स्वयं से संवाद सनातन जीवन शैली का मूल आधार है ! जो व्यक्ति स्वयं से संवाद करना नहीं जानता वह कभी भी न तो संसार में सफल हो सकता है और न ही मृत्यु के उपरांत मुक्ति को प्राप्त कर सकता है !
क्योंकि “स्व”यं 2 शब्दों से मिलकर बना है ! “स्व” और “अहं” अर्थात अपने “स्वयं का “अहं” ! हम लोग जीवन भर दूसरे के “अहं” को खोजते रहते हैं और उसकी समीक्षा में समय नष्ट करते रहते हैं !
इसीलिए हमारा कभी भी ध्यान अपने “स्व” के “अहं” की ओर नहीं जाता है ! जब की आवश्यकता है “स्व” और “अहं” को अलग अलग करके “स्व” के साधना करने की !
क्योंकि “स्व” बहुत सूक्ष्म है, इसलिए जब हम अपने “स्व” को देखते हैं, तो हमें “स्व” के स्थान पर अपना “अहं” दिखाई देता है और हम गलती से उसे ही ““स्व”” समझ कर पुष्ट करने लगते हैं ! परिणाम “स्व”रूप हमारा विनाश की प्रक्रिया शुरू हो जाती है !
जबकि हमें अपने उत्थान के लिए “अहं” पर नहीं बल्कि “स्व” की साधना करके “स्व” को पुष्ट करना होता है ! हमारा “स्व” जितना अधिक पुष्ट होगा ! “अहं” उतना ही अधिक क्षीर्ण होकर नष्ट हो जायेगा !
इसलिए हमें अपने अहम को नष्ट करने के लिए सबसे अधिक समय अपने स्वयं के “स्व” से संवाद पर देना होगा ! इसकी पूरी प्रक्रिया मैंने ब्रह्मास्मि क्रिया योग के क्लास में विस्तार के साथ साधकों को बतलाई है !
जिससे व्यक्ति ने संसार में रहते हुए भी संसार से मुक्त प्राप्त हो जाती है और व्यक्ति जन्म मरण के चक्कर से बाहर निकल कर शिव ओरे में स्थापित हो जाता है !
यही स्वयं से संवाद की कला है !!