सनातन वैष्णव संस्कृत में रक्षाबंधन का महत्व अनादि काल से है ! प्रहलाद के पुत्र राजा बलि को छलका कर जब भगवान विष्णु ने तीन पग में पूरी पृथ्वी वापस ले ली ! तब हार से तिलमिलाये राजा बलि ने मौका देख कर भगवान विष्णु का अपहरण कर लिया और उसे अपने साथ पाताल लोक ले गया !
वर्तमान में जिसे दक्षिण अमेरिका में ब्राजील कहते हैं ! इसकी जानकारी जब देवी लक्ष्मी को हुई तब वह स्वयं पाताल लोक गई उन्होंने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर दक्षिणा में अपने पति भगवान विष्णु को प्राप्त किया ! तभी से रक्षा सूत्र बंधन की परंपरा सनातन वैष्णव समाज में चल रही है ! जिसके निर्वाहन का दायित्व ब्राह्मणों का था !
ब्राह्मण गुप्त नवरात्रि में विभिन्न संसाधनों को इकट्ठा कर अपने जजमानों के लिये रक्षा सूत्रों का निर्माण करते थे और रक्षाबंधन के अवसर पर अपने जजमानों के ह्रदय स्थान पर उसे धारण करवाया करते थे ! जिससे जजमानों की वर्षभर स्वास्थ हानि, धन हानि और शत्रुओं से रक्षा हुआ करती थी !
कालांतर में जब मुगलों का भारत पर आक्रमण हुआ ! तब भारत की वैष्णव सनातन संस्कृति छिन्न-भिन्न होने लगी और ब्राह्मणों द्वारा जगह-जगह जाकर जजमानें को रक्षा सूत्र बांधने पर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था ! तब से ब्राह्मण की जगह घर की कन्याओं से ही रक्षा सूत्र बंधन का उपक्रम चल पड़ा ! जिसे बाद में भाई बहन के त्यौहार के रूप में मनाया जाना जाने लगा !
किंतु सनातन वैष्णव संस्कृति के अंतर्गत गुप्त नवरात्रि में मंत्रों से अभिमंत्रित रक्षा सूत्र को ही धारण करने का विधान शास्त्र बतलाते हैं ! जिससे स्वास्थ्य हानि, धन हानि से बचाव तो होता ही है, साथ में शत्रुओं से रक्षा भी होती है और इन अभिमंत्रित रक्षा सूत्रों से व्यक्ति को धन, यश, विजय की प्राप्ति होती है !
इसी उद्देश्य को लेकर सनातन ज्ञान पीठ से जुड़े हुए साथियों के आग्रह पर प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी अभिमंत्रित रक्षा सूत्रों का निर्माण गुप्त नवरात्रि में किया गया है ! यदि आप इच्छुक हो तो सनातन ज्ञान पीठ के कार्यालय में रक्षा सूत्र प्राप्ति हेतु संपर्क कर सकते हैं !