं ! लेकिन मानवता के कल्याण के लिये इतने ही सूत्र पर्याप्त हैं !
इन सूत्रों में वर्णित मार्ग पर चलकर कोई भी व्यक्ति आत्म शोधन कर अपना आत्म कल्याण कर सकता है और वह इस पृथ्वी पर विदेह साधना की परम अवस्था को प्राप्त कर परम मुक्ति को प्राप्त कर सकता है तथा मृत्यु के उपरांत भी परम शुद्ध होकर अपने कारण शरीर में परम मुक्त अवस्था में प्रवेश कर सकता है !
यह साधना सांसारिक गृहस्थ के लिये ही नहीं बल्कि साधक, चिंतक, मनीषी, तपस्वी आदि सभी के लिये है ! रावण स्वयं इस साधना को करता था ! इसी का परिणाम था कि रावण के साम्राज्य में कभी सूखा, अकाल, भूखमरी, दुर्भिक्षु, सुनामी, अग्निकांड आदि जैसी प्राकृतिक आपदा नहीं आयी !
जिसे वैष्णव षड्यंत्रकारिर्यों ने अपने ग्रंथों में लिखा है कि रावण ने सभी ग्रहों पर नियंत्रण कर उन्हें अपने कैदखाने में बंद कर रखा था और इसी साधना के प्रभाव से रक्ष साम्राज्य में एक से एक योग्य तपस्वी, वैज्ञानिक, साधक, विचारक, चिन्तक, आयुर्वेदाचार्य, ज्योतिषी और तांत्रिक हुये हैं !
जिन्हें वैष्णव परंपरा के आचार्य कभी विकसित नहीं कर पाये ! शिव सहस्त्रार ज्ञान साधना के सामने वैष्णव गुरुकुल ज्ञान परम्परा की कोई औकात नहीं है !
इसी विषय पर सनातन ज्ञान पीठ के संस्थापक श्री योगेश कुमार मिश्र एक विस्तृत व्याख्यान माला आरंभ कर रहे हैं, जो भी साथी इस व्याख्यानमाला में जुड़ना चाहे वह कार्यालय में संपर्क कर सकता है !!