आत्म उत्थान और आत्मरक्षा के लिए भी व्यक्ति को “चिंतन” की आवश्यकता होती है ! चिंतन करने के लिए “मन का निग्रह” परम आवश्यक है और मन के निग्रह के लिए व्यक्ति को बाहर से आने वाली सूचनाओं के क्रम को रोकना पड़ता है ! क्या आपने कभी सोचा कि दूरदर्शन पर सैकड़ों चैनलों, व्हाटस ऐब, फेसबुक, ट्वीटर समाचार पत्र, पत्रिकाओं आदि के माध्यम से आपको जो सूचनाएं दी जा रही हैं, उनमें से वास्तव में कितनी आपके काम की हैं !
अगर एक सामान्य आंकड़ा इकट्ठा किया जाए तो यह पता चलता है कि मात्र 0.5 % प्रतिशत सूचना ही व्यक्ति के जीवन के लिए उपयोगी है ! इसके अलावा 99.5 % प्रतिशत सूचनाएं जो आपको दी जाती हैं वह सब आपके लिये अनुपयोगी और भ्रमित करने वाली हैं, जो आपके विकास में बाधक हैं ! “बहुत सारी अनावश्यक अतिरिक्त सूचनायें” व्यक्ति को “आत्म चिंतन” से दूर ले जाती हैं और आत्म चिंतन से दूर गया व्यक्ति निश्चित रूप से “अवसाद” से ग्रसित होता है और अंत में उसका विनाश सुनिश्चित है !
आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक “वित्तीय” युग में जहाँ हर व्यक्ति “कुछ न कुछ बेच कर या भ्रम फैला कर” आपके मेहनत का पैसा हड़प कर लेना चाहता है ! उस युग में हम सुबह सोकर उठने से लेकर देर रात सोने जाने तक किसी न किसी “इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस” के माध्यम से अनेकों विभिन्न तरह की सूचनाओं का संग्रहण करते रहते हैं ! जिनकी रुचि सूचनाओं में नहीं है, वह भी “अप्रत्यक्ष बाजार” पैदा करने वाले तरह-तरह के “मनोरंजक सीरियल या गाने” आदि सुनने के लिये निरंतर किसी न किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के संपर्क में बने रहते हैं ! यह स्थिति व्यक्ति में “मानसिक विकलांगता” पैदा करती है ! जिससे भविष्य में मस्तिष्क के साथ-साथ “आँख, नाक, कान आदि शाररिक इन्द्रियाँ” भी काम करना बन्द कर देती हैं !
अब विचारणीय बात यह है कि “क्या यह सब हम स्वाभाविक रूप से कर रहे हैं” ? जवाब है “नहीं” ! यह सब एक योजनाबद्ध तरीके से “छद्म रूप से मानसिक हमलावरों” द्वारा “इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस” की मदद से किया जा रहा है ! जो “आप और आपका भविष्य” दोनों को ही अनिश्चित काल के लिये गुलाम बना लेना चाहते हैं ! लेकिन आपका ध्यान इस “छद्म मानसिक हमले” की तरफ न जाये ! इसके लिये यह लोग निरंतर अपने “सूचना तंत्र से नई नई रोचक, भ्रामक और अनुपयोगी सूचनायें” भेजते रहते हैं और जिससे हम निरंतर इनके प्रभाव में बने रहते हैं !
इस तरह आपको अपने भविष्य में आने वाले खतरों पर विचार करने का समय ही नहीं मिलता और जो लोग इन खतरों पर विचार कर भी लेते हैं ! तो ऐसे विचार करने वालों के “विचार” सूचना तंत्र के हमले से “गुम” कर दिये जाते हैं और वह “विचार” कालांतर में इन्हीं सूचनाओं की भीड़ में खो जाते हैं ! हम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के माध्यम से सूचना व मनोरंजन आदि के लिये “अफीम के नशे” की तरह इतना आदी हो गए हैं कि अब हम इससे अलग हटकर अन्य किसी विकल्प पर चिंतन नहीं करना चाहते हैं !
“विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के नाम पर हमें निरंतर पतन की ओर जिस तेजी से ढकेला जा रहा है, वह हमें ही नहीं हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी इन “षडयंत्रकारियों” का “मानसिक, आर्थिक और शारीरिक गुलाम” बना देगी ! आज का नौजवान “धन” के पीछे जो अपना सर्वस्व छोड़ कर भाग रहा है, वह यह नहीं जानता कि “धन” भी एक योजनाबद्ध तरीके से प्रयोग किया जाने वाला “हथियार” ही है और इस “हथियार” के माध्यम से हमारी सामाजिक संरचना नष्ट की जा रही है !
हम लोग सामाजिक बंधनों के परे एक “भीड़” में जीने के आदी होते जा रहे हैं ! इसका परिणाम यह है कि आज पड़ोसी-पड़ोसी को नहीं पहचानता, परिवार के बच्चे भी आपस में एक दूसरे को नहीं समझ पा रहे हैं ! घर के “बुजुर्ग” “वृधा आश्रम” में पड़े हैं, पति या पत्नी परगमन (लिविंग टू गेदर) कर रहे हैं, पारिवारिक और सामाजिक संकल्पनायें टूट रही हैं ! समाज से “संवेदनाएं” सूचना तंत्र के हमले के कारण निरंतर नष्ट हो रही हैं ! इसी के कारण समाज में हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार, ठगी आदि जैसे तरह-तरह के अपराध हो रहे हैं !
यदि हमें अपने को सुरक्षित रखना चाहते हैं और साथ ही अपने आने वाली पीढ़ी को भी “मानसिक विकलांगता” और “गुलामी” से बचाना चाहते हैं, तो हमें “इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस” के अंधाधुंध प्रयोग को छोड़ना होगा तथा अपने सामाजिक संबंधों को पुनः सुदृंण करने पर अधिक ध्यान देना होगा ! अन्यथा “अति सूचना से ग्रसित” यह “संवेदना विहीन” समाज ही हमारे विनाश का कारण होगा ! जिस समाज में सूचना तंत्र का हमला जितना कमजोर होता है, वह समाज उतना ही मजबूत होकर एक दूसरे के सहयोग से अपनी मौलिकता के साथ आगे बढाता रहता है !