21 जून को लखनऊ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियां बड़े जोरों पर है ! ऐसी सूचना है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री तथा उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय स्वयंभू योगा गुरु के साथ योग नहीं योगा करेंगे ! राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ता पर्चियां और टिकट लेकर गली-गली भीड़ जुटाने का इंतजाम करने में लग गये हैं ! साथ ही यह भी कहते मिल रहे हैं कि “एक राष्ट्रवादी संगठन से जुड़े होने के नाते आपको योगा दिवस में आना ही चाहिए, आपकी इच्छा हो या न हो !” साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्वयंभू योगा गुरु के चेले भी दुसरे जिलों से भीड़ जुटाने में लगे हैं ! सरकारी मोहकमा भी सभी कार्य छोड़ कर इसी कार्यक्रम को सफल बनाने में लगा है ! आखिर शक्ति प्रदर्शन का सवाल है !
अब विचारणीय बात यह है कि क्या यह वही योग है जो हमारे तपस्वी ॠषियों ने योग के रूप में ईश्वर के सत्य को जानने के लिए विकसित किया था ! अगर यह वही योग है तो इसकी एक निश्चित प्रक्रिया है ! ईश्वर का सत्य तो एकांत में साधना के द्वारा जाना जाता है न कि राजनैतिक शक्ति प्रदर्शन द्वारा !
मात्र 2 घंटे के शारीरिक व्यायाम को योग का नाम देकर योग का राजनैतिक शक्ति प्रदर्शन और व्यवसायीकरण तो किया जा सकता है किंतु इससे ईश्वर के सत्य को नहीं जाना जा सकता !
यह पोस्ट बहुत से राष्ट्रप्रेमीयों को कष्ट तो देगी पर अपनी सांस्कृतिक विरासत का विश्व के सामने विकृत स्वरूप प्रस्तुत करके राजनीतिक या व्यावासिक लाभ उठाना कहाँ तक उचित है ?